उत्तर कोरिया के मंसूबे खतरनाक, कहीं ये तीसरे विश्वयुद्ध की आहट तो नहीं
अगर तीसरे विश्व युद्ध की आशंका पर विराम लगाना है तो विश्व के ताकतवर देशों को संयुक्तराष्ट्र के साथ मिलकर उत्तर कोरिया का समाधान जल्द से जल्द खोजना पड़ेगा
पीयूष द्विवेदी
आतंकवाद के उन्मूलन के लिए संयुक्त प्रयास पर सहमति बना रहे विश्व के समक्ष इस समय उत्तर कोरिया एक महासंकट के रूप में उपस्थित हो चुका है। संयुक्त राष्ट्र समेत विश्व के लगभग सभी बड़े देशों के प्रतिबंधों और चेतावनियों को अनदेखा करते हुए तानाशाह किम जोंग उन के नेतृत्व में यह छोटा-सा देश दुनिया के लिए सिर दर्द बनता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को धता बताते हुए एक के बाद एक घातक प्रक्षेपास्त्रों का परीक्षण करने से लेकर अमेरिका जैसे देश को खुलेआम चुनौती देने तक उत्तर कोरिया का रवैया पूरी तरह से उकसावे वाला रहा है। अभी हाल ही में उसने जापान के ऊपर से मिसाइल ही दाग दी थी, जिसके बाद जापान ने अपने महत्वपूर्ण क्षेत्रों में मिसाइल रक्षा प्रणाली की तैनाती कर ली है। उत्तर कोरिया का क्या करना है, इसका कोई ठोस उत्तर फिलहाल विश्व के किसी भी देश के पास नहीं है। अब तक उत्तर कोरिया की इन अराजक गतिविधियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र और ताकतवर देशों की तरफ से सिवाय जुबानी प्रहार के धरातल पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कह तो बहुत कुछ रहे हैं, मगर मालूम उन्हें भी होगा कि किम जोंग उन का खात्मा इतना आसान नहीं है। कहा यह भी जा रहा कि अमेरिका ने लादेन को जैसे पाकिस्तान में घुसकर मार गिराया था, वैसे ही किम को भी मार सकता है, लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि इन दोनों ही मामलों में भारी अंतर है। लादेन एक आतंकी था, जिसके पास सिवाय कुछ लड़ाकों और पाकिस्तानी हुकूमत के अप्रत्यक्ष सहयोग के कुछ नहीं था। जबकि किम जोंग उन एक देश का राष्ट्राध्यक्ष हैं, जिनके साथ न केवल लादेन से कहीं अधिक सुरक्षा तंत्र है, बल्कि उनके नियंत्रण में परमाणु हथियारों का जखीरा भी है। ऐसे में, क्या उन्हें लादेन की तरह मार गिराने की कल्पना की जा सकती है ? यकीनन नहीं! यह बात अमेरिका भी बाखूबी समझता है, तभी तो अब तक उसने कोई भी कार्रवाई करने से परहेज किया है। स्पष्ट है कि किम जोंग उन के तानाशाही नेतृत्व में उत्तर कोरिया विश्व के लिए एक घातक यक्ष-प्रश्न बन गया है। घातक यक्ष-प्रश्न इसलिए, क्योंकि अगर जल्द से जल्द इसका उचित उत्तर नहीं खोजा गया तो पूरी संभावना है कि वह दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ ले जाएगा।
तीसरे विश्व युद्ध की बात करने के पीछे ठोस कारण हैं, जिन्हें समझने के लिए आवश्यक होगा कि हम पिछले दोनों विश्व युद्धों के इतिहास और उनकी पृष्ठभूमि का एक संक्षिप्त अवलोकन करें। इतिहास पर दृष्टि डालें तो दोनों ही विश्व युद्धों की शुरुआत छोटी सी घटनाओं से हुई थी। ऑस्टिया के राजकुमार और उनकी पत्नी की सेराजोवा में हुई हत्या प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण बनी थी। उस विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि के अध्ययन पर स्पष्ट होता है कि तत्कालीन दौर में यूरोपीय देशों के बीच उपनिवेशों की स्थापना की होड़ के कारण परस्पर ईष्र्या और द्वेष का भाव बुरी तरह से भर चुका था। हितों के टकराव जैसी स्थिति जन्म ले चुकी थी। गुप्त संधियां आकार लेने लगी थीं। परिणाम विश्व युद्ध के रूप में सामने आया। 