स्मॉग से निपटने की कवायद, 13 से 17 नवंबर तक दिल्ली में मुफ्त DTC बस सेवा
वायु प्रदूषण का सामना करने के लिए तमाम उपाय अमल में लाए जा रहे हैं। लेकिन पीएम 2.5 और पीएम 10 से निपटने के लिए ठोस प्रबंध करने होंगे।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। कण कण में कोहराम, दिल्ली और एनसीआर में घुटता है दम, सांसत में सांसें ये सब शब्दों के वो समूह हैं जो सुर्खियों में हैं। दिल्ली और एनसीआर पूरी तरह से स्मॉग की चादर से लिपटा है। दिल्ली सरकार सेहत के दुश्मन पीएम 2.5 और पीएम 10 से निपटने के लिए कई उपायों पर काम कर रही है। उन्हीं उपायों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में ऑड-ईवन को शामिल करना है। दिल्ली और एनसीआर की फिजां में धूल की जो गर्द जमी है उसे कम करने के लिए 13 से लेकर 17 नवंबर तक सम-विषम के क्रम में प्राइवेट गाड़ियों की संख्या को नियंत्रित किया जाएगा। दिल्ली सरकार ने सार्वजनिक परिवहन को चार दिन 13-17 नवंबर को मुफ्त करने का फैसला भी किया है।
To encourage use of public transport during Odd- Even, Delhi govt to allow free travel for commuters in all DTC and Cluster buses from 13-17 November.
— Kailash Gahlot (@kgahlot) November 10, 2017
स्मॉग की इस चादर से निजात पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दीपावली से पहले पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई थी। लेकिन नतीजा ये है कि सेहत के दुश्मन पीएम 2.5 और पीएम 10 सामान्य स्तर से 10 गुना दिल्ली के वातावरण में तैर रहे हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दिल्ली में स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की, उसके बाद दिल्ली सरकार हरकत में आई और रविवार तक पांचवीं तक पढ़ने वालों बच्चों की छुट्टी का ऐलान किया। धुंध की चादर ने हर सांस पर पहरा लगा रखा है। सांसों के लिए आफत बने पीएम कणों का सामना करने के लिए लोग तमाम उपाय कर रहे हैं। लेकिन सबसे पहले दिल्ली से सटे गाजियाबाद की एक छोटी सी घटना को जानने और समझने की जरूरत है।
...वायु प्रदूषण की मार, ये सिर्फ कहानी नहीं
18 महीने का मासूम अहान कुछ दिन पहले तक खुली हवा में सोसायटी के पार्क में खेला करता था। लेकिन पिछले दो दिनों से उसके व्यवहार में बदलाव दिखाई देता है। अब वो पहले की तरह हरकत नहीं करता है, बल्कि कुछ कहने पर उसकी प्रतिक्रिया देर से आती है। अब उसे खांसी और जुकाम की शिकायत है। अहान के परिजन उसे डॉक्टर के पास दिखाने के लिए जाते हैं। डॉक्टर बताते हैं कि उसे किसी तरह की दिक्कत नहीं है, परिजन भी अवाक रह जाते हैं। उनका सिर्फ एक सवाल कि मासूम अहान पहले की तरह चंचल क्यों नहीं है। डॉक्टर का जवाब कि उसका कोई दोष नहीं है। उसकी परेशानी की वजह तो पीएम 2.5 और पीएम 10 हैं।
अहान के परिजनों का फिर वही सवाल कि अब क्या करना चाहिए। सीधे और साफ शब्दों में डॉक्टर बताते हैं कि घर से बाहर मत निकलो, चेहरे को मॉस्क से ढंक लो। अगर आर्थिक तौर पर दिक्कत न हो तो एयर प्यूरिफॉयर लगा लो। लेकिन सवाल ये है कि दिल्ली और एनसीआर में कितने ऐसे परिवार हैं जो एयर प्यूरिफॉयर लगाने की क्षमता रखते हैं। इससे भी बड़ा सवाल है कि सेहत के दुश्मनों को बढ़ावा देने वाले कौन लोग हैं।
