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रतन टाटा के दिल में बसे नैनो प्रोजेक्ट को बंद करना चाहते थे मिस्त्री !

मिस्त्री ने इस बात का खुलासा किया है कि नैनो परियोजना बेहद असफल रही है और वह इसे बंद करने को इच्छुक थे।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Wed, 26 Oct 2016 10:40 PM (IST)Updated: Thu, 27 Oct 2016 10:08 AM (IST)
रतन टाटा के दिल में बसे नैनो प्रोजेक्ट को बंद करना चाहते थे मिस्त्री !

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । रतन टाटा के दोबारा चेयरमैन बनने के साथ ही यह सवाल उठ गया है कि क्या वह अपनी सबसे पसंदीदा परियोजना नैनो कार में नई जान फूंकने की कोशिश करेंगे। वैसे निष्कासित चैयरमैन साइरस मिस्त्री ने अपने ई-मेल में नैनो को लेकर जो बातें सामने लाई है उससे साफ है कि टाटा के लिए नैनो को एक सफल परियोजना में तब्दील करना बहुत ही टेढ़ी खीर होगी। मिस्त्री ने इस बात का खुलासा किया है कि नैनो परियोजना बेहद असफल रही है और वह इसे बंद करने को इच्छुक थे।

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मिस्त्री ने अपने ई-मेल में यहां तक कहा है कि नैनो को बंद किये बगैर टाटा मोटर्स को एक लाभप्रद इकाई में तब्दील नहीं किया जा सकता। मिस्त्री ने वैसे तो इस आरोप की आड़ में रतन टाटा को भी घसीट लिया है लेकिन उन्होंने निश्चित तौर पर नैनो के भविष्य को लेकर अहम प्रश्न खड़े कर दिए हैं। नैनो को लेकर मिस्त्री ने रतन टाटा की सत्यनिष्ठा व कारपोरेट गवर्नेस के उनके इरादे पर भी सवाल उठा दिया है।

मिस्त्री ने टाटा पर लगाया साजिश करने का आरोप

मिस्त्री ने लिखा है कि हम नैनो को इसलिए बंद नहीं कर सके क्योंकि इससे भावनात्मक मुद्दा जुड़ा हुआ था और ऐसा करने का मतलब होता कि इलेक्टि्रक कार बनाने वाली एक ऐसी कंपनी को 'ग्लाइडर' की आपूर्ति बंद हो जाती जिसमें रतन टाटा की बड़ी हिस्सेदारी है। इसके बाद उन्होंने लिखा है कि एक लाख की कीमत के भीतर कार बनाने की यह योजना शुरु से ही लागत से ज्यादा की रही। इस परियोजना पर टाटा समूह को एक हजार करोड़ रुपये की हानि उठानी पड़ी है।

टाटा समूह को देने होंगे संगीन आरोपों के जवाब

साफ है कि मिस्त्री ने नैनो को लेकर रतन टाटा की अगुवाई में अगर कोई सकारात्मक फैसला किया जाता है तो उसे अब और ज्यादा मुश्किल कर दिया है। वैसे बिक्री के लिहाज से टाटा नैनो का प्रदर्शन दिन ब दिन लचर होता जा रहा है। पिछले वर्ष टाटा नैनो की नई लांचिंग की गई थी लेकिन इससे भी बिक्री पर कोई असर नही पड़ा। हालत यह है कि एक वर्ष पहले जहां इसकी 2300-2400 कारों की हर महीने बिक्री होती थी वह अब घट कर 500 रह गई है। रतन टाटा ने इसे आम जनता की कार कह कर लांच किया था। लेकिन शुरु से ही कभी भी यह ग्राहकों की पसंद नहीं बन पाई।


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