ISRO ने रचा इतिहास, सबसे वजनी जीएसएलवी मार्क तीन का सफल प्रक्षेपण
इसरो ने आज एक बार फिर कहानी लिख दी है। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से शाम 5.28 बजे जीएसएलवी मार्क तीन का प्रक्षेपण किया गया।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के साथ ही भारत के राजनीतिक नेतृत्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश की जनता को दो जून का भोजन उपल्बध कराना था। शुरुआत में भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य भी जमीनी स्तर पर भारत को मजबूत बनाना ही था। अंतरिक्ष विज्ञान के विकास को लेकर सरकार करीब दो दशक तक शिथिल रही। लेकिन सातवें दशक के मध्य में भारत ने ये साबित कर दिया कि भले ही जमीन पर उसे तमाम चुनौतियों का सामना कर पड़ रहा है। अब वो अंतरिक्ष में छलांग लगाने को तैयार है। पिछले पचास साल के दौर में भारत ने मंगलयान, चंद्रयान, मौसम आधारित उपग्रहों को प्रक्षेपित कर दिया है कि अब वो अमेरिका और रूस को टक्कर देने को तैयार है। इसरो ने आज एक बार फिर कहानी लिख दी है। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से शाम 5.28 बजे जीएसएलवी मार्क तीन का प्रक्षेपण किया गया।
पीएम मोदी ने जीएसएलवी मार्क-3 की सफल लॉन्चिंग पर देश के वैज्ञानिकों को बधाई दी।
Congratulations to the dedicated scientists of ISRO for the successful launch of GSLV – MKIII D1/GSAT-19 mission.— Narendra Modi (@narendramodi) June 5, 2017
The GSLV – MKIII D1/GSAT-19 mission takes India closer to the next generation launch vehicle and satellite capability. The nation is proud!— Narendra Modi (@narendramodi)
June 5, 2017
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इस मौके पर देशवासियों को शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि देश को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर गर्व है।
GSLV-Mk III is the heaviest rocket ever made by India and is capable of carrying the heaviest satellites made till date #PresidentMukherjee— President of India (@RashtrapatiBhvn) June 5, 2017
The nation is proud of this significant achievement #PresidentMukherjee— President of India (@RashtrapatiBhvn) June 5, 2017
-करीब 300 करोड़ की लागत और 15 वर्ष के कठिन परिश्रम के बाद जीएसएलवी मार्क 3 का निर्माण किया गया है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इसे मास्टर रॉकेट का नाम दिया है। जीएसएलवी मार्क 3 की ऊंचाई 13 मंजिला इमारत के बराबर है और ये चार टन वजनी सेटेलाइट को अपने साथ ले जा सकता है।
-वर्तमान में भारत को 2.3 टन वजनी संचार सेटेलाइट को लांच करने के लिए बाहरी देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। जीएसएलवी मार्क 3 अपने साथ करीब चार टन वजनी जीसैट-19 को अपने साथ ले जाएगा। इस रॉकेट के कामयाब प्रक्षेपण से भारत खुद पर निर्भर होने के साथ व्यवसायिक इस्तेमाल कर सकेगा।
-जीएसएलवी मार्क 3 के प्रक्षेपण में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है। क्रायोजेनिक इंजन में लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है।
-इसरो के पूर्व चेयरमैन डॉ के कस्तुरीरंगन का कहना है कि जियो सिंक्रोनस मिशन को कामयाब बनाने की दिशा में ये पहला कदम होगा।
-स्पेस में मानव को भेजने के लिए इसरो ने केंद्र सरकार से 12,500 करोड़ रुपये की मदद मांगी है। अगर केंद्र की तरफ से मदद मिली को इसरो सात साल में मानव को अंतरिक्ष में रख सकेगा।
-ह्यूमन स्पेस मिशन की तैयारी इसरो पहले ही कर चुका है। 2014 में स्पेस स्यूट और क्रू माड्यूल को तैयार किया गया था।
-स्पेस एजेंसी की तरफ से ये प्रस्ताव दिया गया कि भारत की तरफ से किसी महिला को स्पेस मिशन पर भेजा जाना चाहिए।
-अब तक रूस, अमेरिका और चीन अंतरिक्ष में मानव को भेज चुके हैं। 12 अप्रैल 1961 को रूस के यूरी गागरिन वोस्टोक 1 स्पेसक्रॉफ्ट के जरिए स्पेस मिशन में कामयाबी हासिल की थी।
-अमेरिका ने एक महीने बाद 5 मई 1961 को एलन वी शेपर्ड को फ्लोरिडा से अंतरिक्ष में भेजा था।
-भारत के रमेश शर्मा 1984 में इसरो और रूस के संयुक्त अभियान में स्पेस पर झंडा गाड़ने में कामयाब रहे।
जीसैट 19 भी होगा लॉन्च
-जीसैट-19 को अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र अहमदाबाद में बनाया गया है।
-यह पुराने 6-7 संचार उपग्रहों के समूह के बराबर होगा।
