जिस फिल्म पर हो रहा बवाल, जानें उस 'पद्मावती' की असली कहानी
विरोध के बीच रुपहले पर्दे पर रानी पद्मावती फिल्म एक दिसंबर को देशभर में रिलीज होने को तैयार है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। रानी पद्मावती इतिहास की नायिका हैं या साहित्य की ये हमेशा विवादों में रहा है। कहा जाता है कि 13वीं-14वीं शताब्दी में पद्मावती नाम की कोई नायिका थी ही नहीं। दिल्ली की सल्तनत पर काबिज सुल्तानों की निगाहें हर उन रियासतों पर या राज्यों पर लगी थीं, जो उसके लिए खतरा थीं। चित्तौड़ उनमें से एक था। कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी पर काबिज राजा, सुल्तान या बादशाह सभी राजपुताना को अपने कब्जे में रखने की कोशिश करते थे। दरअसल भारत के इतिहास पर नजर डालें तो केंद्रीय सत्ता को सबसे ज्यादा चुनौती राजपुताना से मिलती रही। लेकिन हम जिस विषय पर बात करने जा रहे हैं वो अलाउद्दीन खिलजी, राजा रतन सिंह और रानी पद्मावती से जुड़ी है। इन किरदारों पर मशहूर फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली रुपहले पर्दे पर अपने खास अंदाज में रानी पद्मावती को पेश करने जा रहे हैं, जो एक दिसबंर को रिलीज होगी। इस विषय पर विवाद के सुर फिल्म की शूटिंग के दौरान फूट पड़े थे, जब करणी सेना ने राजपूत इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश करने को लेकर जयपुर में फिल्म के सेट पर तोड़फोड़ की थी। लेकिन सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि पद्मावती कौन थीं और पूरी कहानी क्या है।
रूपवान रानी पद्मावती की कहानी
रानी पद्मावती को रानी पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है। वह 13-14 शताब्दी की एक महान भारतीय रानी थी। मलिक मुहम्मद जायसी ने महाकाव्य 'पदमावत' में सिंघल साम्राज्य की एक असाधारण सुंदर राजकुमारी का वर्णन किया है। चित्तौड़ के राजा रतन सेन को रानी की सुंदरता के बारे में बोलने वाले एक तोते हीरामन से पता चला था, जिसके बाद उन्होंने पद्मावती से शादी कर ली। वह रतन सिंह की दूसरी पत्नी थीं। कहा जाता है कि वह बचपन में बोलने वाले एक तोते हीरामन की करीबी दोस्त बन गईं। जब पद्मिनी के पिता राजा गंधर्व सेन को बेटी और हीरामन के करीबी रिश्ते का पता चला, तो उन्होंने तोते को जान से मारने का आदेश दिया। हालांकि, हीरामन वहां से उड़ने में कामयाब हो गया और एक बहेलिये ने उसे पकड़कर एक ब्राह्मण को बेच दिया। उसके बाद रतन सेन ने ब्राह्मण से तोता खरीद लिया।
राघव चेतन नाम के शख्स चित्तौड़ के शाही दरबार में बैठते थे और राजा रतन सेन ने धोखाधड़ी करने पर उन्हें निकाल दिया था। बताया जाता है कि राघव चेतन ने रानी पद्मावती के बारे में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को बताया था, जिसके बाद खिलजी ने पद्मावती से मिलने का फैसला किया। अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी को पाने के लिए रतन सेन का अपहरण कर दिया। जब रतन सेन ने रानी पद्मिनी को देने से इंकार कर दिया, तो खिलजी ने रतन सेन को शांति संधि का धोखा दिया और उसे दिल्ली ले गया। बाद में रानी पद्मिनी ने राजा रतन सेन के भरोसेमंद सामंतों से मदद ली और उन्हें दिल्ली से बचा लिया। इस बीच जब राजा रतन सेन दिल्ली से बचकर भाग रहे थे, तो कुंभलनेर के राजपूत राजा देवपाल ने रानी पद्मावती को शादी के लिए प्रस्ताव दिया। जब राजा रतन सेन वापस चित्तौड़ आए और उन्हें देवपाल की इस हरकत के बारे में पता चला, तो उन्होंने देवपाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। दोनों के बीच हुए युद्ध में राजा देवपाल और रतन सेन दोनों ने एक-दूसरे की हत्या कर दी। रतन सेन की मौत के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने एक बार फिर चित्तौड़ पर हमला कर उसे जीतने की कोशिश की। मगर, रानी ने इस बार जौहर व्रत (आग में कूद जाना) ले लिया। उनके साथ राजमहल की हजारों वीरांगनाओं ने अपनी जान दे दी। खिलजी के हाथ में राख के अलावा कुछ नहीं आया।
करणी सेना को ऐतराज
