दुनिया भर में मंडरा रहा जीका वायरस का खतरा, जानें क्या हैं लक्षण और उपाय
जीका वायरस का खतरा भारत समेत पूरे विश्व में मंडरा रहा है। इसका सबसे बड़ा खतरा गर्भ में पल रही संतान पर होता है। फिलहाल इसके टीके का इजाद अभी तक नहीं हुआ है, लिहाजा बचाव ही इसका सबसे बड़ा हथियार है।
नई दिल्ली। जीका वायरस के बढ़ते प्रकोप से पूरी दुनिया संकट में है। इस वायरस का सबसे बड़ा खतरा आपकी अजन्मी संतान को है। लिहाजा ब्राजील समेत कुछ और देशों ने इसके प्रकोप को देखते हुए अपने यहां पर इमरजेंसी लगा दी है और लोगों को बच्चे पैदा न करने की हिदायत तक दे डाली है। इससे ग्रस्त बच्चा लकवाग्रस्त भी हो सकता है। भारत भी इससे अछूता नहीं है।
इस वायरस को खत्म करने के लिए अभी कोई टीका इजाद नहीं हुआ है। इसके लिए शोध चल रहा है और संभावना है कि अगले दो वर्षों में यह दुनिया के सामने आ जाएगा, लेकिन तब तक बचाव ही इसका एकमात्र उपाय है। इस बीमारी के लक्षणों के बारे में बेहद कम लोग जानते हैं।
कैसे फैलता है जीका वायरस
जीका वायरस एडीज मच्छर के काटने से फैलता है जो साफ पानी में पनपता है और दिन के उजाले में काटता है। अमेरिका में यह मच्छर ज्यादातर पाया जाता है। इसके अलावा एशियन टाइगर मच्छर के काटने से भी यह वायरस फैलता है। हालांकि अभी इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि इस मच्छर के काटने से यह वायरस कितना तेजी से फैलता है। इसके अलावा कुछ रिपोर्टस के मुताबिक ब्लड ट्रांसफ्यूजन और सेक्स करने से भी यह वायरस फैलता है। इसकी वजह है कि जांच के दौरान एक मरीज के वीर्य में इसका वायरस पाया गया है। रिपोर्टस के मुताबिक इसका पता लगना इतना आसान नहीं है। लगभग पांच में एक व्यक्ति इस वायरस की चपेट में आता है।
क्या हैं इस बीमार के लक्षण :-
- इस बीमारी से सबसे ज़्यादा ख़तरा गर्भवती महिलाओं को है, क्योंकि इसके वायरस से नवजात शिशुओं को माइक्रोसिफ़ेली होने का ख़तरा है।
- आंखों का लाल होना, जोड़ों में दर्द होना भी इसका एक लक्षण हैं।
- इसमें बच्चों के मस्तिष्क का पूरा विकास नहीं हो पाता और उनका सिर सामान्य से छोटा रह जाता है।
- बच्चों और बड़ों में इसके लक्षण लगभग एक ही जैसे होते हैं, जैसे बुखार, शरीर में दर्द, आंखों में सूजन, जोड़ों का दर्द और शरीर पर रैशेस हो जाते हैं।
- कम मामलों में यह बीमारी नर्वस सिस्टम को ऐसे डिसऑर्डर में बदल सकती है, जिससे पैरलिसिस भी हो सकता है।
क्या है इस वायरस का इतिहास:-
यह वायरस सबसे पहले यूगांडा के जीका जंगलों के बंदरों में वर्ष 1947 में पाया गया। इसके बाद ही इसका नाम जीका वायरस पड़ा था। 1954 में पहली बार किसी इंसान के अंदर ये वायरस देखा गया। 2007 में माइक्रोनेशिया के एक द्वीप याप में इस वायरस ने बड़ी तेज़ी से पैर पसारे और फिर यह वायरस कैरीबियाई देशों और लेटिन अमेरिका के देशों में फैल गया।