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सावधान! इस खबर को जान लेंगे तो 'मीट' से कर लेंगे तौबा

क्या आप मीट, परिष्कृत अनाज और उच्च कैलोरी के पेय पदार्थो का ज्यादा सेवन करते हैं? अगर ऐसा है तो सावधान हो जाएं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 23 Jan 2018 03:42 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jan 2018 08:49 AM (IST)
सावधान! इस खबर को जान लेंगे तो 'मीट' से कर लेंगे तौबा
सावधान! इस खबर को जान लेंगे तो 'मीट' से कर लेंगे तौबा

नई दिल्ली (जेएनएन)। क्या आप मीट, परिष्कृत अनाज और उच्च कैलोरी के पेय पदार्थो का ज्यादा सेवन करते हैं? अगर ऐसा है तो सावधान हो जाएं। नए अध्ययन में आगाह किया गया है कि इस तरह के आहार से आंत के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। अमेरिका के हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने कहा कि सूजन का कारण बनने वाले इस तरह के आहार का संबंध पुरुषों और महिलाओं में कोलोरेक्टल कैंसर के बढ़ते खतरे से है। इसका सबसे ज्यादा खतरा मोटापे से पीड़ित लोगों में पाया गया।

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कोलोरेक्टल कैंसर सामान्य प्रकार का एक कैंसर है और इस रोग में सूजन की अहम भूमिका होती है। इस तरह के आहार से शरीर में सूजन बढ़ सकती है। इसलिए आहार में बदलाव कर कोलोरेक्टल कैंसर से बचा जा सकता है। यह निष्कर्ष 1.21 लाख पुरुषों और महिलाओं पर 26 साल तक किए गए अध्ययन के आधार पर निकाला गया है।

खून की एक जांच 'कैंसरसीक' से होगी आठ प्रकार के कैंसर की पहचान

वैज्ञानिकों ने कैंसर जांच के क्षेत्र में बड़ी सफलता पाई है। उन्होंने रक्त की एक ऐसी जांच विकसित की है, जिसकी मदद से आठ प्रकार के कैंसर की पहचान की जा सकती है। इस जांच से प्रारंभिक अवस्था में ही यह पता भी लग सकता है कि बीमारी शरीर के किस हिस्से में है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, इस सिंगल ब्लड टेस्ट को 'कैंसरसीक' नाम दिया गया है। यह नॉनइन्वेसिव (शरीर में किसी उपकरण को पहुंचाए बगैर चिकित्सकीय प्रक्रिया) और बहु विश्लेषक जांच है। इस टेस्ट से एक साथ आठ कैंसर प्रोटीनों के स्तर का मूल्याकंन और रक्त में मौजूद डीएनए से कैंसर जीन की मौजूदगी का पता लग सकता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि इस जांच को विकसित करने का मकसद आठ प्रकार के सामान्य कैंसरों की जांच करने का है। अमेरिका में कैंसर से होने वाली कुल मौतों में से 60 फीसद की इस तरह के सामान्य कैंसर से जान चली जाती है। फिलहाल जो जांच मौजूद है उससे पांच तरह के कैंसर की ही पहचान हो सकती है। अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में ऑन्कोलॉजी और पैथोलॉजी के प्रोफेसर निकोलस पापाडोपोलस ने इसे बेहद उपयोगी बताया है। उन्होंने कहा कि इसकी मदद से प्रारंभिक अवस्था में ही कैंसर की जांच हो सकेगी। 

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