'आस्था बनाम जनहित में फर्क करना जरूरी, कहीं न कहीं हो रहे हैं नाकाम'
अगर जनता को सही ढंग से समझाने पर वह आस्था के सवाल को दरकिनार करते हुए बीच सड़क में अवैध तरीके से निर्मित प्रार्थना स्थलों को हटाने के लिए तैयार हो जाती है।
सुभाष गाताडे
आस्था की दुहाई देते हुए व्यापक जनहित के प्रस्तावों की मुखालिफत करना भारत जैसे समाज में आम होता जा रहा है। अभी दो महीने पहले मुंबई का बांद्रा उपनगर इसी तर्ज पर नगर पालिका अधिकारियों के खिलाफ तमाम आंदोलनों का गवाह बना था, जब यातायात में बाधा पैदा होने के चलते वहां स्थित क्रॉस को उन्होंने हटा दिया था।
बहरहाल, इस पूरे माहौल में पड़ोसी उपनगर माहिम का हाल का अनुभव रहा, जहां स्थानीय निवासियों और नगर प्रशासकों के बीच अभूतपूर्व सहयोग की मिसाल सामने आई,जब इलाके में सड़कों पर किनारे बने आठ प्रार्थना स्थलों को हटा दिया गया अथवा स्थानांतरित कर दिया गया। क्योंकि वह यातायात में या पैदल यात्रियों की आवाजाही में बाधा पैदा कर रहे थे। इनमें देश के तीन अग्रणी धर्मो से जुड़े प्रार्थना स्थल शामिल थे। विक्टोरिया चर्च के बाहर बना ऐतिहासिक क्रॉस, मच्छिमार कॉलोनी का मंदिर और एक मुस्लिम संत की मजार आदि शामिल थे।
उच्च अदालत के आदेश पर संपन्न की गई इस कार्रवाई को अंजाम देने के लिए अधिकारियों ने इन प्रार्थना स्थलों के ट्रस्टियों से कई बैठकें कीं और उन्हें बताया कि इनका प्रतिस्थापन किस तरह जनहित में है। एक ऐसे समय में जब सर्वोच्च न्यायालय देश में बढ़ते अवैध प्रार्थना स्थलों को लेकर सख्त कार्रवाई करने की बात बार बार दोहराता रहता है, यहां तक कि अवैध तरीके से बने प्रार्थना स्थलों को नियंत्रित रखने या जनहित में उन्हें प्रतिस्थापित करने की बात भी करता है और सरकारें जनता के प्रतिकूल दबाव में कदम उठाने से हिचकिचाती हैं, वहां देश की वित्तीय राजधानी कही जाने वाली मुंबई से आई यह खबर हवा की ताजी बयार जैसी लग रही है।
माहिम के इस हालिया अनुभव ने मुंबई के ही ऐसे एक अन्य हस्तक्षेप की याद ताजा कर दी जब आम नागरिकों के संगठित हस्तक्षेप के चलते एक हजार से अधिक अवैध प्रार्थना स्थलों को वहां प्रशासन ने हटा दिया था। दरअसल यह सिलसिला शुरू हुआ था एक सामाजिक कार्यकर्ता श्रीभगवान रैयानी द्वारा 2002 में दायर जनहित याचिका के बाद। समूचे शहर में अवैध प्रार्थना स्थलों की लगातार बढ़ती जा रही तादाद की परिघटना से चिंतित होकर-जिनके चलते आम जनता को विभिन्न किस्म की असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा था- यह याचिका दायर की गई थी। एक साल के अंदर ही बंबई उच्च अदालत ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए बृहन्मुम्बई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के आला अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह शहर भर में फैले अवैध मंदिरों, मस्जिदों, चर्चो या अन्य धार्मिक स्थलों को हटा दें और 12 नवंबर 2003 तक अपनी ‘एक्शन टेकन रिपोर्ट’ यानी कार्रवाई की रिपोर्ट भी अदालत के सामने पेश करें। यह बात अधिक रेखांकित करने वाली थी कि उसी मुंबई में 1992-93 में हजार से अधिक मासूम लोग सांप्रदायिक दंगों का शिकार हुए थे और जहां ऐसे धार्मिक स्थलों की मौजूदगी तनाव बढ़ाने का सबब बनी थी।
