सुकमा में जवानों की शहादत के पीछे थकान भी अहम कारण
नक्सलियों की बड़ी संख्या और ग्रामीणों को ढाल के कारण वे ज्यादा कुछ नहीं कर पाए।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुकमा में नक्सलियों के हाथों जवानों के शहीद होने के पीछे उनकी थकान भी एक प्रमुख वजह हो सकती है। सुकमा के दौरे से लौटने के बाद गृह सचिव को सौंपी अपनी रिपोर्ट में गृह मंत्रालय के नक्सल प्रबंधन विभाग के सलाहकार ने यह आशंका जताई है। रिपोर्ट के अनुसार, नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए जवानों में से कई पांच-पांच साल से इसी इलाके में तैनात थे, जबकि नियम के मुताबिक तीन साल में उनका तबादला हो जाना चाहिए था।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, सीआरपीएफ के पूर्व महानिदेशक के विजय कुमार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सुकमा में नक्सलियों के खिलाफ आपरेशन कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ आपरेशन से ज्यादा खतरनाक है। यहां लंबे समय तक तैनाती के कारण जवान मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं। इसी कारण हर तीन साल बाद उनके तबादले का नियम है। लेकिन इसका पूरी तरह पालन नहीं किया गया और कई जवान पांच-पांच साल से इसी इलाके में तैनात थे।
नक्सलियों की तुलना में जवान तकनीक रूप से बेहतर हथियारों से लैस थे। नक्सलियों की बड़ी संख्या और ग्रामीणों को ढाल के कारण वे ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। इसके साथ ही जवान अलग-अलग बंट गए थे। कुछ जवान सड़क पर थे, जबकि कुछ जंगल के भीतर थे। नक्सली हमले में सबसे अधिक नुकसान जंगल के भीतर मौजूद जवानों को हुआ। रिपोर्ट में माना गया है कि नक्सलियों के गढ़ में होने के बावजूद जवान पूरी तरह से चौकस नहीं थे और सीआरपीएफ के महानिदेशक इसकी जांच कर रहे हैं।
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