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EXCLUSIVE: कंगना का सैफ को खुला पत्र, बोलीं- सैफ अगर सही होते तो मैं किसान होती

आईफा अवॉर्ड्स के दौरान कंगना रनौत और नेपोटिज्म को लेकर किए गए मजाक पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sat, 22 Jul 2017 03:14 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jul 2017 04:05 PM (IST)
EXCLUSIVE: कंगना का सैफ को खुला पत्र, बोलीं- सैफ अगर सही होते तो मैं किसान होती
EXCLUSIVE: कंगना का सैफ को खुला पत्र, बोलीं- सैफ अगर सही होते तो मैं किसान होती

 मुंबई (मिड-डे)। कुछ दिन पहले न्यूयॉर्क में हुए आईफा अवॉर्ड्स के दौरान कंगना रनौत और  नेपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) को लेकर किए गए मजाक पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है।  शुक्रवार को सैफ ने इस विषय पर पत्र लिख कर सोशल मीडिया और जेनेटिक्‍स तक को जोड़ा। सैफ ने डीएनए में प्रकाशित ओपन लेटर में लिखा कि आईफा के दौरान नेपोटिज्म पर की गई बातें मजाक थीं और इसे इतना बढ़ाने की जरूरत नहीं थी। मैंने कंगना से निजी तौर पर माफी मांग ली थी। इसलिए वो बात वहीं खत्म हो जानी चाहिए थी।

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अब सैफ के ओपन लेटर का जवाब देते हुए कंगना ने भी हमारे सहयोगी अखबार मिड-डे में एक पत्र लिखा है। कंगना का पत्र कुछ इस प्रकार है-

'पिछले कुछ समय से नेपोटिज्‍म (भाई- भतीजावाद) पर काफी बहस चल रही है पर यह स्‍वस्‍थ्‍य बहस है। जहां मैं इस विषय पर हो रही बातों से कुछ पर इन्जॉय कर रही हूं तो वहीं कुछ बातें सुन कर थोड़ी परेशान हूं। जब मैं आज सुबह जगी तो मेरी नींद सैफ अली अंतिम बार मैं तब परेशान हुई थी जब मैंने इस विषय पर करण जौहर का ब्‍लॉग पढ़ा था। और यहां तक की एक इंटरव्‍यू में फिल्‍म बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए कई जरूरी चीजें बताई गईं जिसमें टैलेट का कहीं जिक्र नहीं था।

मुझे नहीं पता कि उन्हें गलत कहें, या वो बस भोले हैं, लेकिन  दिलीप कुमार, आसिफ, बिमल रॉय, सत्यजीत रे, गुरु दत्त और कई अन्य लोग जिनकी असाधारण प्रतिभा ने हमारे फिल्म व्यवसाय की आधारशिला रखी जो असाधारण है। 

सैफ अपने ओपन लेटर में लिखा था कि मैंने कंगना से माफी मांग ली और अब मुझे किसी को कोई स्‍पष्‍टीकरण देने की जरूरत नहीं है। लेकिन यह मेरे अकेले का विषय नहीं है। 'भाई-भतीजावाद' एक प्रैक्टिस है जहां लोग तार्किक सोच की जगह मानवीय भावनाओं के आधार काम करते हैं। कोई भी बिजनेस जो मुल्यों की जगह मानवीय भावनाओं से चलता है वह सतही लाभ तो पा सकता है लेकिन वह कभी भी वास्‍तविक तौर पर रचनात्‍मक नहीं हो सकता। वह 1.3 बिलियन लोगों के इस देश की क्षमता पर रोक लगा देता है। विवेकानंद, आइंस्‍टाइन और शेक्‍सपीर इनमें से किसी से भी संबंध नहीं रखते थे।

आज के समय में भी कई ऐसे उदाहरण हैं जहां बार बार ये साबित किया जाता है कि ब्रांडेड कपड़े, बोलने का पॉलिश किया लहजा, कड़ी मेहनत, सीखने की ललक और मानव आत्मा की विशाल शक्ति मायने रखती है। आज मैं अपने मूल्यों के लिए इस तरह की दृढ़ इच्छाशक्ति रखती हूं, लेकिन कल मैं भी असफल हो सकती हूं और अपने बच्चों को उनके सपनों का स्टारडम पाने में मदद कर सकती हूं। ऐसी स्थिति में मेरा मानना है कि मैं व्यक्तिगत तौर पर असफल रहूंगी। लेकिन मूल्य कभी असफल नहीं होंगी।' 

इसलिए हम उन्हें जो इन मूल्यों का पालन करता हैं या करना चाहते हैं उन्हें स्पष्टीकरण देते हैं। जैसा कि मैंने कहा कि हमारे कार्य आने वाले पीढियों के भविष्य को आकार देंगे। अपनी चिट्ठी के एक और हिस्से में आपने अनुवांशिकता और स्टार के बीच संबंध की बात की है  मैंने अपनी जिंदगी के कई साल जेनेटिक्स को पढ़ने और समझने में लगाया है लेकिन मुझे ये समझ नहीं आया कि आप जीन को मिलाकर हाइब्री़ड रेस के घोड़ों की तुलना कलाकार से कैसे कर सकते हैं।

क्या आप ये कह रहे हैं कि कलात्मक कौशल, कठोर परिश्रम, अनुभव, एकाग्रता, उत्साह, उत्सुकता, अनुशासन और प्यार, परिवार जीन के माध्यम से विरासत में प्राप्त किया जा सकता है? अगर आपकी बात सही है तो मैं आज अपने घर में एक किसान होती। मुझे समझ नहीं आता कि मेरे जीन पूल में से किस जीन ने मुझे पर्यावरण को समझने की उत्सुकता को बढ़ाया।

आप यूजीनिक्स के बारे में भी बात करते थे - जिसका अर्थ है मानव जाति के प्रजनन को नियंत्रित करना। अब तक, मुझे विश्वास है कि मानव जाति ने डीएनए नहीं पाया है जो महानता और उत्कृष्टता को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जाए। यदि ऐसा होता है, तो हम आइंस्टीन, दा विंची, शेक्सपियर, विवेकानंद, स्टीफन हॉकिंग, टेरेंस ताओ, डैनियल डे-लुईस, या गेरहार्ड रिक्टर की महानता को दोहराना पसंद करेंगे। आपने ये भी कहा कि इसके पीछे मीडिया जिम्मेदार और यही नेपोटिज्म का झंड़ा लहराती है। यह अपराध की तरह लग रहा है और सच्चाई से कोसों से दूर है। नेपोटिज्म मानवीय स्वभाव की कमजोरी है। कभी कभी हम अच्छा करते हैं तो कभी कभी हम अच्छा नहीं करते हैं। कोई किसी के सिर पर बंदूक नहीं रख रहा इसलिए किसी के  विकल्पों पर बचाव करने की जरूरत नहीं है।

तो क्या हमें नेपोटिज्म के साथ शांति स्थापित कर लेना चाहिए? जिन्हें लगता है कि यह उनके लिए लाभदायक है तो वे इसके साथ शांति स्थापित कर सकते हैं। लेकिन मेरी राय में तीसरी दुनिया के लिए ये एक काफी निराशावादी नजरिया है जहां कई लोग की पहुंच भोजन, आश्रय, वस्त्र और शिक्षा तक भी नहीं है।वह दुनिया एक आदर्श स्थान नहीं है, और यह कभी नहीं हो सकता है यही कारण है कि हमारे पास कला का उद्योग है एक तरह से, हम आशा के ध्वजवाहक हैं।'


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