'जज साहब ने कहा था रकीबुल के पास जाओ'
देवघर। रंजीत कोहली उर्फ रकीबुल प्रकरण में देवघर जिला बल का निलंबित सिपाही अजय अपने आप को निर्दोष बता रहा है। मंगलवार को दैनिक जागरण से अजय ने बताया कि 24 अगस्त से पहले तक रंजीत कोहली को रकीबुल के तौर पर जानता था। यही कहकर उसका परिचय कराया गया था। उसके मुताबिक उसे जिला व सत्र न्यायाधीश के यहां अंगरक्षक के तौर पर
देवघर। रंजीत कोहली उर्फ रकीबुल प्रकरण में देवघर जिला बल का निलंबित सिपाही अजय अपने आप को निर्दोष बता रहा है। मंगलवार को दैनिक जागरण से अजय ने बताया कि 24 अगस्त से पहले तक रंजीत कोहली को रकीबुल के तौर पर जानता था। यही कहकर उसका परिचय कराया गया था। उसके मुताबिक उसे जिला व सत्र न्यायाधीश के यहां अंगरक्षक के तौर पर ड्यूटी मिली थी। उसे दो बार इसके लिए कमान मिला था। वह पंकज श्रीवास्तव के कहने पर ही रकीबुल से मिला था। उसके मुताबिक पहली बार 28 जून को उसे कमान मिला, जिसमें जिला एवं सत्र न्यायाधीश कैम्प रांची के यहां योगदान देना था। कमान में पहुंचने का समय 29 जून की सुबह 7 बजे का था। वहीं उसे 10 जून शाम 5 बजे तक वापस आना था।
उस कमान पर एक नोट लिखा हुआ था, जिसमें लिखा है-'अविलंब रिपोर्ट करें रांची जाना है' व एक मोबाइल नंबर 8102777771 भी लिखा हुआ था। बाद में पता चला कि ये नंबर रकीबुल का था। वह रांची पहुंचा तो उसे रकीबुल के पास भेज दिया गया। उसे बताया गया कि वह जज है। उसके बाद से करीब 10 दिनों तक वह रकीबुल के साथ रहा। उसकी शादी में भी शामिल हुआ। उसे इस बात की हैरानी भी हुई कि ये कैसा जज है जो कभी कोर्ट नहीं जाता। लेकिन वह चुप रहा। इस दौरान रकीबुल की मां ने उसे 200 रुपया दिए और कहा कि ये कभी 2 करोड़ हो जाएगा।
वह तय कार्यक्रम के तहत देवघर वापस लौट आया। बाद में वह देवघर डीडीसी संजय कुमार सिंह के साथ अंगरक्षक के तौर पर ड्यूटी करने लगा। 20 अगस्त को किसी बैठक में शामिल होने के लिए डीडीसी रांची गए थे। अजय वहां उनके साथ था। इस बीच रात को सिपाही के पास फोन आया। फोन पुलिस लाइन से किया गया था। फोन पर कहा गया कि उसे डीजे के यहां योगदान देना है। रांची में ही रुकना पड़ सकता है। लेकिन वह वहां नहीं रुका और डीडीसी के साथ 21 अगस्त की सुबह करीब 4 बजे रांची से चला और
दिन में 10 बजे देवघर पहुंचा। यहां एक सिपाही पहले से कमान लेकर बैठा था।
उसके पहुंचते ही उसे जिला जज पंकज कुमार श्रीवास्तव के यहां अविलंब योगदान देने का कमान दे दिया गया। वहां से उसे फिर से रकीबुल के यहां जाने को कह दिया गया। उसने कहा कि उसे तो यहां रहने को कहा गया लेकिन फिर वहां जाने की बात कही गई तो वह चुप रहा। वह रांची पहुंचा और वहां से रकीबुल, एक कुत्ता व निजी चालक के साथ वह शेरघाटी के एक जज के यहां पहुंचा। उसने रकीबुल से कहा साहब राज्य से बाहर जाने से पहले अधिकारी का आदेश चाहिए। रकीबुल ने कहा कि डीजीपी से बात हो गई है। तुम चिंता मत करो। वह तब तक जानता था कि रकीबुल जज है और देवघर के जज साहब का करीबी है। वहां से नीली बत्ती वाली बोलेरो से वे दिल्ली रवाना हो गए। दिल्ली 24
को पहुंचा और होटल में रूका। वहां उसे रकीबुल के बारे में पता चला। वहां से उल्टे पांव रांची लौट आया। यहां जज साहब की पत्नी से मिला और फिर 27 को डीजे देवघर के यहां रिपोर्ट किया। उसके बाद से वह यहीं है।
अजय के मुताबिक वह निर्दोष है। उसने तो सिर्फ वरीय अधिकारी के आदेश का अनुपालन किया है। वह एक ऐसे साजिश का शिकार हो रहा जिस बारे में वह कुछ नहीं जानता। उसके पास कमान व मोबाइल है, जिसके आधार पर उसकी बेगुनाही साबित हो सकती है। उसने न्याय की गुहार लगाई है।
अब इस प्रकरण में डीजे की भूमिका भी संदेह के दायरे में आ गई है और उन्हें भी कई सवालों का जवाब देना होगा। साथ ही रकीबुल के पहुंच व रुतबे का भी पता चलाता है कि कैसे इतने बड़े अधिकारी उसकी बात सुनते थे और इस आड़ में वह अपनी मनमानी करता था। इस बारे में बताए जाने पर एसएसपी रांची प्रभात कुमार ने कहा कि जल्द ही सिपाही का बयान भी दर्ज किया जाएगा।