धरती की सुंदरता बढ़ाएंगे, जीवन दान भी देंगे; लेकिन इन पौधों से सावधान
सड़कों के किनारे पनपे ऑस्ट्रेलियाई बबूल और यूकेलिप्टस के पेड़ों से न राहगीरों को छाया मिलती है और न ही फल।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। भारतीय संस्कृति प्रकृति को खासा महत्व दिया गया है। पेड़-पौधे हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं और यहां तो तमाम त्योहार-पर्व भी मौसम और प्रकृति से जुड़े हैं। पेड़-पौधों को पूजना हमारे देश की परंपरा रही है। बरगद, पीपल, नीम, अशोक आदि पेड़ सदियों से हमारी धरती को हरा-भरा बनाने के साथ ही पर्यावरण को भी स्वस्थ रखते आए हैं। लेकिन अब देश में इन अच्छे पौधों की अपेक्षा बुरे यानी घुसपैठिए पौधों ने अपने जंगल फैलाने शुरू कर दिए हैं। ऐसे में जरूरी है कि पौधरोपण के लिए विदेशी पौधों की बजाए देशज पौधे चुने जाएं।
ये हैं बुरे पौधे, इन्हें गलती से भी न लगाएं
जलकुंभी, लेंटाना, गाजर घास, यूपेटोरियम, वन तुलसी, सीलोसिया (सफेद मुर्गा) और आरजीमोन मेकसीकाना (सत्यानाशी), सुबबूल, अकेसिया, प्रोसोपिस, जुलिफेरा
सड़क किनारे फलदार वृक्ष बेहतर
सड़कों के किनारे पनपे ऑस्ट्रेलियाई बबूल और यूकेलिप्टस के पेड़ों से न राहगीरों को छाया मिलती है और न ही फल। इसलिए सड़कों के किनारे आम, जामुन, पीपल, महुआ, शीशम, अर्जुन व इमली जैसे पेड़ ही सबसे उपयुक्त रहते हैं। इस बात पर सरकार ने भी गौर करना शुरू कर दिया है। 2015 में सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे यही देशी पेड़ लगाने की परियोजना को हरी झंडी दे दी है।
खास हैं देशज पौधे
आंवला, आम, अशोक, वट या बरगद, बेल, कनेर, केवड़ा, नीम, पीपल, गुलमोहर, बबूल, साल, कदंब, सागवान, बांस, बेर, महोगनी, चंदन, इमली, अर्जुन आदि पौधे देश की धरती के लिए बेहद लाभकारी हैं। ये न सिर्फ हवा को शुद्ध करते हैं बल्कि मिट्टी की उर्वरकता भी बढ़ाते हैं। इनकी गहरी जड़ें बारिश के पानी को धरती की गहराई तक ले जाती हैं, जिससे भूजल स्तर बढ़ता है। जीव-जंतुओं की प्रजातियां इन पेड़-पौधों में निवास करती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र भी मजबूत होता है।
बड़े काम के पेड़-पौधे
औद्योगिक क्रांति से पहले दुनिया के सभी देश अपनी अधिकांश जरूरतें जंगल से ही पूरी करते थे। भारत की जीडीपी में वनों का 0.9 फीसद योगदान है। इनसे ईंधन के लिए सालाना 12.8 करोड़ टन लकड़ी प्राप्त होती है। हर साल 4.1 करोड़ टन टिंबर मितला है। महुआ, शहद, चंदन, मशरूम, तेल, औषधीय पौधे भी प्राप्त होते हैं।
औषधीय पौधे
देश में औषधीय गुण वाले पौधों की करीब आठ हजार प्रजातियां हैं। इनमें तुलसी, अश्वगंधा, एलोवेरा, आंवला, ब्राह्मी, बेल जैसे पौधे शामिल हैं। इनसे दवाएं बनती हैं।
प्रदूषण मिटाने में सक्षम पेड़-पौधे
धूल, गर्मी व वाहनों का धुआं सोखने वाले पौधे- नीम, अमलतास, शीशम, बांस, पीपल, मोलश्री, आम, जामुन, अर्जुन, सागवान, इमली
