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कसाब था आतंक का चेहरा तो अफजल शैतानी दिमाग

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संसद हमले के साजिशकर्ता अफजल गुरु की फांसी की खबर के साथ ही हर हिंदुस्तानी के जेहन में एक और फांसी की अनदेखी तस्वीर कौंध जाती है। मुंबई पर कहर बरपाने वाले अजमल आमिर कसाब का कारनामा भले ही अलग हो, लेकिन दोनों का इरादा एक था और अंजाम भी एक ही हुआ। एक ने देश के आर्थिक केंद्र को तो दूसरे ने राज

By Edited By: Published: Sat, 09 Feb 2013 09:07 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2013 09:22 PM (IST)
कसाब था आतंक का चेहरा तो अफजल शैतानी दिमाग

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संसद हमले के साजिशकर्ता अफजल गुरु की फांसी की खबर के साथ ही हर हिंदुस्तानी के जेहन में एक और फांसी की अनदेखी तस्वीर कौंध जाती है। मुंबई पर कहर बरपाने वाले अजमल आमिर कसाब का कारनामा भले ही अलग हो, लेकिन दोनों का इरादा एक था और अंजाम भी एक ही हुआ। एक ने देश के आर्थिक केंद्र को तो दूसरे ने राजनीतिक केंद्र को निशाना बनाया। इनमें से एक विदेशी था तो दूसरा देसी, लेकिन दोनों की कमान पाकिस्तान में ही थी।

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कसाब की तरह अफजल ने भले ही खुद अपने हाथों से मौत नहीं बरसाई हो, लेकिन संसद पर हमले की साजिश में उसकी भूमिका को देख कर उसका यह अंजाम अदालत ने आठ साल पहले ही मुकर्रर कर दिया था। वर्ष 2001 में संसद पर हुए हमले में भले ही हमलावर सिर्फ दस सुरक्षाकर्मियों की जान ले पाए हों, लेकिन यह हमला अपनी धमक में किसी भी तरह मुंबई हमले से कम नहीं था। कसाब ने अपने साथियों के साथ मिल कर जहां देश की आर्थिक राजधानी को निशाना बनाया था, वहीं अफजल के निशाने पर भारतीय लोकतंत्र के हृदय संसद समेत प्रधानमंत्री, गृह मंत्री सहित पूरा शासकवर्ग व राजनीतिक वर्ग था।

डेढ़ सौ से ज्यादा लाशों के ढेर लगाने वाले मुंबई हमले में हत्थे चढ़ा कसाब अगर आंतकवाद का जिंदा चेहरा था तो अफजल आतंकवाद का शैतानी दिमाग। दोनों हमलों का इरादा कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय चर्चा में लाना था। मगर कसाब को इस ऑपरेशन के लिए सीधे पाकिस्तानी एजेंसियों ने हर तरह की मदद और प्रशिक्षण देकर यहां भेजा था, जबकि कश्मीर के सोपोर का अफजल इस मुद्दे के साथ लंबे समय से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था।

अपने पाकिस्तानी आकाओं के इशारे पर कसाब का इरादा हिंदुस्तानियों के साथ ही अधिक से अधिक विदेशियों को निशाना बनाना था, वहीं अफजल ने भारत सरकार को दबाव में ले कर अपनी मांगें मंगवाने का बेहद खतरनाक इरादा बनाया था। दोनों ही मामलों में पाकिस्तान बार-बार अपनी किसी भी तरह की भूमिका से पूरी तरह इन्कार करता रहा, लेकिन उसकी भूमिका साफ थी। यही वजह थी कि दोनों ही हमलों के बाद उसके साथ भारत के संबंध बेहद नाजुक स्थिति में पहुंच गए। संसद हमले के बाद तो दोनों देशों के बीच युद्ध की तैयारियां भी व्यापक स्तर पर हो गई थीं।

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