सरकार निर्मल गंगा नदी के लिए वचनबद्ध
केद्रीय पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री जयंती नटराजन ने कहा कि सरकार निर्मल व अविरल गंगा के लिए वचनबद्ध है। गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे। इसके लिए केद्र सरकार सात हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है। राज्य सरकार की हिस्सेदारी अलग से है।
इलाहाबाद [जागरण संवाददाता]। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री जयंती नटराजन ने कहा कि सरकार निर्मल व अविरल गंगा के लिए वचनबद्ध है। गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे। इसके लिए केंद्र सरकार सात हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है। राज्य सरकार की हिस्सेदारी अलग से है।
उन्होंने कहा कि गंगा से प्रदूषण दूर करने के लिए गंगा एक्शन प्लान एक और दो के बाद नेशनल गंगा रीवर बेसिन योजना और नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा योजना का संचालन किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि गंगा को निर्मल बनाने के लिए बेहतर समन्वय से काम करने की जरूरत है। 2020 तक गंगा में गिर रहे नालों के पानी को टैप कर लिया जाएगा जिससे बहुत हद तक प्रदूषण में कमी आएगी। इन योजनाओं पर सिर्फ इलाहाबाद में ही 447 करोड़ रुपये खर्च होंगे। महाकुंभ में गंगा की रक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। मंत्री ने कहा कि गंगा को लेकर आंदोलित स्वामी सानंद के एजेंडे को सरकार ने अपने ऐजेंडे में शामिल कर लिया है।
बेहद गंभीर नतीजों के लिए हो जाइए तैयार
1-गंगाजल में बीओडी की मात्रा न हो 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक
-हरिद्वार से पूर्व : बीओडी लोड .05
-कानपुर : बीओडी लोड बढ़कर 25
-इलाहाबाद : बीओडी लोड 16
-वाराणसी : बीओडी लोड 17
2--गंगाजल में डीओ की मात्रा न हो 5 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम
-हरिद्वार से पूर्व : 9 मिग्रा प्रति लीटर
-कानपुर : डीओ घटकर 1.2 एमजी
-इलाहाबाद : डीओ 3.2 मिलीग्राम
-वाराणसी : डीओ 3 एमजी
3-बीओडी : ऑक्सीजन डिमांड
डीओ : घुलित ऑक्सीजन है कितनी
सर्वे मेंचौंकाने वाले तथ्य
वाराणसी। पहाड़ों की सुरंगों में समाती गंगा को देख पर्यावरण विशेषज्ञ चिंतित हो उठे हैं। उनके द्वारा सरकार को लगातार चेताया जा रहा है कि गंगा के मूल प्रवाह को रोकने या मोड़ने के बेहद गंभीर नतीजे होंगे लेकिन उनके समक्ष संकट यह है कि सरकार ने उनके कंधों पर जिम्मेदारियां तो सौंप दीं लेकिन उनकी सलाह मानने को तैयार नहीं है।
गंगा की मूल धारा [भागीरथी, मंदाकिनी, अलकनंदा] को रोककर उसके प्रवाह को जिस तरह से जगह-जगह मिट्टी के पहाड़ों के बीच बाधित किया जा रहा है उसी का परिणाम है कि गंगा अपना अस्तित्व खोती जा रही है और जल संकट गहराता जा रहा है। इसके चलते गंगा से जुड़ी 45 करोड़ की आबादी का भविष्य खतरे में है।
गंगा की मूल धाराओं का सर्वे कर 17 दिनों बाद रविवार को वाराणसी लौटे राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के वैज्ञानिक सदस्य और बीएचयू के पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. बीडी त्रिपाठी ने भी स्वीकार किया कि गंगा के प्रवाह को बांध दिए जाने से गंगा का भविष्य खतरे में पड़ गया है। गंगा के हितों की अनदेखी कर इसके प्रवाह पर जिस तरह से एक के बाद एक बांधों की श्रृंखला तैयार की जा रही है, कहा जा सकता है कि हरिद्वार के बाद गंगा का जीवन महज चंद दिनों का है।
उन्होंने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि बांधों की श्रृंखला बनाकर गंगा की मूल नदी भागीरथ के जलगुणों को तो नष्ट कर ही दिया गया है, अब गंगा की दूसरी मुख्य सहायक नदी अलकनंदा, मंदाकिनी पर प्रोजेक्टों को स्वीकृति देकर इसके जल प्रवाह को भी बांधने की तैयारी शुरू कर दी गई है। उन्होंने बताया कि इस समय गंगा की धारा पर कुल 16 प्रोजेक्ट काम कर रहे हैं, इसके अलावा 13 निर्माणाधीन हैं जबकि 54 अन्य प्रोजेक्टों को स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है।
इससे भी ज्यादा चिंता का विषय यह है कि टिहरी के पास जहां गंगा के प्रवाह को रोका गया है, उसके चारों ओर मिट्टी के पहाड़ हैं। इसके चलते तकरीबन 30 फीसदी गंगा का पानी पहाड़ों में विलीन हो जा रहा है। जलस्तर गिरने से डैम में डूबे मकान खंडहर के रूप में साफ दिखने लगे हैं। इससे पहाड़ों के आसपास जलजला जैसी स्थिति बनने लगी है। कमोवेश यही हाल सभी परियोजनाओं के आसपास देखने को मिला। दुखद स्थिति यह है कि एक तरफ हरिद्वार में भागीरथी के न्यूनतम प्रवाह से 95 फीसदी गंगा का जल सिंचाई, पेयजल के नाम पर पश्चिमी नहर में डायवर्ट कर दिया जा रहा है तो अलकनंदा को निर्माणाधीन बांधों में जगह-जगह जकड़ लिया गया है।
हरिद्वार के बाद गंगा जल के नाम पर नाममात्र का जल छोड़ा जाता है। आसपास के भूमिगत जल और रास्ते में मिलने वाली दूषित नदियों के सहारे नरौरा तक पहुंचते ही यहां से भी सिंचाई के नाम पर इस नदी का 96 फीसदी पानी निकाल कर गंगा को बड़े-बड़े नालों के हवाले कर दिया गया है। परिणामस्वरूप गंगा कानपुर में औद्योगिक घरानों का जहरीला पानी लेते हुए प्रयाग फिर काशी पहुंचती है।
त्रिपाठी ने बताया कि वह जल्द ही सर्वे रिपोर्ट प्रधानमंत्री और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को भेजेंगे।
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