सीवर में दम तोड़ रहे मजदूर, पढ़ें इस बारे में क्या है कानून
2013 के कानून के अनुसार सीवर में उतरना जरूरी हो जाए तो पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ मजदूर को उसमें उतरना चाहिए। इसके लिए कुल 21 दिशानिर्देश हैं।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। 'जहां सोच, वहां शौचालय', 'हर व्यक्ति का सपना, घर में एक शौचालय हो अपना'। ऐसे ही कुछ जुमलों के साथ देश में स्वच्छता को बढ़ावा देने और शौचालय बनाने का आग्रह आमजन से किया जाता है। इसके अलावा 'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत भी साफ-सफाई के लिए देशवासियों को प्रेरित किया जाता है। जैसे ही आप शौचालय की बात करते हैं वैसे ही उसके साथ सेप्टिक टैंक और सीवर भी जुड़ जाता है। सेप्टिक टैंक या सीवर की बात आते ही रूह कांप जाती है। क्योंकि पिछले एक महीने में ही दिल्ली में 10 मजदूरों की मौत हो चुकी है, जबकि पिछले पांच सालों में सेप्टिक टैंक और सीवर से मैला निकालने के दौरान जहरीली गैस की वजह से दम घुटने के कारण कम से कम 84 मजदूरों की जान जा चुकी है।
सीवर में उतरने का लालटेन टेस्ट
इस बारे में Jagran.Com ने शुलभ शौचालय के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक से खास बातचीत की। उन्होंने बताया कि ऐसे हादसों के लिए ठेकेदारों की जल्दबाजी जिम्मेदार है। डॉ. पाठक ने बताया कि अगर सीवर में उतरना भी पड़े तो उसके लिए जरूरी दिशा-निर्देश हैं। इसके तहत पहले सीवर में एक जलता हुआ लालटेन डाला जाता है। अगर लालटेन जलता रहे तो इसका अर्थ यह है कि उसमें इंसान के सांस लेने लायक ऑक्सीजन है। अगर लालटेल बुझ जाए तो समझ लेना चाहिए कि सीवर में इंसान को उतारना मौत को बुलावा देने के बराबर है। लेकिन ठेकेदार ऐसी जांच नहीं करते और सफाईकर्मियों को सीवर में उतार देते हैं, जिसकी वजह से उनकी मौत हो जाती है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च 2014 को सीवर में हुई मौतों को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था। इस फैसले में कोर्ट ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को 2013 का कानून पूरी तरह से लागू करने, सीवरों एवं सेप्टिक टैंकों में होने वाली मौतें रोकने व 1993 के बाद सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान सभी मरने वालों के आश्रितों को दस लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था।
क्या है ताजा घटना
रविवार 20 अगस्त को देश की राजधानी दिल्ली के दिल्ली गेट स्थित लोकनायक जयप्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल जिसे लोग इर्विन अस्पताल के नाम से भी जानते हैं के परिसर में सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस से ऋषिपाल नाम के एक मजदूर की मौत हो गई। इस हादसे में दो अन्य मजदूर भी जहरीली गैस के कारण बेहोश हो गए। ऋषिपाल पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार पीयूष के अधीन काम करता था। ठेकेदार के खिलाफ लापरवाही से हुई मौत के लिए मुकदमा दर्ज किया गया है और घटना के बाद से वह फरार है।
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एक महीने में 10 मौत
पिछले एक महीने में ही सीवरों की सफाई करते हुए अबतक 10 लोगों की मौत हो चुकी है। इस तरह के दर्दनाक हादसे को रोकने की दिशा में न तो सरकार कोई कदम उठा रही है और न ही संबंधित विभाग कुछ सोचने को तैयार हैं। ठेकेदारी प्रथा के चलते ठेकेदार ज्यादा मुनाफे के लालच में अप्रशिक्षित कर्मचारियों को सीवर में उतार देते हैं। यही नहीं कर्मचारियों को जरूरी सुरक्षा उपकरण भी मुहैया नहीं कराए जाते।
सीवर में उतरने पर क्या कहता है कानून?
शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम (1993) संसद से पारित है और इसके तहत मैला ढोने व शुष्क शौचालयों के निर्माण को गैर कानूनी करार दिया गया है। इस मामले में दोषी पाए जाने पर एक वर्ष की कैद और 2,000 रुपये जुर्माने का भी प्रावधान था, लेकिन जिस तरह से सीवर में उतरने के कारण सफाईकर्मियों की मौतों का आंकड़ा सामने आता है उसे देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कानून कभी सही ढंग से लागू ही नहीं हो पाया।
2013 में भी बना यह कानून
2013 में प्रोहिबिशन ऑफ एंप्लॉयमेंट ऐज मैनुअल स्केवेंजर एंड देयर रिहैबिलिटेशन एक्ट पारित हुआ। इस कानून के मुताबिक कोई भी इंसान सफाई के लिए सीवर के अंदर नहीं जाएगा, अगर सीवर में जाना निहायत ही जरूरी हो तो पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ जाना होगा। कानून में इस प्रथा से जुड़े लोगों के पुनर्वास के लिए आर्थिक सहायता देने के लिए सर्वे कराने का भी प्रावधान रखा गया था।
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सीवर सफाई मजदूरों को मिलने ही चाहिए ये चीजें
2013 के कानून के अनुसार सीवर में उतरना जरूरी हो जाए तो पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ मजदूर को उसमें उतरना चाहिए। इसके लिए कुल 21 दिशानिर्देश हैं। ऐसे में सवाल यह है कि वे सुरक्षा उपकरण हैं क्या?
ऑक्सीजन मास्क- सीवर में उतरने वाले हर मजदूर के पास ऑक्सीजन मास्क होना चाहिए। क्योंकि सीवर में जहरीली गैसें ऑक्सीजन को खत्म कर देती हैं, जिसकी वजह से बड़े हादसे होते हैं।
रबड़ के जूते- सफाई कर्मचारियों के पास रबड़ के जूते होने ही चाहिए। इससे उन्हें सीवर में न सिर्फ नुकीली चीजों से सुरक्षा मिलेगी, बल्कि गंदे पानी में वह गीले भी नहीं होंगे।
सेफ्टी बेल्ट- सीवर में उतरने वाला हर कर्मचारी सेफ्टी बेल्ट पहनकर ही नीचे जाए। इसका फायदा यह होगा कि जैसे ही वह बेहोश होगा या प्रतिक्रिया देना बन करेगा उसे तुरंत ऊपर खींचा जा सके।
रबड़ के दास्ताने- रबड़ के दास्ताने मजदूर को नुकीली चीजों से बचाएंगे और उन्हें गंदगी को हाथ से छूने की बाध्यता भी नहीं होगी।
टॉर्च- सीवर में उतरने वाले मजदूर के पास टॉर्च होना भी जरूरी है, ताकि वह स्पष्ट रूप से देख सके कि वह किधर जा रहा है और किस चीज को छू रहा है।
एंबुलेंस- जब भी किसी सफाईकर्मचारी को सीवर में उतरने के लिए बाध्य होना पड़े तो सबसे पहले आपातकालीन एंबुलेंस की व्यवस्था वहां होनी चाहिए। ताकि किसी भी तरह की अनहोनी में मजदूर की जान बचायी जा सके।
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ठेकेदार को मिले कड़ी सजा
डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने कहा, जो व्यक्ति किसी को सफाई के लिए सीवर में भेजता है उसे भी दंड मिलना चाहिए। हमारे यहां उस व्यक्ति को दंड नहीं मिलता, इसी वजह से ऐसे हादसे होते हैं। उसे सजा मिले तो वह अगली बार से नियमों की अनदेखी नहीं करेगा। उन्होंने मृतक सफाईकर्मियों के परिजनों के लिए कम से कम 50 लाख रुपये के मुआवजे की भी मांग की, ताकि वे अपना जीवन यापन ठीक से कर सकें। यही नहीं, वे चाहते हैं कि मृतक के परिवार में से किसी व्यक्ति को सरकारी नौकरी भी दी जाए। मशीनों के उपयोग के बारे में वह बताते हैं कि पश्चिमी देशों में इंसान को सीवर में भेजे बिना साफ-सफाई की व्यवस्था है। भारत में भी ऐसी मशीनों को मंगवाया जाना चाहिए।
प्रायोजित हत्या है यह
सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता बेजवाड़ा विल्सन ने एलएनजेपी अस्पताल में सीवर की सफाई के दौरान मजदूर की मौत को शासन-प्रशासन द्वारा प्रायोजित हत्या करार दिया। उन्होंने कहा, ये मौत शासन-प्रशासन की नाकामी और उनकी उदासीनता के उदाहरण हैं। उनका कहना है कि उन्होंने दिल्ली में सफाई कर्मचारियों की भयावह स्थिति को देखते हुए दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल कार्यालय को पत्र लिखा कि वे सभी अस्पतालों, मॉल, स्कूल समेत अन्य सार्वजनिक इमारतों से एक शपथ पत्र लें कि वह सीवर व सेप्टिक टैंक की सफाई मजदूरों से नहीं कराएंगे। वह निराश होकर कहते हैं कि इस पत्र को लिखे भी कई हफ्ते हो गए, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।