-पहली बार किसी उपग्रह पर कोई ट्रांसपोर्डर नहीं होगा।
-यह प्रति सेकेंड चार गीगाबाइट डेटा देने में सक्षम होगा।
-जीसैट का वजन करीब चार टन है और उम्र 15 वर्ष होगी
जीएसएलवी मार्क-3 का निर्माण
इसरो ने जीएसएलवी मार्क-3 का निर्माण 2000 के दशक में शुरु किया। पहले इसका प्रक्षेपण 2009-10 में प्रस्तावित था। लेकिन कई वजहों से ये टलता रहा। इसमें तीन रॉकेट स्टेज हैं।18 दिसंबर 2014 को क्रायोजेनिक इंजन के साथ इसका पहला सब ऑर्बिटल परीक्षण हुआ। 2010 में 24 जनवरी, पांच मार्च और आठ मार्च को इसके कई तकनीकी परीक्षण हुए। 25 जनवरी 2017 को क्रायोजेनिक इंजम स्टेज का 50 सेकेंड का परीक्षण हुआ। क्रायोजेनिक इंजन का सबसे लंबा परीक्षण 640 सेकेंड तक 18 फरवरी को पूरा हुआ। इन परीक्षणों में इस रॉकेट की क्षमताओं को परखा गया।
मौजूदा रॉकेटों की क्षमता कम
अभी इसरो के पास दो प्रक्षेपण रॉकेट हैं। इनमें पोलर सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल सबसे भरोसेमंद है। इससे अंतरिक्ष में 1.5 टन वजनी उपग्रह भेजे जा सकते हैं। दूसरा जीएसएलनी मार्क 21 है इसकी मदद से 2 टन वजनी उपग्रह भेजे जा सकके हैं। लेकिन इसे भरोसेमंद नहीं माना जाता है। इसरो अभी 4 टन भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए फ्रांस के एरियन-5 रॉकेट की मदद लेता है।
जानकार की राय
Jagaran.com से खास बातचीत करते हुए स्पेस मामलों के जानकार डॉ एच सी कश्यप ने कहा कि जीएसएलवी मार्क-3 के सफल परीक्षण से भारत का अंतरिक्ष विज्ञान में दबदबा बढ़ेगा। अंतरिक्ष में भारत मानवजाति को भेजने में कामयाब हो सकेगा। ये बात अलग है कि भारत 2020 में इस अभियान को धरातल पर उतारने की कोशिश कर रहा है। लेकिन पांच जून को प्रस्तावित जीएसएलवी मार्क थ्री के प्रक्षेपण से अमेरिका, रूस और चीन में व्यवसायिक दबाव को लेकर चिंता बढ़ जाएगी।
जीएसएलवी मार्क तीन के प्रक्षेपण से पहले स्पेस साइंटिस्ट पी के घोष ने बताया कि ये भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। भारत न केवल तकनीकी की दृष्टि से अमेरिका और रूस की कतार में आ जाएगा बल्कि व्यवसायिक दृष्टि से भी ये देश के लिए फायदेमंद होगा। चंद्रयान दो अभियान से पहले जीएसएलवी का सफल प्रक्षेपण इसरो के लिए अहम है। अब तक सेटलाइट भेजने में पीएसएलवी का इस्तेमाल होता है। लेकिन जीएसएलवी के प्रक्षेपण में मिलने वाली सफलता आगे के लिए महत्वपूर्ण होगी।
क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल
पांच जून को जीएसएलवी मार्क-3 के प्रक्षेपण में में पहली बार तीस टन वजनी और स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का पूर्णरुप से इस्तेमाल किया जाएगा। इस ईंजन में ईंधन के रूप में गैसों के तरल रूप का इस्तेमाल होता है। इनमें तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन होती है। इन्हें बेहद कम तापमान पर रखा जाता है, जिससे रॉकेट की रफ्तार बढ़ती है।
मानव अंतरिक्ष अभियान
जीएसएलवी मार्क तीन के जरिए इसरो 2020 तक मानव अंतरिक्ष लॉन्च करने की योजना बना रहा है। बताया जा रहा है कि इसमें दो से तीन अतंरिक्ष यात्रियों के शामिल होने की संभावना है। इसरो को सरकार की तरफ से सिर्फ 4 अरब डॉलर बजट के स्वीकृत होने का इंतजार है। मानव अंतरिक्ष अभियान लॉन्च करने के साथ ही भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। अभी यह कामयाबी अमेरिका, रुस और चीन के नाम पर है।
प्रक्षेपण बाजार में बढ़ेगा दबदबा
1999 से 2017 तक इसरो 24 देशों के 180 विदेशी उपग्रहों को पीएसएलवी के जरिए लॉन्च कर चुका है। इसरो के कम प्रक्षेपण खर्च और अचूक तकनीकि के चलते अमेरिका जैसे देश भी भारत के मुरीद हैं। अब जीएसएलवी मार्क -3 से इसरो अधिक वजनी उपग्रहों को भी लांच करके प्रक्षेपण बाजार का सिरमौर बनने की राह प्रशस्त करेगा।
क्या है जीएसएलवी
जीएसएलवी की मदद से सेटेलाइट को पृथ्वी से 36000 किलोमीटर ऊपर की कक्षा में स्थापित किया जाता है। यह कक्षा भूमध्य रेखा और विषुवत रेखा के सीध में होती है। जीएसएलवी यह काम तीन चरण में करता है जिसमे अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है, क्योंकि यान को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव वाले क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए जिस निर्धारित वेग को प्राप्त करना होता है वो बहुत अधिक होता है जिसकी वजह से अधिक से अधिक ताकत की जरूरत होती है।
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