मणिपुर में भाजपा की नई सरकार के सामने कई चुनौतियां
बिरेन सिंह के मणिपुर के पहले भाजपा मुख्यमंत्री बने हैं। अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती विवादों से घिरे इस राज्य के सभी समुदायों के लिए आपसी स्वीकार्य रास्ते की तलाश करना है।
नई दिल्ली, जेएनएन। फुटबाल खिलाड़ी के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले नोंगथोम्बम बिरेन सिंह मणिपुर में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बन गए। अब इनके सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है, जिसे उनको पार करना होगा। राज्य में महीनों से चल रही आर्थिक नाकेबंदी भाजपा सरकार बनते ही खत्म हो गया। यह मणिपुर का बहुत बड़ा मुद्दा था। फिलहाल मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह ने चुनौती की पहली सीढ़ी पार कर ली है।
पहली चुनौती कर ली है पार
बीरेन सिंह का अब तक का सफर भले आसान व दिलचस्प रहा हो, उनके लिए आगे की राह काफी मुस्किलों भरा है। विधानसभा की महज 60 सीटों वाला ये राज्य लंबे अरसे से कई जटिल समस्याओं से जूझ रहा है। इनमें सबसे प्रमुख रही आर्थिक नाकेबंदी, जिसे बिरेन सिंह की सरकार ने खत्म कर दिया है।
अलग जिलों के गठन के विरोध में नगा संगठन यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) ने बीते साल नवंबर से ही राज्य की जीवनरेखा कही जाने वाली दोनों प्रमुख सड़कों पर आर्थिक नाकेबंदी कर रखी थी। राज्य को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली सड़कों, नेशनल हाइवे-2 और 37 पर वाहनों की आवाजाही ठप थी। यह पर्वतीय राज्य सब्जियों और खाने-पीने की दूसरी चीजों के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर है। लेकिन वाहनों की आवाजाही ठप होने की वजह से आवश्यक वस्तुएं सप्लाई बाधित है।
वैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने भाजपा के सत्ता में आने के बाद राज्य को बंद और नाकेबंदी-मुक्त करने का वादा किया था जिसे पूरा कर दिया गया है। इस मामले में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का कहना था कि राज्य में महीनों से जारी नाकेबंदी खत्म करना सरकार की पहली प्राथमिकता होगी।
इस पहाड़ को करना होगा पार
इसके अलावा नगा उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नगालैंड (एनएससीएन) के इसाक-मुइवा गुट और केंद्र सरकार के बीच हुई शांति समझौते को लेकर भी राज्य के बहुसंख्यक मैतेयी तबके में संशय है। यही वजह है कि कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान के दौरान भाजपा के खिलाफ इस समझौते का इस्तेमाल तुरुप के पत्ते की तरह किया। इस समझौते के तहत राज्य के नगा-बहुल इलाकों को ग्रेटर नगालैंड में शामिल करने जैसे प्रावधान होने के संदेह में यह राज्य हिंसा का लंबा दौर झेल चुका है।
अब नई सरकार के लिए क्षेत्रीय अखंडता को बरकरार रखते हुए इस मुद्दे पर घाटी और पर्वतीय इलाके के लोगों के बीच बढ़ती दूरियों को कम करने की चुनौती होगी। दरअसल मणिपुर घाटी और पर्वतीय इलाकों में बंटा है। घाटी में मैतेयी जनजाति की बहुलता है तो पर्वतीय इलाकों में नगा जनजातियों की। इन दोनों के बीच अक्सर टकराव होता रहा है। सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को राज्य से खत्म करने का मुद्दा वैसे तो काफी पुराना है। लेकिन नई सरकार के सामने इस मुद्दे से निपटने की भी कड़ी चुनौती होगी।
विकास पर देना होगा जोर
मणिपुर में विकास की गति ठप होने और व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगते रहे हैं। नई सरकार के सामने अपने कामकाज में पारदर्शिता बरतते हुए राज्य में विकास की गति को तेज करने की अहम चुनौती होगी। इबोबी सिंह सरकार के खाते में कम से कम यह कामयाबी तो दर्ज है ही कि तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अस्थिरता के लिए मशहूर पूर्वोत्तर इलाके के इस राज्य में लंबे समय तक एक स्थिर सरकार मुहैया कराई थी।
राज्य की संवेदनशील परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए नई सरकार के लिए राज्य को राजनीतिक स्थिरता देना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा।