Move to Jagran APP

जानें कैसे तीस्‍ता नदी परियोजना और कर्ज के बहाने बांग्‍लादेश के करीब आया है चीन

तीस्‍ता नदी परियोजना को लेकर बांग्‍लादेश और चीन के बीच हुए समझौते के बाद उपजे हालात पर भारत पूरी नजर बनाए हुए है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 22 Aug 2020 03:49 PM (IST)Updated: Sun, 23 Aug 2020 08:08 AM (IST)
जानें कैसे तीस्‍ता नदी परियोजना और कर्ज के बहाने बांग्‍लादेश के करीब आया है चीन

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। भारत और बांग्‍लादेश के बीच वर्षों से रिश्‍ते बेहद सामान्‍य रहे हैं। समय-समय पर भारत ने आगे बढ़कर बांग्‍लादेश की मदद भी की है। लेकिन अब इन रिश्‍तों पर चीन का साया मंडराता दिखाई दे रहा है। दरअसल, भारत के इस डर की वजह चीन और बांग्लादेश में तीस्‍ता परियोजना से जुड़ा समझौता है।  अब ताजा समझौते के बाद माना जा रहा है कि चीन इस परियोजना का काम जल्‍द शुरू कर सकता है।

loksabha election banner

आपको बता दें कि दो दिन पहले ही भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने ढाका की यात्रा भी की थी। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत की मदद से बांग्लादेश में चलाई जा रही है कई परियोजनाओं में से रामपाल मैत्री पावर प्लांट व भारत-बांग्लादेश फ्रेंडशिप पाइपलाइन के अलावा तीन अहम रेल कनेक्टिविटी परियोनजाओं आखुरा-अगरत्तला, चिलाहाटी-हल्दीबारी और खुलना-मांगला रेल लाइनों का काम अगले वर्ष पूरा हो जाएगा।

भारत ने बांग्लादेश से प्रस्ताव किया है कि इन परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने के लिए एक संयुक्त मोनिटरिंग व्यवस्था की जाए। दरअसल, ढाका के इस संकेत के बावजूद भारत उसकी चीन से बढ़ती नजदीकियों को लेकर सतर्क है। लिहाजा भारत अपने किसी कदम से बांग्‍लादेश की हसीना सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी नहीं करना चाहता है। यही वजह है कि बांग्लादेश के लिए भारत की मदद की रफ्तार को तेज किया जा रहा है बल्कि उसकी जो भी दूसरी चिंताएं हैं उनका समाधान भी निकाला जा रहा है। 

आपको यहां पर ये भी बता दें कि तीस्‍ता नदी जल का मुद्दा दोनों देशों के बीच काफी समय से है। बांग्‍लादेश की तरफ से कुछ समय पहले भारत से तीस्‍ता नदी परियोजना को पूरा करने के लिए 8.5 अरब डॉलर की मांग की थी। इस मांग को पूरी करने में भारत ने असमर्थता जाहिर की थी। इसके बाद बांग्‍लादेश ने चीन से संपर्क साधा था, जिस पर चीन ने अपनी सहमति जाहिर की थी। ये पहली बार है जब चीन बांग्लादेश की नदी प्रबंधन से संबंधित किसी परियोजना में आर्थिक सहायता मुहैया करवा रहा है। 

तीस्ता उन नदियों में से एक है जो भारत से बांग्लादेश जाती है। इसका पानी दोनों देश साझा करते हैं। ये नदी उत्तरी सिक्किम में स्थित सो-ल्हामो झील से निकलती है और पश्चिम बंगाल के रास्‍ते 315 किमी का सफर पूरा कर बांग्‍लादेश में प्रवेश करती है। इस नदी के पानी के इस्‍तेमाल को लेकर बांग्‍लादेश कई बार मुखर भी होता रहा है। इस मसले को सुलझाने की कोशिश वर्ष 2011 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अपने ढाका दौरे के समय की थी। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध के बाद ये मसला जस का तस बना रहा। इसके बाद वर्ष 2014 में पीएम मोदी ने सत्‍ता में आकर पड़ोसी देशों के लिए नेबरहुड फर्स्ट नीति की शुरुआत की और सभी पड़ोसी देशों से संबंधों को मजबूत बनाने और विवाद सुलझाने को प्राथमिकता दी गई। वर्ष 2015 में पीएम मोदी और ममता बनर्जी ने बांग्लादेश की यात्रा की, तब भी ये मसला एजेंडा का हिस्‍सा था। उस वक्‍त भारत सरकार की तरफ से इस विवाद को सुलझाने का आश्वासन भी दिया था।

गौरतलब है कि भारत की दक्षिण एशिया नीति में बांग्लादेश का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वहीं पीएम मोदी की नेबरहुड फर्स्ट नीति में इसकी अपनी अहमियत है। बीते कई वर्षों से भूटान की तरह बांग्‍लादेश से भी भारत का कोई विवाद नहीं रहा है। उत्तरी पश्चिम बंगाल के पांच जिलों की खेती और बांग्लादेश की बड़ी आबादी इस पर निर्भर है। बांग्लादेश के निर्माण के बाद 1972 में भारत और बांग्‍लादेश के बीच नदी संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए एक संयुक्त जल आयोग का गठन किया गया था। 1983 में पहली बार इस आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट सौंपी थी। इस दौरान हुए समझौते में इस नदी का 39 फीसदी पानी भारत और 36 फीसदी पानी हिस्सा बांग्लादेश को देने का अंतरिम फैसला हुआ था। बाकी 25 फीसदी पानी को नदी में प्रवाह बनाए रखने के लिए छोड़ दिया गया था। हालांकि ये समझौता लागू नहीं हो सका।

भारत में इस नदी के पानी का इस्तेमाल एक सिंचाई और दो पनबिजली परियोजनाओं के लिए किया जा रहा है। 1996 में गंगा जल संधि के बाद बांग्‍लादेश ने तीस्ता नदी पर समझौते से संबंधित एक ड्राफ्ट तैयार किया। इसमें नदी का 48 फीसद पानी बांग्‍लादेश के लिए छोड़े जाने का जिक्र था। इस समझौते के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी कभी तैयार नहीं हुईं लिहाजा ये भी अधूरा ही रह गया। वर्ष 2011 के बाद से ही इस मुद्दे को सुलझाने में पश्चिम बंगाल सरकार अपनी सक्रियता नहीं दिखा रही है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.