करणी सेना का इस बात पर ऐतराज था कि फिल्म पद्मावती में जिस अंदाज में उनको पर्दे पर उतारा गया है, वो सही नहीं है। अलाउद्दीन खलजी और पद्मावती के बीच प्रेम संबंध नहीं था, लेकिन दोनों के बीच प्रेम कहानी को फिल्मी पर्दे पर उतारा गया है। करणी सेना के आरोपों पर फिल्म से जुड़े लोगों की दलील थी कि उनका मकसद किसी समाज को अपमानित करना नहीं है। फिल्म में एक भी हिस्सा ऐसा नहीं, जिस पर राजपूत समाज के मान अभिमान को कमतर किया गया है।
फिल्म पद्मावती की रिलीज पर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुंवर अजय सिंह ने Jagran.Com से खास बातचीत में कहा कि उनका संगठन पूरे देश में फिल्म की रिलीज का विरोध करेगा। करणी सेना,राजपूत सभा जयपुर और भंसाली के बीच हुए समझौते को नहीं मानते हैं। उन्होंने कहा कि भारत का क्षत्रिय समाज रानी पद्मावती को अपनी मां की तरह मानता है, लिहाजा किसी भी शख्स को इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती है वो उनका अपमान करे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि बिकाऊ इतिहासकारों ने देश के मान को कभी नहीं रखा। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का स्पष्ट मत है कि ऐसे किसी भी शख्स को अपने विचारों को व्यक्त करने की आजादी नहीं दी जा सकती है जिसे देशप्रेम से कोई वास्ता नहीं हो।
इतिहासकार के नजरिए से
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के मध्यकालीन इतिहास के प्रोफेसर नजफ हैदर कहते हैं कि उनका शोध 14वीं और 16वीं शताब्दी पर है, इसलिए वो भरोसे के साथ कह सकते हैं कि पद्मावती एक काल्पनिक किरदार हैं। यहां तक कि अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ पर हमले की बात तो करता है, लेकिन पद्मावती का कोई जिक्र नहीं है। उस समय की कोई भी किताब उठा लें, उसमें कहीं भी जिक्र नहीं मिलता है। पद्मावती के लोकप्रिय होने की वजह यह है कि स्थानीय राजपूत पंरपरा के तहत चारणों ने इस किरदार का खूब बखान किया। इस वजह से भी यह कथा काफी लोकप्रिय हुई। यह सच है कि 16वीं शताब्दी में हिन्दी साहित्य पद्मावत में मलिक मुहम्मद जायसी ने इस किरदार को जिंदा किया। हिन्दी साहित्य में पद्मावती की जगह है और साहित्य भी इतिहास का एक हिस्सा होता है। हिन्दी साहित्य को पढ़ाने के लिए पद्मावती का विशेष रूप से इस्तेमाल करना चाहिए, लेकिन इतिहास की किताब में पद्मावती की कोई जगह नहीं है। यदि इतिहास की किताब में पद्मावती है तो यह भ्रमित करने वाला है।
आम दर्शकों की राय
Jagran.Com ने इस विषय पर अलग-अलग उम्र समूह के फिल्म दर्शकों से बातचीत की। मौजूदा पीढ़ी के ज्यादातर लोगों का मानना है कि वो महज मनोरंजन की दृष्टि से फिल्म देखने जाते हैं। उनके लिए किसी फिल्म की ऐतिहासिकता से खास लेना-देना नहीं है। 1 दिसंबर को रिलीज होने जा रही रानी पद्मावती फिल्म को लेकर वो काफी उत्सुक है, दरअसल वो संजय लीला भंसाली के निर्देशन क्षमता के मुरीद हैं। पिछली फिल्मों 'बाजीराव मस्तानी' और 'देवदास' में उन्होंने अपनी सोच को उच्चतम स्तर पर परदे पर उतारा था।
जिंदगी के पचास बसंत देख चुके लोगों की राय थोड़ी अलग थी। उनका कहना है कि भारत के समृद्ध ऐतिहासिक संदर्भों को पहले से ही फिल्मी पर्दे पर पेश किया जाता रहा है, जहां तक फिल्मों को लेकर कुछ संगठन विरोध करने पर उतारू हो जाते हैं वो गलत हैं। एक फिल्म निर्माता या निर्देशक साक्ष्यों को तोड़ मरोड़कर पेश नहीं कर सकता है। फिल्म से जुड़े लोग इस बात को समझते हैं कि उनकी एक छोटी सी गलती से लाखों-करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पद्मावती फिल्म के बारे में उन्होंने कहा कि विरोध करने वालो संगठनों को विरोध करने के लिए मुद्दों की कमी नहीं है। भारत में आज भी बहुत से गांवों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है। आम लोगों की दैनिक समस्याओं को आगे लाने के लिए संगठनों को आगे आना चाहिए। सिर्फ सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए कला को नहीं घोंटना चाहिए।
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