मुंबई बम विस्फोट में दोषी है सलेम, लेकिन अदालत नहीं दे सकती है फांसी
12 मार्च, 1993 के सिलसिलेवार विस्फोटों के मामले का पहला मुकदमा 1995 में शुरू होकर 2006 तक चला। इसमें 1213 आरोपियों पर मुकदमा चला।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। ब्लैक फ्राइडे यानि 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए उन सिलसिलेवार 13 बम धमाकों को यादकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जिन्होंने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। करीब दो घंटे तक होते रहे इन सिलसिलेवार धमाकों में 257 लोग बेमौत मारे गए थे, जबकि करीब सात सौ से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हो गए। इस विस्फोट में 257 करोड़ की संपत्ति खाक हो गई थी।
प्रथम चरण के मुकदमे में हुई थी याकूब को फांसी
मुंबई सीरियल ब्लास्ट के मामले का पहला मुकदमा 1995 में शुरू होकर 2006 तक चला। इसमें 1213 आरोपियों पर मुकदमा चला। इनमें से 100 आरोपी दोषी पाए गए थे। तब के विशेष टाडा जज पीडी कोदे ने 100 में से 12 दोषियों को मृत्युदंड एवं 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मार्च 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड पाए 11 दोषियों की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। जबकि एक दोषी याकूब मेमन को जुलाई 2015 में फांसी दी जा चुकी है। इस मामले में 33 आरोपी अब भी भगोड़े हैं। इनमें प्रमुख हैं- दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, मोहम्मद दोसा एवं अनीस इब्राहिम।
दूसरे चरण में सलेम सहित 6 दोषी करार
16 जून 2017 को मुंबई की विशेष टाडा अदालत ने दूसरे चरण का फैसला सुनाया। इसमें अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम सहित कुल छह आरोपियों को दोषी करार दे दिया गया। अदालत ने जिन लोगों को दोषी पाया वे हैं- अबू सलेम, मुस्तफा दोसा, रियाज सिद्दिकी, करीमुल्ला खान, फिरोज अब्दुल, रशीद खान और ताहिर मर्चेंट। इसके अलावा, सातवें आरोपी अब्दुल कयूम को सबूतों के अभाव में कोर्ट ने बरी कर दिया है।
मुंबई विस्फोट में सलेम की क्या थी भूमिका
मुस्तफा दोसा द्वारा भेजी गई तीसरी खेप के हथियार गुजरात के भरूच जिले से मारुति वैन में अबू सलेम लेकर आया था। सलेम की दलील थी कि उसे हथियारों का पता तब चला, जब हथियारों से भरा लकड़ी का बक्सा अभिनेता संजय दत्त के घर पर खोला गया। अबू बिल्डर प्रदीप जैन हत्याकांड में 25 वर्ष की सजा काट रहा है। उसे 2005 में पुर्तगाल से प्रत्यर्पित कर लाया गया था।
क्यों नहीं हो सकती अबू सलेम को फांसी
अबू सलेम को साल 2005 के नवंबर में प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया था। अबू सलेम और फांसी के फंदे के बीच पुर्तगाल का क़ानून है, जिसके तहत सलेम को इस शर्त के साथ भारत को सौंपा गया कि उसे मौत की सज़ा नहीं दी जाएगी। दरअसल, अबू सलेम को साल 2002 में ही लिस्बन में पकड़ा गया था। लेकिन उसे पाने में भारत को क़रीब तीन साल लग गए, क्योंकि अबू सलेम अपने प्रत्यर्पण के ख़िलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा था। भारत लाए जाने के बाद साल 2006 में टाडा कोर्ट में उसे और उसके साथी रियाज़ सिद्दीक़ी को मुंबई बम विस्फोट केस में हथियार ढोने और बांटने का दोषी पाया गया था। तब से वह आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा था।
प्रत्यर्पण संधि से बंधे हैं भारत सरकार के हाथ
जुलाई 2012 में जब अबू सलेम के खिलाफ़ कुछ नए केस दर्ज किए गए जो उसे फांसी तक ले जा सकते थे, उस वक़्त पुर्तगाल की अदालत फिर हरक़त में आयी। वहां की एक निचली अदालत ने अबू सलेम को भारत भेजे जाने की शर्तों के उल्लंघन की वजह से उसका प्रत्यर्पण खारिज कर दिया। वहां के सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ भारत को अपील करने के अधिकार पर भी सवाल उठा दिया। ऐसे में कुल मिलाकर अबू सलेम को फांसी देने पर भारत सरकार के हाथ बंधे हैं। प्रत्यर्पण संधि के अनुसार उसे मृत्युदंड या 25 वर्ष से अधिक की सजा नहीं दी जा सकती।
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