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हाशिये पर पड़े हैं कश्मीरी पंडित

फारूक अब्दुल्ला के बेजा बोल पर नरेंद्र मोदी के धारदार हमले के बाद पिता के बचाव में उतरे उमर अब्दुल्ला अपने मकसद में चाहे जितना कामयाब हुए हों, उनके गर्जन-तर्जन ने कश्मीरी पंडितों को राजनीतिक बहस के केंद्र में ला दिया है और वह भी घाटी में मतदान के कुछ घंटे पहले। राजनीतिक दलों के साथ ट्विटर पर भी कश्मीर पंडितों क

By Edited By: Published: Tue, 29 Apr 2014 02:54 AM (IST)Updated: Tue, 29 Apr 2014 02:55 AM (IST)

श्रनीगर [नवीन नवाज]। फारूक अब्दुल्ला के बेजा बोल पर नरेंद्र मोदी के धारदार हमले के बाद पिता के बचाव में उतरे उमर अब्दुल्ला अपने मकसद में चाहे जितना कामयाब हुए हों, उनके गर्जन-तर्जन ने कश्मीरी पंडितों को राजनीतिक बहस के केंद्र में ला दिया है और वह भी घाटी में मतदान के कुछ घंटे पहले। राजनीतिक दलों के साथ ट्विटर पर भी कश्मीर पंडितों की बदहाली को लेकर बहस छिड़ गई है। राज्य की सियासत में हाशिये पर खड़ा कश्मीरी पंडित यकायक छिड़ी बहस से खुशी महसूस कर रहा है।

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कश्मीर में आतंकवाद के चलते कश्मीरी पंडितों को अपने घर बार छोड़कर देश के विभिन्न हिस्सों में पलायन करना पड़ा था। कश्मीर में उनकी वापसी के लिए विभिन्न केंद्रीय व राज्य सरकारें लगातार प्रयास करने का दावा करते हुए कई पैकेजों की घोषणा कर चुकी है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात है। विस्थापित कश्मीरी पंडितों के संगठन पनुन कश्मीर के नेता डॉ. अजय चरंगु ने कहा कि कश्मीरी पंडितों की कश्मीर की सियासत में कोई निर्णायक भूमिका नहीं रह गई है। हम लोगों को बडे़ ही सुनियोजित तरीके से हाशिये पर धकेला गया है।

कश्मीर से 1989 और 90 में लगभग पांच लाख कश्मीरी पंडितों का विस्थापन हुआ था। सरकार कहती है कि एक लाख से कम थे। सभी विस्थापित जम्मू, ऊधमपुर के विस्थापित शिविरों में रह रहे हैं। कई विस्थापित दिल्ली व देश के अन्य शहरों में शरण लिए हुए हैं। जम्मू में रह रहे कश्मीरी मतदाताओं की संख्या लगभग 90 हजार के करीब है। इनमें से 30 हजार सिर्फ श्रीनगर संसदीय सीट के मतदाता हैं, जबकि 27 हजार के करीब अनंतनाग सीट के मतदाता हैं। गांदरबल से भी कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ, लेकिन सरकार का दावा है कि पूरे गांदरबल जिले में कोई भी विस्थापित मतदाता नहीं है।

डॉ. चरंगु ने कहा कि कश्मीरी पंडितों को वादी में बसाने लायक जिस माहौल की जरूरत है वह कोई तैयार नहीं कर रहा है। अब्दुल्ला और मोदी की बयानबाजी के बाद हम लोगों पर जो बहस शुरू हुई है उससे हमें उम्मीद है कि जरूर कुछ होगा। आतंकवाद के वाबजूद कश्मीर से पलायन न करने वाले कश्मीरी पंडितों के संगठन कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने कहा कि यहां आज लोग जगमोहन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन पलायन तो डॉ. अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री रहते भी हुआ था। इसके अलावा 1992-93 में भी करीब 40 हजार कश्मीरी पंडित कश्मीर से बाहर निकले। तब तो यहां जगमोहन नहीं थे। कश्मीरी पंडितों पर 1996 के बाद भी हमले हुए। उस समय तो डॉ. अब्दुल्ला थे। टिक्कू ने कहा कि किसी को कश्मीरी पंडितों की फिक्र नहीं है। अगर होती तो यहां से पलायन न करने वाले एक हजार कश्मीरी पंडित परिवारों के तीन हजार लोगों की मदद राज्य सरकार जरूर करती। यहां ऐसे कदम उठाए जाते हैं, जिससे बचे खुचे कश्मीरी पंडित भी यहां से चले जाएं। प्रधानमंत्री का कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए घोषित पैकेज भी सरकारी लालफीताशाही के फेर में ही फंसा हुआ है। बेरोजगारी और मुफलिसी के बीच जी रहे कश्मीरी पंडित पहले अपनी जान बचाएंगे या सियासी हक के लिए लड़ेंगे? एक अन्य कश्मीरी नेता चुन्नी लाल कौल ने कहा कि सभी को कश्मीरियत का शब्द बड़ा अच्छा लगता है, लेकिन हमारे लिए यह कोई मायने नहीं रखता।

मुख्यमंत्री के काफिले पर पथराव

श्रीनगर [जागरण ब्यूरो]। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के काफिले पर सोमवार को पथराव हुआ। मुख्यमंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र गांदरबाल के कंगन जा रहे थे तो बिहामा चौक में कुछ युवकों ने उनके काफिले पर पथराव किया। पुलिस ने युवाओं को खदेड़ दिया।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, केंद्रीय मंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला, देवेंद्र सिंह राणा, महबूब बेग के साथ कंगन में रैली के लिए जा रहे थे। उस समय कुछ युवाओं ने मुख्यमंत्री के काफिले पर पथराव किया। वहां पर मौजूद पुलिस कर्मियों ने हरकत में आते हुए सभी गलियों को सील कर दिया और पथराव में मुख्यमंत्री में शामिल किसी भी गाड़ी को नुकसान नहीं पहुंचा।

इस बीच, बकूरा में उमर व फारूक को रैली को संबोधित करने के लिए जाना था। उनके पहुंचने से पहले ही युवाओं ने आजादी और राष्ट्र विरोधी नारे लगाए। उमर व फारूक ने वहां पर जाना मुनासिब नहीं समझा।

पढ़ें : हिम्मत है तो मोदी कश्मीर में वोट मांगकर दिखाएं : उमर


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