झुग्गी बस्ती में ज्ञान का दीप जला रहीं ममता कोचर
समाज के लिए कुछ करने की सोच भले ही कई लोग रखते हों, लेकिन बहुत कम ही लोग इस जज्बे को हकीकत में बदल पाते हैं। इनमें से एक हैं दिल्ली की पॉश कालोनी नारायणा विहार की निवासी ममता कोचर, जिन्होंने समाज के लिए कुछ करने की इच्छा को सिर्फ
दिल्ली (गौतम मिश्रा)। समाज के लिए कुछ करने की सोच भले ही कई लोग रखते हों, लेकिन बहुत कम ही लोग इस जज्बे को हकीकत में बदल पाते हैं। इनमें से एक हैं दिल्ली की पॉश कालोनी नारायणा विहार की निवासी ममता कोचर, जिन्होंने समाज के लिए कुछ करने की इच्छा को सिर्फ सोच बनकर मरने नहीं दिया। ममता नारायणा से सटी झुग्गी बस्ती में जाकर घरों में शिक्षा का दीप जलाने में जुटी हैं। वे बच्चों को न सिर्फ पढ़ाती हैं, बल्कि उनमें संस्कार के बीज भी बो रही हैं। वे फेडरेशन ऑफ नारायणा आरडब्ल्यूए से जुड़ी हैं।
गंदगी से भरे नाले के किनारे बसे राजीव गांधी कैंप में रहने वाले अधिकतर लोग मजदूर वर्ग से हैं। ये लोग बिहार, बंगाल व नेपाल से आए रहते हैं। ममता का कहना है कि यहां अधिकांश बच्चों के पिता मजदूरी करते हैं, वहीं घर की महिलाएं घरेलू सहायिका का काम करती हैं। इनके माता-पिता के घर से बाहर होने के कारण अधिकांश बच्चे पूरे दिन अकेले रहते थे। शिक्षा से अधिकांश बच्चों का दूर-दूर तक वास्ता नहीं था। घर के बाहर खेलने में इनका समय बीतता था। जो बच्चे स्कूल जाते भी थे वे यदि एक बार भी फेल हो गए तो दोबारा स्कूल जाना छोड़ देते थे। उनका कहना है कि एक बार वे जब किसी काम से कैंप की तरफ गई तो बच्चों की ऐसी दशा देखकर उन्हें काफी तकलीफ हुई। फिर उन्होंने इन बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का मन बनाया, लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था।
इस काम में सबसे बड़ी अड़चन इन बच्चों के माता-पिता ही थे। इन्हें इन बच्चों को पढ़ाने के लिए राजी करना बड़ी चुनौती थी। फिर तरकीब निकालते हुए पहले इन्हें सफाई का महत्व बताया। बच्चों के बीच टूथ पेस्ट व ब्रश वितरित किए गए। कई बच्चों ने कभी ब्रश का प्रयोग नहीं किया था। इसी तरह कुछ लड़कियों को शैंपू दिया गया। ऐसा करके बच्चों व इनके अभिभावकों का विश्वास जीता। फिर धीरे-धीरे इनकी कक्षाएं शुरू की गईं। कई बच्चों के परिवार में कोई पढ़ा-लिखा नहीं था। कई बच्चों ने स्कूल में दाखिला लिया, लेकिन फेल होने के बाद पढ़ाई छोड़ दी। ममता ने बताया कि इन बच्चों को साथ लेकर झुग्गी में रोजाना करीब दो घंटे इन्हें पढ़ाती थी। धीरे-धीरे बच्चों का दाखिला आसपास के स्कूलों में कराया गया। कई बच्चे जुट गए। सबसे बड़ी बात यह हुई कि इनके माता-पिता शिक्षा का महत्व अब जान चुके थे। फिर रोजाना के बजाय इन्हें अब गृह कार्य दे दिया जाता है और अब कभी दो दिन तो कभी तीन दिन बाद जाकर इन्हें पढ़ाती हूं। यह सिलसिला अब भी जारी है। ममता के अनुसार बच्चों को यहां नैतिक शिक्षा भी दी जाती है। इन सभी बातों का असर बच्चों पर हो रहा है।