दिल में खुदा, जुबां पर वेदपाठ के जरिए लिखी जा रही नए भारत की इबारत
भारत-नेपाल सीमा के नो मेंस लैंड से सटे दयानंद लघु माध्यमिक विद्यालय बढ़नी के परिसर में नए भारत की इबारत लिखी जा रही है।
रत्नेश शुक्ल, सिद्धार्थनगर: इनके मजहब, इनकी उपासना और दिनचर्या में भेदभाव नहीं है। ये भारत का वो सुनहरा भविष्य हैं, जो ठीक नेपाल की सरहद पर मौजूद आर्य समाज पद्धति के स्कूल में ज्ञानार्जन कर रहे हैं। ये बच्चे हर मंगलवार को विद्यालय में होने वाले वैदिक यज्ञ में शामिल होते हैं। मन होता है तो आहुति डालते हैं और माथे पर तिलक भी लगवाते हैं। यजुर्वेद में निहित विश्र्वानिदेव के आठ मंत्र का सस्वर पाठ अनिवार्य रूप से करते हैं। हर दिन प्रार्थना में गायत्री मंत्र बोलने के साथ गौ माता-भारत माता का जयघोष करते हैं।
भारत-नेपाल सीमा के नो मेंस लैंड से सटे दयानंद लघु माध्यमिक विद्यालय बढ़नी के परिसर में नए भारत की इबारत लिखी जा रही है। यहां मुस्लिम परिवारों के बच्चे भी पढ़ते हैं, जिनके दिल में खुदा बसते हैं और जुबां पर वेदपाठ रहता है। बढ़नी कस्बे में सन् 1978 में स्थापित इस विद्यालय में करीब ग्यारह सौ छात्र हैं। इनमें मुस्लिम छात्रों की संख्या 198 है। एक ही परिसर में प्राथमिक से लेकर इंटर तक की कक्षाएं संचालित होती हैं, लेकिन दूसरे विद्यालयों से यह इसलिए अनूठा है, क्योंकि यहां हिंदू-मुस्लिम के मजहबी भेदभाव का नामोनिशां नहीं है।
विद्यालय में हर मंगलवार को सुबह साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक यज्ञ होता है। इसमें गायत्री मंत्र, यजुर्वेद के विश्र्वानिदेव के आठ मंत्र का सस्वर पाठ होता है। यज्ञ प्रार्थना, सामूहिक भजन के साथ सत्यार्थ प्रकाश का दस मिनट का पाठ किया जाता है। सामूहिक प्रार्थना से यज्ञ का समापन होता है। इसमें हिंदू-मुस्लिम सभी छात्र शामिल होते हैं।
नो मेंस लैंड के इस पार हमारा विद्यालय है तो उस पार दारुल उलूम है। फिर भी बड़ी संख्या में नेपाल के भी मुस्लिम परिवारों के छात्र हमारे यहां आते हैं। - बीपी त्रिपाठी,प्रधानाचार्य, दयानंद लघु माध्यमिक विद्यालय
हमारे यहां बच्चों में भेदभाव नहीं होता। यदि कोई छात्र नमाज पढ़ना चाहता है तो उसे समुचित स्थान देते हैं। रमजान में एक छात्र को ऐसा अवसर दिया गया था। - हरिशंकर पांडेय,प्रधान,आर्य समाज बढ़नी
सर्वधर्म समभाव की सीख मिलती है
कक्षा 8 के छात्र शादाब हुसैन बताते हैं कि विद्यालय से हमें सर्वधर्म समभाव की सीख मिलती है। वह गायत्री मंत्र सुनाते हुए खुद सवाल करते हैं कि ऐसा करने में दिक्कत क्या है। उनके सहपाठी अफरोज भी उनकी हां में हां मिलाते हैं। कक्षा 7 की छात्रा नबीदा के अब्बू अशरफ भी इस विद्यालय के छात्र रहे हैं। अशरफ बताते हैं कि वेदपाठ एवं हवन तो विद्यालय की परंपरा में है। इससे बच्चों में अनुशासन एवं एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव पैदा होता है। क्या इस विद्यालय से निकलने के बाद भी वेदपाठ एवं हवन में आहुति डालना जारी रखेंगे? शादाब कहते हैं कि जहां उचित होगा वहां करेंगे।