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अफगानिस्तान में तालिबान भारत को नहीं स्वीकार

भारत इस बात पर अडिग है कि अफगानिस्तान के राजनीतिक भविष्य में तालिबान के किसी भी धड़े को हिस्सा लेने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए।

By Manish NegiEdited By: Published: Tue, 17 Oct 2017 07:46 PM (IST)Updated: Tue, 17 Oct 2017 07:46 PM (IST)
अफगानिस्तान में तालिबान भारत को नहीं स्वीकार
अफगानिस्तान में तालिबान भारत को नहीं स्वीकार

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भारतीय कूटनीति से जुड़े अधिकारी इस बात से खुश हैं कि अमेरिका ने साफ तौर पर अफगानिस्तान में भारत को बड़ी भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया है लेकिन वे इस बात से चिंतित भी है कि वहां तालिबान की भूमिका सुनिश्चित करने को लेकर दबाव बढ़ता जा रहा है। एक तरफ जहां पाकिस्तान की अगुवाई में रूस और चीन मिल कर तालिबान की पैरवी करने में जुटे हैं वहीं अमेरिका के रवैये में भी बदलाव दिखने लगा है। जबकि भारत इस बात पर अडिग है कि अफगानिस्तान के राजनीतिक भविष्य में तालिबान के किसी भी धड़े को हिस्सा लेने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए।

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ऐसे में भारत सोमवार को ओमान की राजधानी दमिश्क में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और अमेरिका के बीच शुरु हुई बातचीत की प्रगति का इंतजार कर रहा है। इस बातचीत में अफगानिस्तान में तालिबान की भूमिका सुनिश्चित करना भी एक मुद्दा है। इसके पहले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के तत्वाधान में भी पिछले हफ्ते सदस्य देशों की बैठक हुई थी जिसमें अफगान समस्या से जुड़े कई पहलुओं पर विमर्श हुआ था। इस बैठक में भी तालिबान की भूमिका तय करने का मुद्दा पाकिस्तान की तरफ से परोक्ष तौर पर उठाया गया था। भारत ने साफ कहा था कि अफगानिस्तान समस्या का समाधान सिर्फ वहां के स्थानीय नागरिकों के इच्छा के मुताबिक और उन्हीं की तरफ से इजाद किये गये तरीके से होना चाहिए। दरअसल, पाकिस्तान की चाह है कि अफगानिस्तान की मौजूदा समस्या के समाधान के लिए जो भी फार्मूला निकाला जाए उसमें तालिबान को शामिल किया जाए। सनद रहे कि पूर्व में अफगानिस्तान में जब तालिबान का शासन था तब उसे सिर्फ पाकिस्तान का समर्थन हासिल था। भारत मानता है कि तालिबान का वहां फिर से आना उसके कूटनीतिक हितों के लिए बहुत बड़ा खतरा होगा।

सूत्रों के मुताबिक अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन अगले हफ्ते जब भारत के दौरा पर आएंगे तो यहां होने वाली द्विपक्षीय बातचीत में अफगानिस्तान काफी अहम रहेगा। टिलरसन भारत के साथ ही अफगानिस्तान के अलावा पाकिस्तान की यात्रा पर भी जाएंगे। यह हाल ही में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से घोषित नई अफगानिस्तान नीति के बाद किसी वरिष्ठ अमेरिकी मंत्री की पहली अफगान यात्रा होगी। जानकारों के मुताबिक भारत अमेरिका को यह समझाने की कोशिश करेगा कि तालिबान के किसी भी धड़े पर स्थाई शांति के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता। दरअसल, हाल के महीनों में अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में तालिबान को शामिल करने को लेकर न सिर्फ रूस और चीन दबाव बना रहे हैं बल्कि अमेरिका का रवैया भी बदल रहा है। माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में आतंकी संगठन आइएसआइएस के असर को बढ़ते देख अमेरिका का विचार बदल रहा है और वह तालिबान के कुछ धड़े को वहां की मौजूदा राजनीतिक प्रतिक्रिया में शामिल करने का मन बना रहा है।

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