संसद की स्थाई समिति ने कहा, कार्यपालिका का काम है न्यायाधीशों की नियुक्ति
संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में रिक्त पदों को भरे जाने में विलंब पर चिंता जताई गई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयो में न्यायाधीशों की नियुक्ति भले ही न्यायापालिका के एकाधिकार में चली गई हों लेकिन संसद की स्थायी समिति ने साफ कहा है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति वास्तव में कार्यपालिका का काम है न्यायपालिका की भूमिका उसमें सिर्फ परामर्श तक ही सीमित है।
संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट
समिति ने न्यायाधीशों की नियुक्ति व्यवस्था में न्यायपालिका का एकाधिकार देने वाले फैसलों को पलटे जाने और इसके लिए सरकार को उचित कदम उठाने की सलाह दी है। साथ ही कहा है कि संविधान संशोधनों पर सुप्रीमकोर्ट की कम से कम 11 न्यायाधीशों की पीठ को विचार करना चाहिये और संवैधानिक व्याख्या के मुद्दों पर भी 7 न्यायाधीशों की पीठ से कम को विचार नहीं करना चाहिये।
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ये सिफारिशें कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी संसद की स्थायी समिति ने गुरुवार को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में रिक्त पदों को भरे जाने में विलंब पर राज्यसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में की हैं। समिति ने न्यायाधीशों के खाली पड़े पदों पर चिंता जताते हुए सरकार और न्यायपालिका से जनहित में इन्हें जल्दी भरे जाने पर जोर दिया है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका के जरूरी काम में आता है और कार्यपालिका न्यायपालिका से परामर्श कर मिलकर इसे अंजाम देती है। न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायपालिका से परामर्श या न्यायपालिका की सहमति जरूरी होगी इस बहस को एक बार फिर हवा मिल गई है।
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समित की रिपोर्ट की खास बातें
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर सहमति (कंकरेंस) की जगह परामर्श (कन्सल्टेशन) शब्द का इस्तेमाल किया है। समिति ने सिफारिश की है कि ऐसे में संविधान के मूल भाव को बदलने वाले सुप्रीमकोर्ट के सैकेन्ड जजेस केस व अन्य फैसलों को पलटा जाना चाहिये और संविधान की पूर्व स्थिति वापस लायी जानी चाहिये इसके लिए सरकार उचित कदम उठा सकती है।
संविधान के 99वें संशोधन और एनजेएसी द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की लायी जा रही नयी व्यवस्था को सुप्रीमकोर्ट के पांच न्यायाधीशों द्वारा 4-1 के बहुमत से खारिज कर दिये जाने हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 99वां संविधान संशोधन लोकसभा में एकमत से और राज्यसभा में भी सिर्फ एक ही असहमति थी इसलिए वहां भी लगभग एकमत से पास हुआ था लेकिन इसे सुप्रीमकोर्ट ने खारिज कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीमकोर्ट में इस समय न्यायाधीशों के कुल 31 मंजूर पद हैं ऐसे में समिति सिफारिश करती है कि संविधान संशोधन से जुड़े मुद्दों पर सुप्रीमकोर्ट की कम से कम 11 न्यायाधीशों की पीठ को विचार करना चाहिये। इतना ही नहीं संवैधानिक व्याख्या से जुड़े मुद्दों पर भी 7 न्यायाधीशों से कम की पीठ को सुनवाई नहीं करनी चाहिये।
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समिति ने न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया (एमओपी) को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच चली आ रही तनातनी पर चिंता जताई है और उम्मीद जताई है कि दोनों पक्ष जल्दी ही इस विवाद को सुलझा लेंगे ताकि न्यायिक प्रशासन इससे प्रभावित न हो। समिति ने यह भी कहा है कि एमओपी फाइलन होने तक मौजूदा व्यवस्था से ही न्यायाधीशों की नियुक्ति जारी रहनी चाहिए। समिति ने न्यायाधीशों के लंबे समय से खाली पड़े पदों और कई हाईकोर्टो द्वारा बहुत देरी से नियुक्ति की सिफारिश किये जाने पर चिंता जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक न्यायपालिका और सरकार दोनों ही रिक्तियां भरने में तय समयसीमा का पालन नहीं कर रही हैं।
न्यायधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी बने
कमेटी ने न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को और ज्यादा पारदर्शी बनाने की बात करते हुए कहा है कि उम्मीदवार की योग्यता मानदंड, चयन का तरीका और मेरिट के आंकलन का ब्योरा और रिक्तियों की कुल संख्या सार्वजनिक होनी चाहिये हालांकि चुने गये उम्मीदवारों को नामों को नियुक्ति प्रक्रिया पूरी होने तक गोपनीय बनाये रखने की बात कही गयी है। साथ ही कहा कि कई बार मुख्य न्यायाधीश बहुत कम अवधि के लिए तैनात होते हैं। ऐसे में उनका कार्यकाल तय किया जाना चाहिए।
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