...जब नहीं रही रणथंभौर को आबाद करने वाली मशहूर 'मछली'
रणथंभौर की मशहूर बाघिन 'मछली' की मौत हो गई है। 'मछली' पिछले काफी समय से बीमार चल रही थी।
जयपुर, (जेएनएन)। रणथंभौर और सरिस्का अभयारण्यों को अपनी संतति से आबाद करने वाली बाघिन 'मछली' की मौत हो गई है। पांच दिनों से कुछ भी नहीं खा रही 'मछली' ने गुरुवार सुबह अंतिम सांस ली। वन विभाग की ओर से मछली का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जा रहा है।
मछली की उम्र 19 वर्ष थी जो बाघों के हिसाब से बहुत ज्यादा मानी जाती है और रणथंभौर के 60 प्रतिशत से ज्यादा बाघ 'मछली' की ही संतान है। रणथंभौर के बाघ ही सरिस्का भेजे गए थे, इसलिए सरिस्का में बाघों का कुनबा बढाने में भी 'मछली' का योगदान है। जंगल के जानकार बताते हैं कि जब रणथंभौर में सिर्फ 17 बाघ रह गए थे, तब से यहां मछली का राज है।
पिछले कई दिन से मछली पूरी तरह अशक्त हो गई थी और उम्र का असर भी साफ दिख रहा था। उसके एक पैर में घाव हो गया था और इस घाव में कीड़े भी हो गए थे। इसके चलते वह चल फिर नहीं पा रही थी। उसे खाना भी वन विभाग के कर्मचारी ही दे रहे थे।
इसलिए नाम पड़ा 'मछली'
बाघिन के माथे पर मछली जैसी एक आकृति थी और इसी कारण इसका नाम 'मछली' पड़ा था। इस आकृति ने ही 'मछली' को दुनिया के छायाकारों की पहली पसंद बना दिया था। उसे दुनिया की सबसे ज्यादा फोटाग्राफ्ड बाघिन माना जाता है।
मगरमच्छ से लड़ाई में गंवा दिए थे दांत
'मछली' का रणथंभौर में एक-छत्र राज चलता था। साल 2006 में एक 18 फुुट लम्बे मगरमच्छ के साथ हुई मुठभेड़ में 'मछली' के आगे के दांत टूट गए थे। इसके बावजूद उसकी ताकत में कमी नहीं आई थी, लेकिन बाद में फिर और दांत टूटे व धीरे-धीरे वह कमजोर होती गई। उसे दिखना कम हो गया और पिछले करीब एक सप्ताह से 'मछली' एक ही जगह बैठी हुई थी। कुछ खा पी नहीं रही थी। डाॅक्टरों ने उसे मांस में दवाई देने की कोशिश भी की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
कैमरे में देख रहे थे बाघिन को, तभी सामने आ खड़ी हुई, फिर क्या हुआ, पढ़ें