बेकार भूमि को उपयोगी बनाने में सक्षम पौधे- बबूल, अर्जुन, गुलमोहर, सिरस, अमलतास, कदंब
ध्वनि प्रदूषण रोकने में सक्षम पौधे- अशोक, नीम, कचनार, बरगद, पीपल, सेमल
गैसीय प्रदूषकों से निपटने में सक्षम पौधे- बेल, सिरस, नीम, बोगनविलिया, शीशम, पीपल, महुआ, इमली
धरती हुई नम आओ पौधरोपण करें हम
पेड़-पौधों के फायदे तो आप समझ ही गए हैं। यह भी आप जानते ही हैं कि धरती को बचाने के लिए पेड़ लगाने चाहिए, लेकिन कौन से पेड़ पर्यावरण के लिए अच्छे हैं और कौन से बुरे इससे अधिकांश लोग वाकिफ नहीं होते। यही वजह है कि जब भी पौधरोपण अभियान चलाए जाते हैं, तो ऐसे पेड़ लगा दिए जाते हैं जो फायदे से अधिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इतना ही नहीं, लोगों को पेड़ लगाने के सही मौसम और तकनीक के बारे में भी नहीं पता होता। जिसके चलते पेड़ों का बड़ा होना तो दूर, वे अगला मौसम तक नहीं देख पाते।
यह भी जरूरी
जिस प्रजाति का पेड़ लगाना है उसके बारे कुछ जानकारी इकट्ठा कर लेनी चाहिए। कैसी मौसमी परिस्थिति उसके उगने के लिए सबसे अनुकूल हैं और उसकी सिंचाई कब और कितनी करनी है, खाद कब और कितनी डालनी है आदि। इससे पेड़-पौधे सही तरीके से बढ़ते हैं।
सबसे अनुकूल मौसम
पौधरोपण का उपयुक्त समय कई कारकों पर निर्भर करता है। मसलन पौधा कौन सा है, कहां लगाया जाना है आदि। बारिश और ठंडक के नम मौसम में पौधे जल्दी पनपते हैं। इसमें जमीन में पूरी नमी होती है और जब तक ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है तब तक पौधे कुछ मजबूत हो जाते हैं। बसंत ऋतु में भी पेड़ लगाए जा सकते हैं। ग्रीष्म ऋतु में पेड़ लगाने से बचना चाहिए, क्योंकि इसमें नन्हीं कोंपलें गर्मी से झुलस जाती हैं।
उपयुक्त समयावधि
बसंत ऋतु- बसंत की शुरुआत का मौसम पौधरोपण के लिए अच्छा होता है। जनवरी और फरवरी में मौसम से शुष्कता खत्म हो जाती है और नमी आने लगती है। कोमल पौधों की रोपाई के लिए ये समय अच्छा होता है।
मानसून- जुलाई, अगस्त व सितंबर महीने में पौधरोपण करना अच्छा रहता है। पौधों की अधिकतर प्रजातियां इस समय बेहतर तरीके से फलती-फूलती हैं। जमीन अंदर तक नम हो जाती है, जिससे पौधों को भरपूर पानी और जरूरी खनिज मिल जाते हैं।
जड़ से थोड़ा गहरा हो गड्ढा
पौधरोपण के लिए गड्ढा खोदते वक्त ध्यान रखें कि उसकी गहराई और चौड़ाई पौधे की जड़ से बड़ी होनी चाहिए, जिससे जड़ों को फैलने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके।
173 घुसपैठिया प्रजातियां
वन उत्पादकता संस्थान, रांची के निदेशक डॉ. एसए अंसारी के अनुसार देश में पौधों की 173 घुसपैठिया प्रजाति चिन्हित की गई हैं। इनका आगमन दुर्घटनावश, सजावटी पौधों के रूप में या गलत चयन द्वारा हुआ है, जिसने अब विध्वंसक रूप ले लिया है। इनसे मुक्ति पाना अपरिहार्य हो चला है।