दुनिया की 17 फीसद आबादी भारत में, सिर्फ 4 फीसद पानी; संभलकर करें खर्च
देश को अक्सर सूखे और बाढ़ जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ता है। अत्यधिक बारिश से अफरा-तफरी का माहौल बन जाता है।
विवेक त्रिपाठी। पानी जीवन के लिए बहुत अहम है। इसका संचय भी बहुत जरूरी है। इसको खर्च करने में हम तनिक कोताही नहीं बरतते हैं। मगर संचयन के बारे में सजग नहीं रहते। पानी जीवन में उतना ही महत्व रखता है, जितना शरीर में रक्त। ऐसे में दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। अभी कुछ दिन पहले तक देश का एक बड़ा हिस्सा पानी की कमी से बेहाल था। अब बाढ़ की विभीषिका सामने है। इसका मतलब है कि भारत में जल प्रबंधन के कारगर इंतजामों का नितांत अभाव है। इसके चलते इस प्रकार की आपदाओं का सामना करना पड़ता है। खासतौर से ग्रामीण इलाकों और किसानों को बड़ी मुसीबतें उठानी पड़ती हैं। ऐसे में जल प्रबंधन के अल्प और दीर्घकालिक प्रयास करने होंगे, ताकि पानी की कमी न हो और अधिक वर्षा होने पर भी बाढ़ की विभीषिका को बड़ी हद तक रोका जा सके। यही जल संचय बरसात का मौसम समाप्त होने के बाद खेती आदि के लिए उपयोगी साबित हो सकता है। प्रत्येक वर्ष होने वाली ऐसी सूखे और अतिवृष्टि आदि से बचाव का इंतजाम किया जा सकेगा।
भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल 32.90 करोड़ हेक्टेयर है और देश में औसत वार्षिक वर्षा 1,170 मिमी है, जो लगभग 4000 घन किलोमीटर का वार्षिक अवक्षेपण प्रदान करती है। अपना देश दुनिया की लगभग 17 फीसद आबादी को समेटे हुए है, जबकि देश में पानी की उपलब्धता मात्र चार फीसद है। धरती का 70 प्रतिशत भाग जलमग्न है, लेकिन इनमें से पीने लायक पानी की मात्रा महज तीन प्रतिशत है, इसमें से भी दो प्रतिशत पानी महासागरों में ग्लेशियर के रूप में है जिससे मानव जाति के हिस्से में मात्र एक प्रतिशत पानी ही उपयोग के लिए उपलब्ध है।
पानी पर विश्व बैंक की एक रिपोर्ट
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की बीस बड़ी नदियों में से पांच का नदी बेसिन पानी, मानक 1000 घन मीटर प्रति वर्ष से कम है और अगले तीन दशकों में इसमें पांच और नदी बेसिन भी जुड़ जाएंगे। स्वच्छ जल की आपूर्ति तकरीबन 7,400 घनमीटर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष यानी लगभग 4,500 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन होती है। इससे लगता होगा कि यह जरूरत से भी ज्यादा है, पर लगातार बढ़ती मांग और घटती आपूर्ति से वैश्विक जल प्रबंधन में परेशानियां बढ़ी हैं। ऐसे में हमें वर्षा के जल का संचय करना बहुत अनिवार्य है। लगातार हो रहे दोहन से भूजल का स्तर प्रतिवर्ष 1 से 1.5 प्रतिशत की दर से नीचे जा रहा है। लिहाजा जल स्त्रोत सूखने लगे हैं और जलसंकट गहराने लगा है। वर्षा भूजल स्त्रोत बढ़ाने का कार्य करती है। अगर हम वर्षा जल का उचित प्रबंधन करें तो यह हमारी आवश्यकताओं के हिसाब से पर्याप्त है। वर्षा के जल को सहेजना आवश्यक है। अगर जीवन बचाना है तो बारिश का पानी भी संचय करना होगा। बारिश का पानी बहुत ज्यादा मात्रा में बर्बाद हो रहा है। इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। इस लापरवाही की कीमत चुकानी होगी।
केवल हैंड पंप, कुएं प्यास नहीं बुझा सकते
