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इस मुखर प्रदेश में है सबकुछ छिपा-छिपा

छाजा, बाजा और केश के लिए विख्यात पश्चिम बंगाल। भद्र जन, अकादमिक विरासत, संगीत और संस्कृति की समृद्धि के अतीत में जीता बंगाल। बेहद धीमी रफ्तार से सड़कों पर रेंगती ट्राम और फर्राटा भरती गाड़ियों के परिवेश वाला बंगाल। मिष्टि दोई (दही) और सिंघाड़े (समोसे) के लिए मशहूर बंगाल। माछेर झोल और चावल का बंगाल। बेहद

By Edited By: Published: Thu, 17 Apr 2014 02:30 AM (IST)Updated: Thu, 17 Apr 2014 08:10 AM (IST)

कोलकाता, [प्रशांत मिश्र]। छाजा, बाजा और केश के लिए विख्यात पश्चिम बंगाल। भद्र जन, अकादमिक विरासत, संगीत और संस्कृति की समृद्धि के अतीत में जीता बंगाल। बेहद धीमी रफ्तार से सड़कों पर रेंगती ट्राम और फर्राटा भरती गाड़ियों के परिवेश वाला बंगाल। मिष्टि दोई (दही) और सिंघाड़े (समोसे) के लिए मशहूर बंगाल। माछेर झोल और चावल का बंगाल। बेहद गर्म, आक्रामक और रंगीन चुनावी प्रचार लिए मशहूर बंगाल। यहां आज भी सबकुछ मौजूद है सिवाय चुनावी गर्माहट के।

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गुरुवार को यहां पहले चरण का मतदान है। प्रदेश का चुनावी इतिहास गर्म और हिंसात्मक रहा है लिहाजा पांच चरणों में बांटकर वोटिंग कराई जा रही है। लेकिन माहौल में न तो पुराना उत्साह है और न ही आक्रामकता और रंगीनी। चुनाव आयोग के शिकंजे ने चुनावी उत्सवधर्मिता के माहौल को लगभग खत्म कर दिया है। कहीं कहीं पोस्टर, बैनर और मकानों में झंडे लगे जरूर नजर आते हैं। चूंकि बंगाल में सभी दलों ने टालीवुड और बालीवुड के फिल्मी कलाकारों, संगीतकारों की भारी भरकम फौज चुनाव मैदान में उतारी है, इसलिए यह भी अंदाज लगाना मुश्किल होता है कि इनकी सभाओं, रोड शो या हाट बाजारों में चल रहे संपर्क अभियान में शामिल भीड़ वास्तव में वोट है या मनोरंजन या फिल्मी आकर्षण के लिए जमावड़ा। दरअसल यह शायद अकेला सूबा है जहां राजनीतिक प्रतिबद्धता तो मरने मारने तक को दिखती है लेकिन चुनावी मैदान में एक तिहाई से कुछ ज्यादा वैसे उम्मीदवार है, जिनकी प्रसिद्धि फिल्म और संगीत के कारण है। कोई भी दल इससे अछूता नहीं है। बप्पी लाहिरी, बाबुल सुप्रियो, जार्ज बेकर, मुनमुन सेन, संध्या राय, शताब्दी राय, तापस सेन, सुभाषिनी अली समेत कई अन्य अब राजनीति में अपना भविष्य आजमा रहे हैं। जाहिर है कि इनके आसपास इकट्ठी हो रही भीड़ भी वास्तविकता का अहसास नहीं कराती है। बातों बातों में ही व्यक्तिगत विचारधारा का संकेत देने वाले लोग भी बहुत आसानी से खुलने को तैयार नहीं है। खुद प्रत्याशियों के लिए भी यह चुनौती है।

हुगली से चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी चंदन मित्रा कहते हैं- रिस्पांस मिल रहा है लेकिन वह वोटों में तब्दील हो जाए तो आप कह सकते हैं कि वर्षो तक लाल रही राजनीतिक जमीन पर अब भगवा रंग भी छाप छोड़ेगा।' लेकिन अपनी विचाराधारा, काडर और कमिटमेंट वाले इस पश्चिम बंगाल में यदि ऐसा होता है तो शायद चमत्कार ही होगा। भाजपा के लिए यह बहुत आसान जमीन नहीं है।

नौजवान मतदाताओं की सोच अपनी होती है। शायद इसलिए कि वह भूत को भूलकर, वर्तमान को बदलने और भविष्य को बनाने की बात करते हैं। लेकिन यह शहरों तक सीमित है। ग्रामीण क्षेत्रों मे जो हाल कभी लेफ्ट का था, वह अब ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस का है। उन्होंने पकड़ मजबूत कर ली है। लेकिन उसके साथ ही लेफ्ट के वह तत्व भी आ गए हैं, जिसके खिलाफ ममता आवाज उठाती रही थी। जनता अभी भी असमंजस में है कि तेज गति विकास न हो पाने के कारण वह दुखी है या तीस पैंतीस साल वामदलों के अखंड काल से मुक्ति को वह अभी और जीना चाहती है।

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