1918 में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व बिरादरी ने एक तरफ जहां आगे से विश्व युद्ध जैसी परिस्थितियों को रोकने के लिए राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशंस) की स्थापना की, वहीं दूसरी तरफ वर्साय की संधि के तहत जर्मनी पर लगाए गए अनुचित और अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों के माध्यम से अनजाने में ही द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका का निर्माण भी कर दिया। फलस्वरूप 1935 में जर्मनी जब हिटलर के नेतृत्व में ताकतवर होकर उभरा तो उसने वर्साय की संधि और प्रतिबंधों का उल्लंघन आरंभ कर दिया। 1939 में जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया और बस यहीं से द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो गया। वह युद्ध भयानक रूप से संहारक रहा। इसका अंत होते-होते अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमले तक कर दिए। राष्ट्र संघ जिसकी स्थापना विश्व युद्ध जैसी परिस्थितियों को रोकने के लिए की गई थी, अप्रासंगिक होकर रहा गया।
इन दोनों विश्व युद्धों में जो एक बात समान है, वह यह कि इनके लिए वैश्विक वातावरण तो पहले से बना हुआ था, मगर इनकी शुरुआत किसी एक छोटे-से तात्कालिक कारण से हुई। फिर चाहे वह प्रथम विश्व युद्ध के समय ऑस्टिया के राजकुमार की हत्या हो या द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण करना हो।आज भी वैश्विक वातावरण में तनाव व्याप्त है। ऐसे में उत्तर कोरिया का रवैया इस नाते डराता है कि उसके साथ की गई कोई भी हरकत तीसरे विश्व युद्ध का कारण बन सकती है। यह बात सर्वस्वीकृत है कि उत्तर कोरिया को चीन का अंदरूनी समर्थन और सहयोग है, जिसके दम पर वह हथियारों आदि के मामले में बेहद सशक्त हो चुका है। साथ ही चीन का जापान और अमेरिका से मुखर विरोध है। ऐसे में उत्तर कोरिया पर हाथ डालने की स्थिति में उसके साथ-साथ चीन भी दिक्ततें खड़ी कर सकता है। पाकिस्तान का समर्थन भी चीन के ही साथ होगा। अमेरिका और यूरोपीय देश एक साथ आ सकते हैं। इसके बाद तीसरे विश्व युद्ध के लिए और किस चीज की आवश्यकता रह जाएगी। संयुक्त राष्ट्र आज उत्तर कोरिया के संदर्भ में निष्प्रभावी ही सिद्ध हो रहा है।
इन संभावित परिस्थितियों को देखते हुए तीसरे विश्व युद्ध की आहट न महसूस करने का कोई कारण नहीं दिखता। एक मार्ग यह है कि उत्तर कोरिया पर हाथ न डाला जाए, लेकिन किम जोंग उन की आक्रामकता देखते हुए ऐसा करने का भी कोई लाभ नहीं है। क्योंकि उत्तर कोरिया खुद ही किसी न किसी से उलझकर विश्व युद्ध की परिस्थितियों को आमंत्रित कर देगा। यह विश्व युद्ध हुआ तो पिछले दोनों विश्व युद्धों से कहीं अधिक विनाशकारी और भयावह होगा। द्वितीय विश्व युद्ध में दो परमाणु बम गिरे थे, जिनके चिन्ह जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में अब तक मौजूद हैं। अब तो हर छोटे-बड़े देश के पास परमाणु क्षमता है, तो फिर विश्व युद्ध में क्या विभीषिका मच सकती है, इसकी कल्पना ही डराने वाली है। अगर तीसरे विश्व युद्ध की इस आशंका पर विराम लगाना है तो उत्तर कोरिया का समाधान शीघ्र ही विश्व के ताकतवर देशों को संयुक्तराष्ट्र के साथ मिलकर खोजना पड़ेगा।
(लेखक इग्नू में शोधार्थी हैं)
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