प्राकृतिक जल संसाधनों की कमी वाले ग्रामीण क्षेत्रों में खासतौर से बारिश के पानी के महत्व को हर एक को समझना चाहिए। छतों और सड़कों के किनारे बह रहे वर्षा के जल को बिना बर्बाद किए इकट्ठा करने की कोशिश करनी चाहिए। सभी क्षेत्रों में जल आपूर्ति को आसान बनाने के लिए नई और असरदार तकनीकों को इस्तेमाल करते हुए हमें अपनी जल इकट्ठा करने की पुरानी परंपरा को अपनाना चाहिए। क्योंकि केवल हैंड पंप, कुएं के जलस्तर के दूसरे संसाधन लाखों लोगों की पीने योग्य पानी की जरूरत को पूरा नहीं कर सकते हैं। पानी पर हमारी सबसे अधिक निर्भरता कृषि कार्यों के लिए होती है। पहले खेतों में सिंचाई पारंपरिक तरीकों से होती थी। पानी निकालने के लिए मानव बल और पशु बल का प्रयोग होता था, जिससे हम केवल जमीन के ऊपरी हिस्से में जमा पानी निकाल पाते थे। पानी का यह भंडार प्रतिवर्ष वर्षा से पुन: भर जाता था, परन्तु अब हम खेतों में सिंचाई के लिए ट्यूबवेल पंप का उपयोग कर रहे हैं जिससे धरती की गहराई में जमा पानी निकल रहा है और भूजल का स्तर भी घट रहा है।
बारिश के पानी को संग्रह करने से एक ओर जितना पानी हम लेंगे उतना भूमि को पानी दे भी सकते हैं। इससे जलस्तर बढ़ता रहेगा। प्राकृतिक जल संसाधनों में जल के स्तर को बारिश के पानी का संग्रहण बनाए रखता है। यह तलाब, पोखर में एकत्रित होने पर कृषि के लिए भी लाभप्रद होगा। खासकर जिन स्थानों में पानी की कमी है। वहां पर बारिश के पानी को संरक्षण कराना अनिवार्य है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और महाराष्ट्र में इस समय पानी को संरक्षित करना अनिवार्य है। जिससे वहां जलस्तर बढ़े। गांव में छोटे-छोटे तालाब बनाकर वर्षा जल को संग्रहित कर सकते हैं इससे हमें खेतों में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिलेगा और भूजल स्तर भी सुधरेगा। शहरों में भी प्रत्येक इमारतों की छतों से वर्षा जल संग्रहण के लिए रेन वॉटर-रूफ, वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना चाहिए। इस सिस्टम में वर्षा का जल छतों से पाइप लाइन के द्वारा सीधे जमीन के भीतर चला जाता है। इस विधि से भूजल स्तर में सुधार होता है। बारिश के पानी को इकट्ठा करना बहुत ही असरदार और पारंपरिक तकनीक है। यह छोटे तालाबों, भूमिगत टैंकों, डैम, बांध आदि के इस्तेमाल से हो सकता है। भूजल का पुनर्भरण तकनीक संग्रहण का एक नया तरीका है। इसे कुआं खोदकर, गड्ढा, खाई, हैंड पंप, कुओं को पुन: चार्ज किया जा सकता है।
घर की छत पर वर्षा जल एकत्र करने के लिए एक या दो टंकी बनाकर उन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढक कर जल संरक्षण किया जा सकता है। बड़ी नदियों की नियमित सफाई बेहद जरूरी है। बड़ी नदियों के जल का शोधन करके पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। जंगल कटने पर वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरा भूजल सूखता जाता है। इसलिए वृक्षारोपण जल संग्रहण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सरकारों को भी स्कूलों और अन्य स्थानों में वर्षा के जल संरक्षण के लिए अब तक ऐसी कार्यशालाएं और संगोष्ठियां औपचारिकता के निर्वाह तक सीमित रही हैं। महंगे होटलों के वातानुकूलित कक्ष में जल संरक्षण पर पहले भी खूब व्याख्यान होते रहे हैं, लेकिन क्रियान्वयन पर कभी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। इस स्थिति को बदलना होगा। अब क्रियान्वयन भी सुनिश्चित करना होगा। भारत को यह विचार तो पुरानी विरासत में मिला है। पानी के उपयोग को लेकर राज्य सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में नालियों के पानी को भी संरक्षित करने की जरूरत है। अगर हमें भविष्य में होने वाले जल संकट को रोकना है तो इसके लिए प्रत्येक स्तर पर जल संग्रहण करना होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)