पीएम ने दिखाया विपक्ष को आईना
केंद्र में बहुमत की सरकार बनाने के बाद भी लगातार विपक्ष की टीका टिप्पणियों का सामने कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पूरा हिसाब किताब चुकता कर दिया। पिछले सत्र के कड़वे अनुभव से सतर्क प्रधानमंत्री ने खरे-खरे शब्दों में कांग्रेस काल में हुए कामकाज को भी कठघरे
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र में बहुमत की सरकार बनाने के बाद भी लगातार विपक्ष की टीका टिप्पणियों का सामने कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पूरा हिसाब किताब चुकता कर दिया। पिछले सत्र के कड़वे अनुभव से सतर्क प्रधानमंत्री ने खरे-खरे शब्दों में कांग्रेस काल में हुए कामकाज को भी कठघरे में खड़ा किया और भूमि अधिग्रहण पर समर्थन भी मांगा तो आक्रामक लहजे में ही।
70 मिनट के भाषण में उन्होंने यह सुनिश्चित कर लिया कि स्वच्छता अभियान से लेकर जन-धन जैसी कई योजनाओं का उपहास अब विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा। वहीं भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सड़क से लेकर संसद तक प्रदर्शन कर रहे विपक्ष से राज्यों के नाम पर समर्थन मांगा तो यह याद दिलाते हुए पिछली सरकार में जो कमी रह गई थी उसे दुरुस्त किया जाना चाहिए।
बजट सत्र में पहली बार बोलने के लिए खड़े हुए प्रधानमंत्री ने पूरे सत्र की दिशा तय करने की कोशिश की। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए मोदी का भाषण कटाक्ष से भी भरा था।
मनरेगा पर कटाक्ष
मनरेगा बंद किए जाने की आशंका पर चुटकी लेते हुए उन्होंने जोरदार तरीके से कहा, 'मेरी राजनीतिक सूझबूझ पर तो आप सवाल नहीं उठाते होंगे..मनरेगा तो आपकी विफलताओं का जीता जागता स्मारक है।.लोग देख रहे हैं कि साठ साल बाद भी लोगों को गड्डे खोदने को कहा गया है..मैं उसे बंद क्यों करूंगा। इसे तो गाजे-बाजे के साथ सालों चलाया जाएगा।'
काले धन पर चेताया
मोदी ने काला धन विदेशी बैंकों से देश में लाने के वादे की याद दिलाते हुए कहा कि किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। उनकी सरकार इस रास्ते से डिगेगी नहीं। बाद में कोई ये आरोप न लगाए कि उनका उत्पीड़न हो रहा है। काला धन के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता पर उन्होंने याद दिला दिया कि नई सरकार ने ही एसआइटी बनाई है। कोयला ब्लाक के भ्रष्टाचार की याद दिलाते हुए उन्होंने कहा कि जिसे जीरो लॉस थ्योरी बताया जा रहा था उसी कोयले के जरिए राज्यों का खजाना भर रहा है।
नाम में क्या रखा है
मोदी पिछली और मौजूदा सरकार के छोटे बड़े फैसलों की याद दिलाते गए और कहा कि विपक्ष यह आरोप लगा रहा है कि उनकी योजनाओं के नया नाम देकर चला रहे हैं। लेकिन वह यह भूल रहे हैं कि महत्व नाम का नहीं काम का होता है।
मुद्दा नाम नहीं समस्या है और सरकार समस्या दूर करने की कवायद में जुटी है। वरना तो संप्रग काल के निर्मल ग्राम को भी पूर्ववर्ती अटल बिहारी वाजपेयी काल के संपूर्ण स्वच्छता अभियान का ही बदला हुआ नाम माना जाएगा। मोदी ने कहा कि वह विदेश भी इस सोच के साथ जाते हैं कि देश के आदिवासी, पिछड़ों, गरीबों के जीवन में बदलाव ला सकें। फिर भी विपक्ष संसद में आने के लिए उन्हें वीजा देने का व्यंग करता है।
घेरे में मुलायम
सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी लपेटे में आ गए। मोदी ने मुलायम के भाषण का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने वाराणसी के अस्सी घाट में सफाई को लेकर सवाल उठाया था। 'लेकिन मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि हंसू या रोऊं। पता नहीं वह उत्तर प्रदेश सरकार की रिपोर्ट कार्ड पेश कर रहे हैं या केंद्र की।' कुछ क्षण के लिए सत्ता पक्ष के साथ साथ पूरा विपक्ष भी ठहाके लगाने को मजबूर हो गया।
भूमि अधिग्रहण में कमी तो सुधार
प्रधानमंत्री ने भाषण के दौरान भूमि अधिग्रहण के लिए विपक्ष से समर्थन तो मांगा लेकिन यह बताते हुए कि कमी में सुधार करने का वक्त आया है तो कर्तव्य निभाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब सभी राज्य के मुख्यमंत्रियों ने विकास के लिए भूमि विधेयक में संशोधन की मांग की है तो फिर क्या हर दल को इस पर विचार नहीं करना चाहिए।
हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान विधेयक में किसानों के खिलाफ कोई प्रावधान साबित होता तो वह बदलने को तैयार हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इसी मुद्दे पर पिछले कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे विपक्षी दल आज पूरी तरह चुप रहे।
दरअसल अधिकतर बड़े दलों की किसी न किसी राज्य में सरकार है और मोदी ने इसी नब्ज को पकड़ा। उन्होंने कहा कि इसे प्रतिष्ठा का विषय मत बनाइए। श्रेय राजग सरकार नहीं लेगी। बाहर प्रदर्शन कीजिए लेकिन संसद में विधेयक को पारित कराइए ताकि राज्यों के विकास का रास्ता प्रशस्त हो।
राष्ट्र का होता है अपना दर्शन
पिछला सत्र धर्मातरण और घर वापसी जैसे मुद्दों को लेकर बाधित रहा था। उसकी झुलसन अभी भी बाकी है। ऐसे में मोदी ने कहा कि राजनीतिक कारणों से सांप्रदायिकता का जहर घुल रहा है। लेकिन सरकार में संप्रदाय के नाम पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता। कोई भी राष्ट्र किसी विचारधारा से नहीं चलता। राष्ट्र का अपना दर्शन होता है और भारत में संविधान के दायरे में सबका साथ लेकर ही सरकार विकास के रास्ते पर आगे बढ़ेगी।