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केदारनाथ आपदा: फिर जिंदगी संवारने में जुटे कदम

केदारघाटी की त्रासदी में सब कुछ गंवाने को ताउम्र अपनों को खोने का गम सालता रहेगा, लेकिन इस सबके बीच सकारात्मक यह कि आपदा में बुरी तरह टूट चुके कुछ परिवारों ने फिर से जिंदगी को संवाने की सार्थक कोशिशें शुरू कर दी हैं। आपदा को बुरे सपने की तरह भुलाकर ये लोग जिंदगी की राह पर आगे बढ़

By Edited By: Published: Mon, 16 Jun 2014 07:42 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jun 2014 07:56 AM (IST)

रुद्रप्रयाग [संवाद सहयोगी]। केदारघाटी की त्रासदी में सब कुछ गंवाने को ताउम्र अपनों को खोने का गम सालता रहेगा, लेकिन इस सबके बीच सकारात्मक यह कि आपदा में बुरी तरह टूट चुके कुछ परिवारों ने फिर से जिंदगी को संवाने की सार्थक कोशिशें शुरू कर दी हैं। आपदा को बुरे सपने की तरह भुलाकर ये लोग जिंदगी की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। दाद देनी होगी उनकी हिम्मत को जो इतना सब कुछ होने के बाद भी इस तरह का जज्बा दिखा रहे हैं। ऐसे लोग एक-दूसरे के लिए प्रेरणा बनकर उन्हें निराशा के गर्त से बाहर निकालने में मददगार साबित हो रहे हैं।

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केदारनाथ आपदा में सैकड़ों परिवारों ने ऐसे जख्म दिए कि शायद ही वह अपने जीवन में कभी भूल सकें, लेकिन कुदरत की मार से लोहा लेने वालों की भी कमी नहीं है। आपदा में अपना व्यवसाय, अपनों को खोने के बाद भी हिम्मत कर फिर से नई जिंदगी शुरू करने में जुटे हैं।

खाट निवासी गणेश प्रसाद कुमरंचली भी आपदा में हताहत हो गए थे। उनके परिवार में माता पिता के अलावा, पत्‍‌नी, दो बच्चे पांच भाई रह गए हैं। पत्‍‌नी माया देवी ने अपने परिवार एवं बच्चों के लिए घर से बाहर निकलने का साहस दिखाया। माया देवी वर्तमान समय में गुप्तकाशी स्थित एटी इंडिया एनजीओ में कार्य करती है। वहां से उन्हें कुछ मेहनताना मिलता है। इससे वे परिवार का भरण पोषण करती हैं। पूरे परिवार के रोजी रोटी की जिम्मेदारी माया के कंधों पर ही है।

न्यालसू रामपुर के देवेंद्र सिंह रावत भी ऐसे ही शख्स हैं, जिन्होंने आपदा में समूचा कारोबार चौपट होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। रोजी रोटी के लिए उनका परिवार पूरी तरह यात्रा सीजन पर ही निर्भरता था। पिछले दस वर्षो से खच्चर चलाकर अपने रोजगार कर परिवार का भरणपोषण कर रहा था, लेकिन आपदा में तीनों खच्चर मर गए। देवेन्द्र ने हिम्मत नहीं हारी और इस बार फिर से दो खच्चरों को केदारनाथ राशन सप्लाई में लगाकर अपना रोजगार कर रहा है। यही स्थिति देवेंद्र भट्ट की भी है। रामबाड़ा में होटल उनकी आय का जरिया था। होटल आपदा में तबाह हो गया था, एक वर्ष के वक्फे में देवेंद्र ने फिर से अपना रोजगार शुरू कर जीवन को मुख्य धारा से जोड़ा। सेमी में भगवती प्रसाद जोशी का होटल पूरी तरह भूस्खलन में जमींदोज हो गया। उसने हिम्मत दिखाते हुए रिश्तेदारों से कर्ज लेकर वहां फिर से होटल खड़ा किया और परिवार के गुजर बसर का इंतजाम कर लिया। रामपुर के गोविन्द सिंह चौहान की गौरीकुंड में मिठाई की दुकान थी, लेकिन आपदा में सब तबाह हो गया, अब वह सीतापुर में चाय की दुकान खोलकर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।

पढ़ें : उत्तराखंड त्रासदी: आपदा के जख्म अब भी हरे


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