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रेलवे के लिए सुरक्षा का मुद्दा आज भी हाशिये पर

सवाल खस्ताहाल पटरियों, पुरानी पड़ चुकी सिग्नल प्रणाली और दोयम दर्जे के दूसरे उपकरणों के आधुनिकीकरण का भी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 22 Aug 2017 10:40 AM (IST)Updated: Tue, 22 Aug 2017 10:40 AM (IST)
रेलवे के लिए सुरक्षा का मुद्दा आज भी हाशिये पर
रेलवे के लिए सुरक्षा का मुद्दा आज भी हाशिये पर

सतीश सिंह

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ट्रेन दुर्घटनाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है। देश में तकरीबन 19,000 रेलगाड़ियां रोजाना चलती हैं, बावजूद इसके रेलवे के लिए सुरक्षा का मुद्दा आज भी हाशिये पर है। देश के ट्रेनों में हर दिन सवा करोड़ से ज्यादा लोग सफर करते हैं। आए दिन होने वाली ट्रेन दुर्घटनाएं कई सवाल पैदा करती हैं। दुर्घटनाओं के आलोक में गलतियों की पहचान एवं उसके निदान के लिए प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।

समस्या का निराकरण हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए गठित जांच समितियों, रेल सुरक्षा या फिर रेलवे के आधुनिकीकरण को लेकर बनाई गई समितियों से नहीं होने वाला है, क्योंकि आमतौर पर समितियों की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है। भारत का रेल नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्को में से एक है। इसका रखरखाव रेलवे के लिए कई कारणों से चुनौतीपूर्ण है। सवाल कुशल मानव संसाधन की कमी, लचर प्रबंधन एवं ढांचा से भी जुड़े हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या वित्त पोषण की है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में रेलवे गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहा है। वर्तमान में लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये की लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए रेलवे के पास पूंजी नहीं है।

आज जरूरत है रेलवे को गैर-किराया संसाधनों से 10 से 20 प्रतिशत राजस्व हासिल करने की, लेकिन इस मद में फिलहाल तीन प्रतिशत से भी कम राजस्व अर्जित किया जा रहा है। विश्वभर में रेलवे आय में गैर किराया राजस्व का बड़ा हिस्सा होता है। कुछ देशों में इसका प्रतिशत 35 से भी अधिक होता है। फिलवक्त भारतीय रेल के पास जमीन के रूप में करोड़ों-अरबों की संपत्ति बेकार पड़ी हुई है, जिसके तार्किक इस्तेमाल से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। इसके बरक्स विज्ञापन के जरिये आसानी से पैसा कमाया जा सकता है। रेलवे के पास लगभग 60,000 कोच, 2.5 लाख वैगन, 10,000 लोकोमोटिव और 7,000 से भी अधिक स्टेशन हैं। इन संसाधनों का इस्तेमाल करके रेलवे प्रत्येक साल करोड़ों-अरबों रुपये कमा सकता है।

रेलवे का राजस्व बढ़ाने के लिए बजट में रेलवे की क्षमता और उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है। एक आकलन के मुताबिक रेलवे में सुधार लाने से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2.5 से 3.0 प्रतिशत तक इसका योगदान हो सकता है। रेलवे में सुधार इस बात पर भी निर्भर करेगा कि खर्च और बचत के बीच संतुलन बनाकर आगे की दिशा तय की गई है या नहीं। साथ ही खर्च पर लगातार निगरानी रखते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि खर्च उसी मद में हो जिसके लिए उसका आवंटन किया गया है।

कहा जा सकता है कि भारत को आज विदेशों की तरह 200 किलोमीटर प्रतिघंटे से ज्यादा रफ्तार वाली बुलेट या हाईस्पीड ट्रेन की जरूरत नहीं है। इस तरह की योजनाएं हमारे देश के लिए व्यावहारिक नहीं हैं। देश की आबादी तकरीबन एक अरब तीस करोड़ है, जिसमें से अधिकांश लोगों की हैसियत आज भी बुलेट या हाईस्पीड ट्रेनों में चढ़ने की नहीं है, बल्कि ट्रेन पटरी से न उतरे इसके लिए नई तकनीक अपनाने और दूसरे उपायों का सहारा लेने की जरूरत है। ट्रेनों का आपस में टक्कर न हो इसके लिए नई तकनीक अपनाई जानी चाहिए। बिना गार्ड वाले फाटक पर लगाने के लिए एक ऐसी चेतावनी प्रणाली विकसित की जानी चाहिए जिससे दुर्घटना की संख्या में कमी आए।

सवाल खस्ताहाल पटरियों, पुरानी पड़ चुकी सिग्नल प्रणाली और दोयम दर्जे के दूसरे उपकरणों के आधुनिकीकरण का भी है। 1रेलवे के सुधार के लिए भारी-भरकम पूंजी, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, कुशल प्रबंधन, मानव संसाधन को सक्षम बनाने जैसे कवायद करने की भी जरूरत है। निजी पूंजी रेलवे में लाने के मामले में पीपीपी मॉडल अपनाने और विदेश से पूंजी लाने की कोशिश की जानी चाहिए। इसके साथ ही मौजूदा संसाधन के युक्तिपूर्ण उपयोग, मानव संसाधन का बेहतर इस्तेमाल आदि की मदद से भी स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। ऐसा करने से रेलवे की आय में इजाफा हो सकता है, जिसका उपयोग यात्रियों की यात्र को सुखद एवं सुरक्षित बनाने में किया जा सकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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