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तानाशाह होता तो पहली कक्षा से अनिवार्य करता गीता

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एआर दवे ने शनिवार को कहा कि महाभारत और भगवद गीता से हम जीवन जीने का तरीका सीखते हैं। यदि वे भारत के तानाशाह होते तो बच्चों को पहली कक्षा से ही इन्हें लागू करते। उन्होंने कहा कि भारतीयों को अपनी प्राचीन परंपरा और पुस्तकों की ओर लौटना चाहिए। महाभारत और भगवद्गीता जैसे मूल ग्रंथों से बच्चों को कम उम्र में अवगत कराना चाहिए।

By Edited By: Published: Sat, 02 Aug 2014 05:59 PM (IST)Updated: Mon, 04 Aug 2014 09:43 AM (IST)

अहमदाबाद। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एआर दवे ने शनिवार को कहा कि महाभारत और भगवद गीता से हम जीवन जीने का तरीका सीखते हैं। यदि वे भारत के तानाशाह होते तो बच्चों को पहली कक्षा से ही इन्हें लागू करते। उन्होंने कहा कि भारतीयों को अपनी प्राचीन परंपरा और पुस्तकों की ओर लौटना चाहिए। महाभारत और भगवद्गीता जैसे मूल ग्रंथों से बच्चों को कम उम्र में अवगत कराना चाहिए।

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न्यायमूर्ति दवे 'समकालीन मुद्दों एवं वैश्वीकरण के युग में मानवाधिकारों की चुनौतियां' विषय पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय विचार गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, 'गुरु-शिष्य परंपरा जैसी हमारी प्राचीन प्रथा खत्म हो चुकी है। यदि वह रहती तो देश में इस तरह की समस्याएं [हिंसा और आतंकवाद] नहीं रहतीं। अब हम कई देशों में आतंकवाद देख रहे हैं।

अधिकांश देश लोकतांत्रिक हैं. यदि किसी लोकतांत्रिक देश में हर व्यक्ति अच्छा हो तो वे निश्चित रूप से किसी ऐसे व्यक्ति को चुनेंगे जो अच्छा होगा। वह चुना गया व्यक्ति कभी भी किसी को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोचेगा। इस तरह एक-एक कर हर आदमी में सभी अच्छे गुणों को भर के हर जगह हम हिंसा को रोक सकते हैं। इस मकसद के लिए हमें एक बार फिर अपनी पुरातन चीजों की ओर लौटना होगा।

इस कार्यक्रम का आयोजन गुजरात ला सोसाइटी की ओर से किया गया था। न्यायमूर्ति दवे ने यह भी प्रस्ताव किया कि छात्रों को पहली कक्षा से ही भगवद गीता और महाभारत पढ़ाई जाए। उन्होंने कहा ' कुछ लोग जो बहुत धर्मनिरपेक्ष हैं. तथाकथित धर्मनिरपेक्ष इससे सहमत नहीं होंगे..। यदि मैं भारत का तानाशाह होता तो मैंने पहली क्लास से गीता और महाभारत की पढ़ाई लागू कर दिया होता। इससे आप जीवन कैसे जिएं यह सीखने का रास्ता पाते। मुझे खेद है यदि कोई कहता है कि मैं धर्म निरपेक्ष हूं या नहीं हूं.. कहीं कोई चीज अच्छी है तो उसे हमें कहीं से भी लेनी चाहिए।

बांबे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह ने कहा कि वैश्वीकरण का मूल अर्थ सबका विकास होना चाहिए। 'दुनिया एक गांव' की अवधारणा का अर्थ यह नहीं है कि सभी लोग सिर्फ दुनिया के बारे में सोचें बल्कि यह सबके विकास के विस्तार के रूप में हो। यदि हम वैश्वीकरण के फायदों को साझा नहीं करते तो इससे गंभीर चुनौतियां उभर कर सामने आएंगी। गीता के बारे में दवे से पहले हाईकोर्ट के एक जज भी ऐसे ही विचार व्यक्त कर चुके हैं और वह भी एक फैसला सुनाते समय। अगस्त 2007 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश एसएन श्रीवास्तव ने वाराणसी के एक पुजारी के संपत्ति संबंधी विवाद का निपटारा करते हुए गीता को राष्ट्रीय धर्म शास्त्र के रूप में मान्यता देने के साथ ही इस ग्रंथ को अन्य धार्मिक समूहों को पढ़ाए जाने की जरूरत पर बल दिया था। उनकी इस टिप्पणी से हलचल मच गई थी। तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री को संसद में यह स्पष्टीकरण देना पड़ा था कि न्यायाधीश की इस टिप्पणी का कोई महत्व नहीं है और उसकी अनदेखी की जाए।


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