धरा गया धोखेबाज, 'शातिर कलम' के सहारे फंसाता था कस्टमर्स
इंश्योरेंंस पॉलिसी पूरे हो जाने पर पैसे को बिना परेशानी दिलवाने का वादा कर चेक भरने को देता था अपना पेन, जिसमें होती थी आसानी से मिटने वाली स्याही। बाद में इसे मिटा भर लेता था मनचाही रकम
मुंबई (मिड डे)। बोरिवली में कस्तूरबा मार्ग पुलिस ने रैकेट में शामिल अपराधी को गिरफ्तार कर किया है। इस रैकेट में पूरे देश से कई लोग फंस चुके हैं। इंश्योरेंस पॉलिसियों के मैच्योरिटी अमाउंट को दिलाने के बहाने यह रैकेट लोगों को धोखा देता है। पुलिस का दावा है कि उन्होंने रिंगलीडर के मुंबई एजेंट को गिरफ्तार कर लिया है जो उत्तर प्रदेश के हापुर में हैं।
गिरफ्तार किए गए अपराधी की पहचान जिगर 31 वर्षीय धीरजलाल करेलिया के तौर पर हुई है। मास्टर माइंड धीरेंद्रकुमार बनिराम सिंह उर्फ विरेन सिंह बंसल उर्फ संदीप कुमार (27) हापुर का निवासी है।
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कस्तूरबा मार्ग पुलिस स्टेशन के अधिकारी ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में सिंह की गिरफ्तारी के लिए टीम को भेजा गया।‘ बार्क के रिटायर्ड इंजीनियर डी के गांधी ने इस वर्ष मार्च में शिकायत दर्ज करायी थी। इनके अनुसार अपराधी ने गांधी के अकाउंट से 49,000 रुपये उड़ा लिए थे। उसने अपने फीस के तौर पर चेक लिया था।
कस्तूरबा मार्ग पुलिस स्टेशन से असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर भरत घोन ने कहा, ‘सभी क्रिमिनल्स की तरह पुलिस के लिए करेलिया ने भी सुराग छोड़ दिया। पैसे निकालने के वक्त उसने अपना पैन कार्ड विवरण बैंक अधिकारियों को दे दिया। बस हमने इस के जरिए ही अपराधी का पता लगाया और गिरफ्तार कर लिया।‘
पुलिस ने कहा कि सिंह अनेकों इंश्योरेंस कंपनियों के लिए काम करता था। दूसरे राज्यों में भी करेलिया की तरह के एजेंट हैं जो सिंह के लिए काम करते हैं। करेलिया ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया है और गांधी की तरह ही उन्होंने शहर के 20 से अधिक लोगों को धोखा दिया है।
उसके घर के जांच के दौरान पुलिस को अनेकों कैंसिल चेक और विभिन्न कंपनियों के इंश्योरेंस पॉलिसी प्राप्त हुए।
नौकरी छोड़ने से पहले सिंह ने वैसे कस्टमर्स के डाटा को चुरा लिया था जिनकी पॉलिसी मैच्योर हो गयी थी या फिर फिक्स डिपॉजिट की मैच्योरिटी का इंतजार कर रहे थे। डाटा से लैस सिंह कस्टमर्स को इंश्योरेंस कंपनी के ऑफिसर के तौर पर कॉल किया करता था। कस्टमर्स को बिना परेशानी के पैसे निकालने का वायदे के साथ उनसे कैंसिल चेक और एक 300 रुपये का चेक लेता था।
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पुलिस के अनुसार, चेक भरने के लिए कस्टमर्स को अपना पेन दिया करता था। पेन में ऐसी स्याही होती थी जिसे बाद में आसानी से मिटाया जा सके। इसके बाद हस्ताक्षर को छोड़ सभी चीजों को मिटाकर नई राशि भरकर पैसे निकाले जाते थे। रकम की यह राशि अधिकतम 50,000 रुपये की ही होती थी ताकि बिना किसी परेशानी के पैसे निकाले जा सकें।