दिल्ली और एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए जहां अनियंत्रित विकास कार्य है, वहीं पड़ोसी राज्यों की भूमिका है। उदाहरण के तौर पर पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय ने दोनों सरकारों को कड़ी फटकार लगाई थी। लेकिन नतीजा सिफर रहा। 2016 में दिवाली के आसपास इसरो ने एक तस्वीर भेजी, जिससे पता चला कि दिल्ली और एनसीआर में छाई धुंध के लिए पराली जिम्मेदार थी। राज्य सरकारों ने दोषी किसानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया। ये बात अलग है कि जमीन पर हुई कार्रवाई का प्रदूषित हवा पर असर नहीं दिखाई दिया।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट और कार्रवाई का असर भी कुछ पुख्ता तौर पर नजर नहीं आ रहा है। सीपीसीबी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार वाहनों के लिए जुर्माने की फीस में इजाफे की बात तो करती है। लेकिन हकीकत में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार वाहन जुर्माने की फीस अदा कर दिल्ली में दाखिल होते हैं। 2016 में दीपावली के ठीक बाद प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर स्कूलों को बंद करना, ऑड-ईवन के फॉर्मूले को अमल में लाने के साथ-साथ पेड़-पौधों पर पानी का छिड़काव किया गया। इसके अलावा बदरपुर थर्मल पावर स्टेशन, डीजल जनरेटर और निर्माण कार्यों की गतिविधियों पर कुछ समय के लिए रोक लगाई गई। एनजीटी की फटकार और सरकार की कार्रवाई से कुछ सुधार भी हुआ। लेकिन समय बीतने के साथ ही जहां एक तरफ सरकार अपने दायित्व को भूल गई, लोग भी अपने कर्तव्य को बिसारते गए। आज एक बार फिर दिल्ली और एनसीआर के सामने पिछले साल जैसी चुनौती है। एक बार फिर एनजीटी ने फटकार लगाई है, सरकार को अपने कर्तव्य का भान हो रहा है और लोग भी घरों के अंदर, शहर के चौराहों पर, बसों में चिंता कर रहे हैं कि अब प्रदूषण के खिलाफ जंग लड़नी ही होगी।
मिलकर लड़नी होगी प्रदूषण रोकने की जंग
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल।
- कार का कम से कम प्रयोग करें।
- भविष्य में ऐसे हालात न हों इसलिए ज्यादा से ज्यादा पौधारोपड़ करें।
- सौर ऊर्जा का ज्यादा इस्तेमाल।
- इस्तेमाल न होने पर घर की लाइट बंद करें, पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों (तापीय बिजली, पन बिजली) पर निर्भरता कम होगी।
- ड्रायर की जगह हवा में कपड़े सुखाएं, बिचली की बचत होगी।
- प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें।
- कागज का बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल करें, ताकि पेडों को अनावश्यक न काटना पड़े।
- एयर फिल्टर वाले पौधों को लगाएं, खासतौर से एलोविरा, मनी प्लांट, स्नेक प्लांट पर ध्यान दें।
- नहाने के लिए गर्म पानी की जगह ठंडे पानी का इस्तेमाल करें।
ये महज कुछ उपाय हैं, जिनके जरिए हम अपनी सेहत के दुश्मनों का मुकाबला कर सकते हैं। इसके साथ ही हम आपको बताने जा रहे हैं कि दुनिया के दूसरे देश किस ढंग से पीएम 2.5 और पीएम 10 से निटपटने की कोशिश करते हैं।
आइए जानते हैं दुनिया के दूसरे देश किस तरह से वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इंतजाम कर रहे हैं।
दूसरे देशों ने यूं घटाया प्रदूषण
ज्यूरिख- एक समय में निश्चित सीमा में ही कार के प्रवेश की इजाजत दी जाती है।
कोपेनहेगेन- कार की तुलना में बाइक को बढ़ावा दिया जाता है। शहर में लोगों से ज्यादा साइकिलें हैं। कई जगहों पर दशकों से वाहनों पर प्रतिबंध है।
नीदरलैंड- इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ियों को बढ़ावा, 2025 तक डीजल कार पर प्रतिबंध।
ओस्लो- शहर में एक विशाल कार जोन है।
हेलसिंकी- सस्ता यातायात, महंगी पार्किंग, शहर की अंदरूनी सड़कों पर घर बनाने की कवायद। 2050 तक शहर को इस तरह से बनाए जाने की योजना है कि कार खरीदना ही न पड़े।
पेरिस- ऐतिहासिक जगहों पर कार पर प्रतिबंध, वाहनों के लिए ऑड-ईवन फॉर्मूला लागू किया गया। प्रदूषण बढ़ने पर सरकारी यातायात को मुफ्त करने का प्रावधान।
चीन- प्रदूषण बढ़ने की हालत में आपातकाल घोषित कर स्कूलों को बंद किया जाता है। चीन सरकार लोगों को साइकिल से दफ्तर आने-जाने के लिए प्रेरित करती है।