भारत की ज्ञान परंपरा को जिंदा करने की जरूरत: मुखर्जी
राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि भारत में शिक्षा और ज्ञान की व्यवस्था बेहद विकेंद्रित रही है। इसको समाज की ओर से बल मिलता रहा है ना कि राज्य या किसी एक केंद्रीय सत्ता की ओर से।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ज्ञान और शिक्षा की भारतीय परंपरा को जीवित रखने को बेहद जरूरी बताया है। उन्होंने उदारता और राष्ट्रीयता दोनों को आवश्यकता बताते हुए बहुलता को कायम रखने की वकालत भी की है। इसी तरह केंद्रीय मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने स्कूलों में भारतीयता को विस्तार से पढ़ाए जाने की जरूरत बताई है। साथ ही कहा कि राष्ट्रीय शोध संस्थानों के जरिए भारत के इतिहास के संबध में फैलाए गए झूठ को सुधारा जाएगा।
राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि भारत में शिक्षा और ज्ञान की व्यवस्था बेहद विकेंद्रित रही है। इसको समाज की ओर से बल मिलता रहा है ना कि राज्य या किसी एक केंद्रीय सत्ता की ओर से। इस परंपरा में शिक्षा देने वाले को गुरू की उपाधि दे कर समाज के शीर्ष पायदान पर रखा गया था। इसी तरह उन्होंने उदारता पर जोर देते हुए कहा, 'जितनी विविधता में हम जीते हैं और जिस विविधता में हम फल-फूल रहे हैं उसे देख कर कई बार मुझे हैरानी होती है। दो सौ भाषाएं, 1800 बोलियां, दुनिया के सभी प्रमुख सात धर्म, हर नस्ल के लोग, इसके बावजूद हम एक व्यवस्था, एक झंडे और एक संविधान के तहत रहते हैं। मेरी नजर में यही भारतीयता है।' यह बात उन्होंने भारतीयता पर केंद्रित कार्यक्रम 'भारत बोध' में कहीं। संघ के सहयोगी संगठन भारतीय शिक्षण मंडल और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने मिल कर तीन दिन का यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया है।
इसी मौके पर एचआरडी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि भारत, भारतीयता और इसके इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है। दुनिया के सामने भी इसे सही स्वरूप में लाया जाना जरूरी है। एक समय था कि इसे संपेरों का देश बताया जाता था। इसके लिए बहुत से लोग दोषी हैं। उन्होंने कहा कि अब आइसीएचआर, आइसीएसएसआर, आइसीपीआर, आइजीएनसीए जैसी शीर्ष केंद्रीय संस्थाओं के प्रयासों के जरिए भारतीयता को सही रूप में पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि छात्रों को विशेष तौर पर भारतीयता के बारे में जागरुक करने की जरूरत है। अभी 11वीं और 12वीं में इस संबंध में एक पाठ्यक्रम है, लेकिन बहुत कम संख्या में छात्र इसे अपनाते हैं।