आम नागरिकों की सूझबूझ के यह दो प्रसंग बरबस देश के ऐसे अन्य अनुभवों पर नए सिरे से रोशनी डालते हैं। मध्य भारत के चर्चित शहर जबलपुर को लें, जहां मुल्क के किसी भी अन्य शहर की तरह विभिन्न धर्मो के अनुयायी रहते हैं, वहां पर डेढ़ साल के अंतराल में 168 धार्मिक स्थल प्रतिस्थापित किए गए। यूं तो यह घटना कुछ साल पुरानी है, मगर क्या यह बात आज के वातावरण में किसी को आसानी से पच सकती है कि शहर के यातायात एवं सामाजिक जीवन को तनाव मुक्त बनाए रखने के लिए सभी आस्थाओं से संबंधितों ने इसके लिए मिल-जुलकर काम किया और एक तरह से शेष मुल्क के सामने ‘सांप्रदायिक सद्भाव की नई मिसाल पेश की।
यातायात के बढ़ते दबाव को अधिक गंभीर बनाने वाले सड़कों के बीचों बीच स्थित इन धार्मिक स्थलों को प्रतिस्थापित करने वाले इस अभियान की शुरुआत शहर के पॉश इलाके सिविल लाइन में स्थित एक मजार को स्थानांतरित करके हुई। इसके बाद शुरू हुए सिलसिले में बड़ी संख्या में मजारों, मस्जिदों, चर्च, कब्रिस्तानों, गुरुद्वारों, मंदिरों को अपने स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर स्थापित किया गया। इस मामले में न्यायपालिका का भी बेहद सकारात्मक रुख रहा और जिला प्रशासन ने भी इसका काम को अंजाम देने के पहले समाज के विभिन्न तबकों को विश्वास में लेकर उनसे सुझाव और सहयोग लेकर ही काम को आगे बढ़ाया। जबलपुर की इस नायाब पहल के पहले ‘मंदिरों के शहर’ कहे जाने वाले दक्षिण के मदुराई ने भी कुछ साल पहले अपने यहां इसी किस्म की कार्रवाई की थी।
प्राचीन तमिल साहित्य में भी विशेष स्थान पाए मदुराई में शहर की नगरपालिका की अगुआई में अनाधिकृत ढंग से बनाए गए 250 से अधिक मंदिर, दो चर्चो एवं एक दरगाह को हटाया गया, जिनकी मौजूदगी के चलते आम नागरिकों को बेहद असुविधा का सामना करना पड़ रहा था। इस बात को रेखांकित करना जरूरी है कि इन अवैध धार्मिक स्थलों को हटाने की यह कार्रवाई नगरपालिका द्वारा शहर में बनाए गए अवैध निर्माणों को हटाने के अंतर्गत की गई थी, जिसके तहत समूचे शहर में लगभग छह सौ ऐसे निर्माण गिराए गए थे। दरअसल नगरपालिका का यह कदम उच्च अदालत के आदेश के तहत सामने आया था, जिसमें संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि यातायात में बाधा कम करने के लिए ऐसे अवैध निर्माणों को हटाया जाए।
विडंबना ही कही जा सकती है कि यह तमाम खबरें अपने-अपने क्षेत्रों तक ही सीमित रह गईं, शेष अवाम को यह पता नहीं चल सका कि अगर सही ढंग से समझाया जाए तो जनसाधारण आस्था के प्रश्न को जनहित के मातहत दरकिनार करने का तैयार हो जाते हैं।
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं)