अंटार्कटिका से एक और डरावनी खबर, पंजाब के क्षेत्रफल से भी बड़ा है यह खतरा
अंटार्कटिका से अब एक और डरावनी खबर आयी है। यहां वैज्ञानिकों को एक ऐसी चीज मिली है जो पंजाब और श्रीलंका से भी काफी बड़ी है और इजरायल जैसे तो चार देश इसमें समा सकते हैं।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। हाल ही में अंटार्कटिका से 5800 वर्ग किलोमीटर का एक हिस्सा टूटकर अलग हो गया था। Jagran.Com ने 13 जुलाई 2017 को भी अपनी एक विशेष खबर में बताया था कि जितना बड़ा हिस्सा टूटा है उसमें हमारे देश की राजधानी दिल्ली जैसे 4 शहर समा सकते हैं। अंटार्कटिका से अब एक और डरावनी खबर आयी है। यहां वैज्ञानिकों को एक ऐसी चीज मिली है जो पंजाब और श्रीलंका से भी काफी बड़ी है और इजरायल जैसे तो चार देश इसमें समा सकते हैं।
अंटार्कटिका की बर्फ में मिला रहस्यमय छिद्र
वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका की जमी हुई समुद्री बर्फ में एक विशालकाय और रहस्यमय छिद्र दिखा है, जिसका श्रेत्रफल 80 हजार वर्ग किलोमीटर है। यह छिद्र असामान्य और विचित्र किस्म का है, क्योंकि यह आकार में काफी बड़ा है। दूसरा, यह उस तट से काफी दूर है, जहां अक्सर पानी के पैचेज देखे जाते हैं। इसे पॉलीन्या कहा जा रहा है।
क्या होता है पॉलीन्या
पॉलीन्या दरअसल, चारों तरफ से समुद्री बर्फ से ढका खुले पानी का क्षेत्र होता है। इस तरह के विशाल पॉलीन्या को 1970 में देखा गया था।
छिद्र बनने की वजह का पता नहीं
कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के प्रोफेसर केंट मूर के मुताबिक, अंटार्कटिका में पिछले महीने यह विशालकाय छिद्र देखा गया है। उस स्थान पर पानी के धब्बे देखे गए, जहां आप बर्फ होने की उम्मीद करते हैं। हालांकि, इस बारे में फिलहाल किसी को नहीं पता कि यह छिद्र कैसे बना।
पिछली बार खुद हो गया था गायब
शोधकर्ताओं के मुताबिक, वैसे इस तरह का छिद्र पहली बार नहीं देखा गया है। नासा अर्थ ऑब्जरवेटरी के अनुसार, वैज्ञानिकों ने साल 1974 में भी अंटार्कटिका में बिल्कुल ऐसा ही पॉलीन्या देखा था। हालांकि, यह खुद-ब-खुद गायब भी हो गया और उसके बाद दशकों तक यह दोबारा नहीं देखा गया। अगस्त 2016 में यह दोबारा देखा गया, लेकिन तब यह पहले वाले से काफी छोटा था। अब फिर से अस्तित्व में आया एक और विशाल छिद्र वाकई रहस्यमय है।
इसी साल एक खरब टन का आइसबर्ग टूटा
बता दें कि अंटार्कटिका का 98 फीसद हिस्सा बर्फ से ढका हुआ है और जुलाई में जो हिस्सा टूटा है वह करीब एक खरब टन का आइसबर्ग था। आप इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जो हिस्सा टूटा है उस अकेले हिस्से में ही अमेरिका के न्यूयॉर्क जैसे 7 शहर समा सकते हैं। जाहिर है इस चट्टान के टूटने से अंटार्कटिका की सूरत बदल गई।
बर्फ के दायरे में रिकॉर्ड गिरावट
Jagran.Com के 27 सितंबर को एक और खबर दी थी कि अंटार्कटिका में बर्फ के दायरे में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है। खबर में बताया गया था कि बर्फीले महाद्वीप अंटार्कटिका में बर्फ की चादर पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है। वैज्ञानिकों ने बताया कि महाद्वीप के समुद्र में बर्फ की चादर का दायरा इस साल रिकार्ड निम्न स्तर पर पहुंच गया है।
