बीते सौ वर्षों में भारत की जनसंख्या में हुई है बेतहाशा वृद्धि
गरीबी से निपटने का सही उपाय है सभी का समान रूप से विकास। उत्पादन के साधनों पर सभी को बराबर का हक मिलना चाहिए।
मीना त्रिवेदी
करीब एक शताब्दी पहले तक भारत में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार बहुत धीमी थी। यानी जनसंख्या दर स्थिर थी। मतलब जन्म और मृत्यु दर एक समान थी। जितने लोग मर रहे थे, करीब उतने ही पैदा हो रहे थे। हालांकि उस समय जन्म दर अधिक थी और मृत्यु दर भी। उस समय आठ-दस बच्चे पैदा होना आम बात थी। मगर बीसवीं शताब्दी में चिकित्सकीय प्रगति के कारण जन्म दर में कमी हुए बिना सिर्फ मृत्यु दर में कमी होती रही, नतीजतन जनसंख्या में वृद्धि होती रही। आमतौर पर हमारे देश में प्रति एक हजार जनसंख्या में हर साल 15-16 लोगों की बढ़ोतरी होती है।
बीते सौ वर्षो में औसतन पांच बार बढ़ोतरी हुई है। शहरों में जनसंख्या बढ़ने का मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन है। जनसंख्या वृद्धि के परिणाम देखने हों तो कुल साधनको कुल जनसंख्या से विभाजन करें। बढ़ती जनसंख्या के कारण हर साल उपलब्ध साधन व संपत्ति में कम होती जाएगी। भारत में गरीबी बने रहने का यही प्रमुख कारण है, ऐसा सरकार और समाजशास्त्री कहते हैं। मगर यह पूरा सच नहीं है क्योंकि कुल संपत्ति का विभाजन, कुल जनसंख्या में हो, ऐसा कभी नहीं होता। वास्तव में हमारे यहां विषमता इतनी है कि एक तरफ अधिक खाने से होने वाली बीमारियां बढ़ रही हैं तो दूसरी तरफ कुपोषण का साम्राज्य है।
यूरोपीय सहित जापान और अमेरिका जैसे देश दुनिया की बहुतांश संपत्ति का उपभोग करते हैं। जबकि इसके उलट गरीब देशों की हालत बहुत खस्ता है। मतलब यह कि महज परिवार नियोजन गरीबी की समस्या से निपटने का सही उपाय नहीं है। गरीबी से निपटने का सही उपाय है सभी का समान रूप से विकास। उत्पादन के साधनों पर सभी को बराबर का हक मिलना चाहिए। यदि विकास हो सका तो परिवार नियोजन समाज के सभी तबकों में स्वत: स्वीकार हो जाता है। भारत में जितने संसाधन हैं उतने में सभी भारतीयों का जीवन बेहतर तरीक से चल सकता है। मगर इसके लिए जमीन-पानी-प्रकृति सभी का सही से प्रबंधन आवश्यक है।
यह भी पढ़ें: चीन ने रोकी नाथुला रास्ते से कैलाश मानसरोवर यात्रा, वापस आएंगे तीर्थ यात्री!
चूंकि हमारी अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है इसलिए इसका स्थिर रहना भी आवश्यक है। जनसंख्या नियंत्रण का प्रचार बहुत हो चुका है, मगर कुदरती संसाधनों के विनाश के विषय में कुछ ही लोग समझते हैं। जबकि सच्चाई है कि वास्तव में जनसंख्या वृद्धि का बोझ इसी कुदरत पर बढ़ रहा है। परिवार नियोजन आवश्यक है क्योंकि परिवार में सिर्फ स्त्री पर ही मातृत्व व बच्चों की देखभाल का बोझ पड़ता है। जितनी अधिक गर्भावस्था और प्रसूतियां होती हैं, स्त्री पर शारीरिक व मानसिक तनाव बढ़ता है। दो बच्चों में अंतर रखना और जब न चाहें तो प्रजनन पर अंकुश होना या बंद करना, यह स्त्री व बच्चों की खुशी के लिए आवश्यक है। लिहाजा परिवार नियोजन सभी को करना चाहिए। विकास के साथ परिवार छोटा हो जाता है।
परिवार नियोजन का प्रचार-प्रसार 1952 से हो रहा है परअपेक्षित परिणाम नहीं मिले। छोटे परिवार के लिए उचित सामाजिक, आर्थिक, माहौल होना आवश्यक है। चूंकि किसान परिवारों में श्रम ही जीवन जीने का साधन होता है, इसलिए यहां एक संतान के बाद लोग संतान पर रोक लगाने के लिए तैयार नहीं होते। जब तक दो वक्त के भोजन के लिए छोटों-बड़ों, सभी को काम करना पड़ेगा, तब तक दो बच्चे पर्याप्त नहीं लग सकते। जब तक जन्म के बाद 6 से 8 प्रतिशत बच्चे एक वर्ष के होने से पहले ही मर जाते हैं, तब तक गरीब परिवार के लिए अधिक संतान का होना आवश्यक लगता है। सामाजिक विकास व आरोग्य सेवा आसानी से उपलब्ध होने पर निश्चित ही बाल मृत्यु दर में कमी आ सकेगी और तब अधिक संतान की मंशा भी कम होगी।
यह भी पढ़ें: आबादी के मामले में जल्द ही चीन को पछाड़ देगा भारत, बढ़ सकती हैं मुश्किलें
पितृसत्तात्मक व्यवस्था में बेटों को वारिस माना जाता है, जिससे परिवार की साधन-संपत्ति अन्य परिवार में न जाकर अपने घर में ही बनी रहती है। इसीलिए बेटा होना आवश्यक माना जाता है। ये दो तीन प्रमुख कारण है जिनके चलते परिवार नियोजन के मकसद को पाने में मुश्किल होती है। परिवार नियोजन व जनसंख्या नियंत्रण, इन दो मसलों को हमें अलग करना होगा। परिवार नियोजन की परिकल्पना का कार्य-कारण, भाव अलग है और जनसंख्या नियंत्रण एक बिल्कुल अलग विषय है। दो बच्चों में अंतर रखना, बच्चे होने पर रोक लगाना जैसी बातें निजी स्वातंर्त्य, स्त्री-आरोग्य, बच्चों का संगोपन व परिवार अर्थव्यवस्था से संबधित है। जब यह सब संभव हो जाएगा तो जनसंख्या वृद्धि खुद रुक जाएगी। -(इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर)
(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता हैं)