सियासी दांव है मायावती का इस्तीफा, जानिए- क्या है इसकी वजह
बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। मायावती ने कहा कि जब सत्तापक्ष मुझे अपनी बात रखने का भी समय नहीं दे रहा है तो मेरा इस्तीफा देना ही ठीक है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बसपा की दरकती सियासी जमीन के बीच मायावती के इस्तीफे को सिर्फ एक राजनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है। राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के दलित कार्ड खेलने की सियासी चाल से तिलमिलाई मायावती को लगने लगा है कि बसपा का कोर वोट बैंक पूरी तरह उनसे अलग न हो जाए। राज्यसभा से मायावती के इस्तीफे को अपनी जमीन बचाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
बसपा को जहां अपनी धुर विरोधी भारतीय जनता पार्टी से खतरा है, वहीं संप्रग के सहयोगी दलों से बराबर की आशंकाएं हैं। कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और आगामी 2019 के संसदीय चुनाव की पृष्ठभूमि में भाजपा ने दलित नेता को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर सियासत की बिसात बिछा दी है। बसपा के लिए उत्तर प्रदेश के दलित नेता रामनाथ कोविंद का विरोध करना भारी पड़ सकता है।
दूसरी ओर, संप्रग समेत संयुक्त विपक्ष ने भी जवाब में दलित कार्ड खेलते हुए कांग्रेस की महिला नेता मीरा कुमार को उतारा है। बसपा इस पूरे दलित राजनीति के खेल में मूक दर्शक बनी रही। मायावती को लग रहा है कि दलित राजनीति पर उनका एकाधिकार टूट रहा है। बसपा की बौखहालट उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सिर्फ 19 सीट मिलने के साथ ही शुरु हो गई थी। जबकि भाजपा को 303 सीटें मिलीं। भाजपा को सबसे अधिक बढ़त बसपा के मजबूत गढ़ मिली है। मायावती की झुंझलाहट उस समय खुलकर सामने आई, जब उन्हें सहारनपुर में हेलिकाप्टर से जाने से रोक दिया गया।
बसपा के अपने विश्वस्त नेताओं के पार्टी छोड़कर चले जाने से अकेली पड़ रही मायावती को राजनीति में लगातार मात मिल रही है। इन्हीं सब कारणों से नाराज मायावती की हताशा राज्यसभा में फट पड़ी और उन्होंने इस्तीफे का दांव खेल दिया है। यूं तो वर्तमान स्वरूप में इस्तीफे के स्वीकार होने की संभावना ही कम है। वहीं राज्यसभा में मायावती का यह काल अप्रैल 2018 में खत्म हो रहा है।
जानिए- क्या हुअा सदन में
मंगलवार की सुबह विपक्ष तैयारी के साथ आया था। विपक्षी सांसद बैनर के साथ मौजूद थे। कार्यवाही शुरू होते ही सरकार पर आरोपों की झड़ी लगी। जवाब सरकारी पक्ष की ओर से भी आया। राज्यसभा में तब सनसनी फैली जब मायावती इस्तीफे की धमकी दे दी। ध्यान रहे कि कुछ महीने पहले ऊना में दलितों पर हमले को लेकर भी मायावती सदन में ऐसा ही तेवर दिखाया था। मंगलवार को सहारनपुर दंगे के बाबत उपाध्यक्ष ने उन्हें कुछ मिनटों में भाषण खत्म करने को कहा। वक्त गुजरा तो घंटी बजाकर उन्हें इसकी याद दिलाई गई। मायावती आपा खो बैठीं। उन्होंने तैश में उपसभापति पर जमकर बरसते हुए कहा, 'जब आप मुझे सदन में बोलने नहीं देते हैं तो मैं इस्तीफा दे देती हूं।' उसी अंदाज में वह सदन छोड़कर चली गईं।
मायावती ने लगाया ये अारोप
मायावती ने विधिवत अपना इस्तीफा शाम को राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को सौंप दिया। मायावती ने अपने इस्तीफे में कहा 'मैं शोषितों, मजदूरों, किसानों और खासकर दलितों के उत्पीड़न की बात सदन में रखना चाहती थी। सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में जो दलित उत्पीड़न हुआ है, मैं उसकी बात उठाना चाहती थी। लेकिन सत्ता पक्ष के सभी लोग एक साथ खड़े हो गए और मुझे बोलने का मौका नहीं दिया गया।
बसपा प्रमुख ने कहा 'मैं दलित समाज से आती हूं और जब मैं अपने समाज की बात नहीं रख सकती हूं तो मेरे यहां होने का क्या लाभ है।' लेकिन मायावती के दिये इस्तीफे की भाषा को लेकर संदेह है कि वह मंजूर होगा भी या नहीं। बहरहाल, मायावती सार्वजनिक तौर पर दलितों के मुद्दे पर अपना रोष जताने की मंशा में सफल हो गई है। कांग्रेस व वाम दल के सदस्यों ने मायावती के साथ ही सदन छोड़ दिया, जिसके बाद सदन कार्य राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि मायावती ने उपसभापति का अपमान किया है, जिसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए।
यह भी पढ़ें: लखनऊ में मायावती के बाद अखिलेश से मिली मीरा कुमार