'जिनका सामर्थ्य नहीं वो न जाएं हज यात्रा पर, सब्सिडी अनुचित'
कुरान और हदीस में इस बात का साफ-साफ वर्णन है कि हज उन्हीं लोगों पर फर्ज है जो इसे करने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम हों।
मोहम्मद शहजाद। नेक-नीयती से किए गए काम काफी फलदायक होते हैं। नई हज नीति का मसौदा इसकी बेहतरीन नजीर है। अल्पसंख्यक मंत्रालय के जरिये पूर्व आइएएस अफजल अमानुल्लाह के नेतृत्व में गठित कमेटी का मकसद मूलत: हज सब्सिडी को खत्म करने की संभावनाएं तलाश करना था। इस नेक काम के दौरान उसे कई दीगर ऐसे उपाय हाथ लगे, जिनको लागू करके हज-यात्रा को और पारदर्शी व सुगम बनाने में नि:संदेह काफी मदद मिलेगी।
कमेटी ने मंत्रालय को अपनी जो सिफारिशात सौंपी हैं, उसके लागू होने के बाद कम पैसे वालों के लिए भी अब इस मुबारक सफर पर जाना आसान होगा। असल में हज इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों में से एक जरूर है, लेकिन यह जकात की तरह ही उन्हीं मुसलमानों पर फर्ज है जो आर्थिक तौर पर इसे अदा करने के लिए संपन्न हों। आर्थिक सामर्थ्य न होने के बावजूद हर मुसलमान अपने पूरे जीवनकाल में कम से कम एक बार खुदा के घर के दीदार के लिए इस मुबारक सफर पर जाने के लिए लालायित रहता है। उसकी इसी तमन्ना और भावना के सम्मान में न जाने हमारे यहां हज सब्सिडी की कुप्रथा कैसे प्रचलित हो गई, जबकि कुरान और हदीस में इस बात का स्पष्ट वर्णन है कि हज उन्हीं लोगों पर फर्ज है जो इसे करने के लिए आर्थिक तौर पर सक्षम हों। इसको देखते हुए ही 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने हज सब्सिडी को आइंदा दस वर्षों अर्थात 2022 तक खत्म करने का निर्देश दिया था। जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजन देसाई की खंडपीठ ने अपने इस फैसले में हज सब्सिडी पर आने वाले खर्च को मुसलमानों के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने पर इस्तेमाल करने पर जोर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का बहुत से मुस्लिम विद्वानों ने स्वागत किया था। इसके पीछे उनकी दलील थी कि सरकार के जरिये दी जाने वाली सब्सिडी पर हज करना शरीयत के विरुद्ध है। बात भी सोलह आने सच है, क्योंकि शरीयत ने भी उन्हीं लोगों को हज पर जाने का आदेश दिया है जो इसका खर्च वहन कर सकते हों। इसके लिए किसी सरकारी मदद की आवश्यकता नहीं है। फिर मुस्लिम स्कॉलर इस बात पर एकमत हैं कि सरकार के जरिये दी जाने वाली इस सब्सिडी का अधिकतर हिस्सा भारत और सऊदी अरब की सरकारी एयरलाइंस के हिस्से में चला जाता है। गौरतबल है कि सब्सिडी का लाभ लेने वालों के लिए इन्हीं दोनों एयरलाइंस से यात्रा करने की बाध्यता थी। इस तरह मुसलमानों को इसका कोई विशेष लाभ भी नहीं मिलता है। उनका मत था कि इसके लिए हज यात्रा के लिए वैश्विक स्तर पर खुली निविदाएं आमंत्रित की जाएं।
कम से कम खर्च में अच्छी से अच्छी सुविधाएं देने वाले को इसका टेंडर दिया जाए। फिर भारत के हज कोटे को देखते हुए तो कोई भी बड़ी एयरलाइंस इतनी तादाद में मुसाफिरों को लाने-ले जाने के लिए काफी कम किराए का ऑफर दे सकती है। इससे इसकी हवाई यात्र पर होने वाला खर्च काफी कम हो जाएगा।
हज यात्रा पर आने वाले खर्च को कम करने की इसी जुगत में हज पॉलिसी 2018-22 में फिर से पानी का जहाज चलाने का प्रस्ताव रखा गया है। इसके अनुसार 4000 से 5000 मुसाफिरों की क्षमता वाले ऐसे जहाज चलाए जा सकते हैं जो तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे। इसके लिए भी वैश्विक स्तर पर निविदाएं आमंत्रित करने का विचार है। बताते चलें 1995 में एमवी अकबर नामक पानी के जहाज की हज यात्रा के लिए भारत में अंतिम बार सेवाएं ली गई थीं, लेकिन तब तक इसका सफर काफी कठिन था। इसके सफर में 10-15 दिन लग जाते थे, लेकिन खर्च काफी कम आता था। इसी को ध्यान में रखते हुए हज यात्रा के लिए फिर से पानी का जहाज चलाने की सिफारिश की गई है। इस तरफ हज यात्रा पर होने वाले ढाई-तीन लाख रुपये के खर्च को घटाकर महज 60000 रुपये तक लाने का प्रावधान है। यानी अब कम पैसे वाले मुसलमान भी हज पर जाने की अपनी हसरतें पूरी कर सकेंगे। आधुनिक टेक्नोलॉजी ने इसके सफर को भी आसान बना दिया है और अब इनके जरिये मुंबई से जेद्दा केवल तीन दिन के सफर में पहुंचना संभव होगा।
नई हज पॉलिसी का मसौदा तैयार करने के पीछे सरकार का असल उद्देश्य हज सब्सिडी समाप्त करने के उपाय तलाश करना था, लेकिन अपने इस प्रयास में उसने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि इसका भार हज यात्रा पर जाने वालों पर कम से कम पड़े। यही वजह है कि इसके लिए गठित कमेटी ने हज यात्रा के प्रस्थान स्थानों की मौजूदा संख्या 21 को घटाकर नौ कर दिया है। इससे छोटे शहरों से हज फ्लाइट पर आने वाले अनावश्यक व्यय को कम किया जा सकेगा। यानी नई पॉलिसी में हज यात्रा में आने वाले खर्च को कम करने के हर संभव प्रयास किए गए हैं। इस तरह इसने उन मुसलमानों की चिंताओं को भी दूर करने का प्रयास किया है जो सब्सिडी समाप्त होने पर अन्यथा भार पड़ने का रोना रोते थे।
(लेखक दूरदर्शन से जुड़े हैं)