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ये खतरा है बड़ा, अभी कुछ नहीं किया तो मुंबई-कोलकाता का नामोनिशान मिट जाएगा

बर्फ के पिघलने से समुद्रों का जलस्तर 80 मीटर तक बढ़ जाएगा और कोलकाता, मुंबई के साथ ही गुजरात के तटीय हिस्से भी पानी में डूब जाएंगे।

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 22 Jul 2017 02:56 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jul 2017 03:32 PM (IST)
ये खतरा है बड़ा, अभी कुछ नहीं किया तो मुंबई-कोलकाता का नामोनिशान मिट जाएगा

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। नेशनल जियोग्राफिक और बिजनेस इनसाइडर ने भविष्य की दुनिया का नक्शा बनाया है। आपके लिए इसमें खबर यह है कि यह नक्शा आज की दुनिया से बिल्कुल अलग है। इसमें दर्शाया गया है कि अगर दुनिया की सारी बर्फ पिघल जाएगी तो महाद्वीपों का बड़ा हिस्सा समुद्र में डूब जाएगा। डराने वाली बात तो यह है कि बांग्लादेश जैसे छोटे देश तो नक्शे से गायब ही हो जाएंगे। भारत पर भी इसका बहुत ही बुरा असर पड़ेगा और आर्थिक राजधानी मुंबई तथा कोलकाता भी जलमग्न हो जाएंगे। 

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नहीं बचेगा मुंबई, कोलकाता और लंदन का नामोनिशान

बर्फ के पिघलने से समुद्रों का जलस्तर 80 मीटर तक बढ़ जाएगा और कोलकाता, मुंबई के साथ ही गुजरात के तटीय हिस्से भी पानी में डूब जाएंगे। हैरान करनेवाली बात यह है कि 1.47 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में बसा भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश दुनिया के नक्शे से मिट जाएगा। पर्यटन और नाइट लाइफ के लिए मशहूर बैंकॉक भी समुद्र में समा जाएगा और हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान का अधिकांश हिस्सा समुद्र में डूब जाएगा। यही नहीं ब्रिटेन का लंदन और इटली का वेनिस शहर भी पूरी तरह जलमग्न हो जाएंगे। लिस्बन, ब्रसेल्स, स्टॉकहोम, बार्सिलोना समेत अन्य यूरोपीय शहर भी समुद्र में समा जाएंगे।


पानी में चली जाएगी चीन की हेकड़ी

अपनी विस्तारवादी नीति के चलते भारत सहित दुनिया के कई देशों से दुश्मनी पाल रहा चीन भी इस त्रासदी से नहीं बच पाएगा। चीन की राजधानी बीजिंग समुद्र में पहुंच जाएगी और शंघाई भी पूरी तरह से डूब जाएगा। ऐसा ही हाल जापान की राजधानी टोक्यो का भी होगा।

इसी सदी में कई जगहें रहने लायक नहीं बचेंगी

पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार जिस रफ्तार से ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा हो रहा है, उसके चलते इस सदी के अंत तक पृथ्वी पर कई ऐसे स्थान हैं जो रहने लायक नहीं बचेंगे। बदलते मौसम चक्र के कारण ये स्थान तूफान, सूखा, बाढ़ जैसी आपदाओं की चपेट में आ जाएंगे।

 

तीसरा गर्म महीना रहा जून

अमेरिकी संस्थान नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अनुसार इस साल जून का महीना 1880 से अब तक का तीसरा सबसे गर्म महीना रहा है। इसका तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से 0.82 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। सबसे गर्म जून 2016 का रहा। उसमें औसत तापमान 0.92 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा था। 2015 जून का यह आंकड़ा 0.89 डिग्री सेल्सियस रहा था। साथ ही 2017 की पहली छमाही (जनवरी-जून) 137 साल में दूसरी सबसे गर्म छमाही रही। इस दौरान 20वीं सदी के औसत तापमान से 0.91 डिग्री अधिक तापमान रहा। सर्वाधिक गर्म छमाही 2016 की थी।

