अमेरिकी कानून ने जिगर के टुकड़े को किया दूर
इसे कहते हैं नियति। देवाशीष को पदोन्नत करके अमेरिका भेजा गया था। अब वहां देवाशीष को अपने बेटे को हासिल करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इसमें काफी पैसे भी खर्च हो रहे हैं। कोलकाता में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत देवाशीष साहा को गत 2
बालुरघाट, [भास्कर चटर्जी]। इसे कहते हैं नियति। देवाशीष को पदोन्नत करके अमेरिका भेजा गया था। अब वहां देवाशीष को अपने बेटे को हासिल करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इसमें काफी पैसे भी खर्च हो रहे हैं।
कोलकाता में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत देवाशीष साहा को गत 29 जुलाई में एक साल के लिए अमेरिका भेजा गया। वह अपने साथ पत्नी पामेला व 11 माह के पुत्र इंद्राशीष को भी ले गए। न्यू-जर्सी में कंपनी के इलेक्ट्रानिक इंजीनियर के पद पर काम भी शुरू किया। सब कुछ ठीक चल रहा था। बीते अगस्त में एक दिन इंद्राशीष पलंग से गिर गया। उसके सिर पर चोट आई। अस्पताल ले जाने पर चिकित्सक ने बच्चे का इलाज किया। ऑपरेशन करने वाले चिकित्सकों के मुताबिक बच्चे को पलंग से गिरने में चोट नहीं लगी, बल्कि अभिभावकों ने उसके साथ शारीरिक अत्याचार किया। अमेरिका के कानून के मुताबिक चाइल्ड प्रोटेक्शन टीम को इसकी जानकारी दी गई। डॉक्टरों की टीम ने बच्चे को उसके अभिभावक को नहीं सौंपने का निर्णय लिया। पिता ने अमेरिकी अदालत का सहारा लिया। अदालत ने भी बच्चे को उनके माता-पिता को न सौंपने का निर्देश दिया। देवाशीष अब भी अमेरिका में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
दक्षिण दिनाजपुर जिले के बालुरघाट स्थित विश्वासपाड़ा निवासी देवाशीष के पिता निर्मल कृष्ण साहा ने इस प्रकरण की जानकारी दी। बताया कि अमेरिका का कानून उनके पौत्र को छिनने का प्रयास क्यों कर रहा है, समझ में नहीं आ रहा। इस मामले में उन्होंने पश्चिम बंगाल के उच्च अधिकारियों से गुहार लगाई है।
गौरतलब है कि कुछ माह पहले भी इसी तरह राज्य के अभिज्ञान व एश्वर्या को नार्वे प्रशासन ने माता-पिता से छीन लिया था। इसी वर्ष दोनों को काफी जद्दोजहद के बाद नार्वे सरकार ने माता-पिता को लौटाया है।
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