अभी काफी रिसर्च की जरूरत
बर्फ के दायरे में आ रहे बदलाव की प्रक्रिया को समझने के लिए अभी काफी काम करना बाकी है। आंकड़ों के अनुसार, समुद्री बर्फ का न्यूनतम दायरा इस साल मार्च में 20.75 लाख वर्ग किमी रिकॉर्ड किया गया। जबकि अधिकतम दायरा 12 सितंबर को 1.8 करोड़ वर्ग किमी दर्ज किया गया। तीन साल पहले यह दायरा दो करोड़ वर्ग किमी से ज्यादा रिकॉर्ड किया गया था।
ये भी है अंटार्कटिका में बर्फ कम होने का कारण
पर्यटन क्रूज और जहाजों की बढ़ती आवाजाही को इसका कारण बताया जा रहा है। पिछले साल विभिन्न आपूर्ति जहाजों के साथ ही करीब 50 क्रूज जहाज अंटार्कटिका पहुंचे थे। इन क्रूज जहाजों से करीब 35 हजार पर्यटक बर्फ की चादर, ग्लेशियर और वन्यजीवों को देखने वहां पहुंचे थे। दुनियाभर के वैज्ञानिक सितंबर के अंतिम हफ्ते में ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया प्रांत की राजधानी होबार्ट में अंटार्कटिका क्षेत्र में बर्फ के स्तर में उतार-चढ़ाव, नेविगेशन और पर्यटकों की बढ़ती संख्या पर चर्चा के लिए जुटे। वैज्ञानिकों ने बताया कि उपग्रह की तस्वीरों से महाद्वीप की समुद्री बर्फ के निम्नतम और अधिकतम दायरे में इस साल रिकॉर्ड कमी की पुष्टि हुई है।
ये मौत तो बहुत तेज निकली...
खतरा अंटार्कटिका को ही नहीं, बल्कि आर्कटिक भी खतरे में है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण तीन दशकों में आर्कटिक पर बर्फ का क्षेत्रफल करीब आधा हो गया है। आर्कटिक काउंसिल की एक रिपोर्ट ‘स्नो, वॉटर, आइस, पर्माफ्रॉस्ट इन द आर्कटिक’ (स्वाइपा) के मुताबिक 2040 तक आर्कटिक की बर्फ पूरी तरह से पिघल जाएगी। पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि यह बर्फ 2070 तक ख़त्म होगी, लेकिन असामान्य और अनियमित मौसम चक्र की वजह से यह और भी तेजी से पिघल जाएगी। पर्यावरणविदों के अनुसार आर्कटिक की बर्फ पिघलने से पृथ्वी के वातावरण में भयावह परिवर्तन हो सकते हैं। यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय पत्रिका द इकोनॉमिस्ट में प्रकाशित हुई है। इस साल सात मार्च को आर्कटिक में सबसे कम बर्फ मापी गई।
यह भी है प्रमुख कारण
हम इंसानों ने पिछली करीब एक सदी में प्रकृति के साथ जितनी छेड़छाड़ की है, उतनी शायद ही पहले कभी की हो। इसी एक सदी के दौरान विश्व में जनसंख्या विस्फोट देखने को मिला, खासकर 20वीं सदी के अंतिम 40 सालों में। इसके अलावा इंसान ने अपनी जरूरतों के लिए ऐसे-ऐसे अविष्कार किए और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की कि पर्यावरण का संतुलन ही बिगड़कर रह गया।
भारत पर असर
आर्कटिक की बर्फ पिघलने से समुद्र के प्रवाह पर भी असर पड़ेगा। इससे प्रशांत महासागर में अल नीनो का असर तेज़ होने के साथ भारतीय मानसून भी प्रभावित होगा। ऐसा नहीं है कि सिर्फ आर्कटिक की ही बर्फ तेजी से पिघल रही है। अंटार्कटिक की बर्फ पिघलने की रफ्तार भी काफी तेज़ है। ताजा घटना ने तो सभी पर्यावरणविदों को चिंता में डाल दिया है। ऐसा होने से हिंद महासागर का तापमान भी बढ़ेगा, जो भारत में मानसून की रफ्तार प्रभावित करेगा।