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पूरे विश्व में मचेगा हाहाकार

समुद्र का बढ़ा जलस्तर दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का नक्शा पूरी तरह बदल देगा। उत्तर अमेरिकी महाद्वीप के मियामी, हवाना, ह्यूसटन, न्यूयॉर्क, वाशिंगटन, बोस्टन जैसे शहर भी समुद्र में डूब जाएंगे। हालांकि ऐसा होने में पांच हजार साल से अधिक का वक्त लग सकता है।

पेरिस समझौते से भी नहीं बनेगी बात

धरती के बढ़ते तापमान पर रोक लगाने के लिए उत्सर्जन कटौती की बात कही जा रही है। लेकिन लगता नहीं कि अब तय उत्सर्जन कटौती से भी बात बनेगी। नासा के पूर्व वैज्ञानिक जिम हैनसेन की अध्यक्षता में वैज्ञानिकों के दल ने ताजा रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक अब कार्बन उत्सर्जन कम करने से काम नहीं चलेगा। यदि धरती को बचाना है तो वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को जियोइंजीनियरिंग की बदौलत कम करना होगा। पेरिस समझौते के तहत जो लक्ष्य तय किए गए हैं, बड़े देश उसी से कन्नी काटते दिख रहे हैं, लेकिन यदि सभी मिलकर उसे हासिल भी कर लें तो भी अब बात नहीं बनने वाली है। 

कार्बन हटाने की प्रक्रिया

जियोइंजीनियरिंग ऐसी प्रक्रियाओं को कहते हैं जिनके जरिए वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को प्रत्यक्ष रूप से कम किया जाता है। साथ ही बड़े-बड़े शीशों यानी परावर्तकों द्वारा सूर्य की रौशनी को वापस भेज दिया जाता है। यह तरीका सोलर रेडिएशन तकनीक मैनेजमेंट के तहत आता है। वातावरण में मौजूद 12.5 फीसद कार्बन डाईऑक्साइड में तत्काल कटौती की जरूरत है। संयंत्रों के जरिए वातावरण से कार्बन निकालने की लागत आएगी करीब 535 लाख करोड़ डॉलर।

क्या है पेरिस जलवायु समझौता

वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने के मकसद से यह करार हुआ। 195 देश इस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। इन देशों ने अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने का निश्चय किया है। रिपोर्ट के मुताबिक पेरिस समझौते से निश्चित रूप से ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिर्वतन रोकने की दिशा में देश जागरूक हुए हैं। हालांकि यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि मीथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसों का भी उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है।

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आपातकाल की स्थिति

लोगों को इस आपातकाल के लिए चेताकर कार्बन डाइआक्साइड में तत्काल कटौती करनी होगी, तभी वातावरण में मौजूद वाष्प, बर्फ की चादर को पिघलने से रोका जा सकेगा। कार्बन डाइऑक्साइड के खात्मे के लिए संयंत्र भी लगाने होंगे। बढ़ते तापमान पर रोक लगाने का एकमात्र उपाय यही है कि बड़े स्तर पौधरोपण करना होगा। समुद्र में फोटोसिंथेटिक जीव पैदा करने होंगे, ये कार्बन को सोखकर ऑक्सीजन का उत्सर्जन करेंगे। सिंचाई तकनीकों के इस्तेमाल से रेगिस्तान में भी हरियाली उत्पन्न करनी होगी।

पहले भी था इतना तापमान

मौजूदा समय के वैश्विक तापमान जितना ही तापमान एमियन युग में था। यह युग 1.3 लाख पहले शुरू होकर 1.1 लाख साल पहले खत्म हो गया। उस दौरान समुद्र का स्तर मौजूदा इस समय के मुकाबले छह से नौ मीटर अधिक था। 


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