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आयात ने बिगाड़ी घरेलू खाद्य तेल की धार,सरकारी खजाने पर 1 लाख करोड़ का बोझ

खाद्य तेलों की कमी को पूरा करने में सरकारी खजाने पर एक लाख करोड़ रुपये का आयात बोझ पड रहा है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Thu, 16 Feb 2017 10:54 PM (IST)Updated: Fri, 17 Feb 2017 04:10 AM (IST)
आयात ने बिगाड़ी घरेलू खाद्य तेल की धार,सरकारी खजाने पर 1 लाख करोड़ का बोझ
आयात ने बिगाड़ी घरेलू खाद्य तेल की धार,सरकारी खजाने पर 1 लाख करोड़ का बोझ

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। मानसून की अच्छी बारिश और मिट्टी में पर्याप्त नमी के चलते रबी सीजन की फसलों की शानदार पैदावार का भले ही होने वाली हो, लेकिन खाद्य तेलों की कमी को पूरा करने में सरकारी खजाने की सेहत जरूर बिगड़ जाएगी। साल दर साल खाद्य तेलों के मामले में बढ़ती आयात निर्भरता से जहां घरेलू खेती को नुकसान हो रहा है, वहीं खजाने की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

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हालांकि सरकार इस कठिन समस्या से उबरने के उपाय ढूढ़ने में जरुर जुट गई है। घरेलू तिलहन फसलों की खेती लगातार सिमटती जा रही है। नतीजतन, खाद्य तेलों की जगह विलायती खाद्य तेलों ने ले लिया है। घरेलू पैदावार व बढ़ते आयात के बीच लगातार अंतर बढ़ता ही जा रहा है। सस्ते आयात के चक्कर में घरेलू तिलहन फसलों की खेती महंगी साबित हो रही है। लिहाजा किसानों ने इससे मुंह मोड़ लिया है। पिछले एक दशक में हालात बद से बदतर हो चुके हैं। इससे पार पाने के उपाय शुरु तो कर दिये गये हैं, लेकिन इतनी देर हो चुकी है कि अब इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को महंगे खाद्य तेल के रूप में उठाना होगा।

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देश में सालाना डेढ़ लाख टन से भी अधिक खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है। वर्ष 2009-10 में कुल 88 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया गया था। उस वर्ष घरेलू खाद्य तेलों का उत्पादन 62 लाख टन हुआ था। लेकिन वर्ष 2015-16 में खाद्य तेलों का आयात बढ़कर लगभग दोगुना यानी 155 लाख टन हो गया और खाद्य तेलों की घरेलू पैदावार का आंकड़ा 70 लाख टन पर अटक गया। खाद्य तेलों की बढ़ती मांग की कई वजहें हैं, जिनमें लोगों की आमदनी में हो रही वृद्धि और आबादी का दबाव है।

घरेलू स्तर पर महंगाई को काबू में करने के चक्कर में आयात शुल्क में लगातार कटौती की गई है। नतीजा यह हुआ कि तिलहन की खेती करने वाले किसानों की लागत के मुकाबले बाजार में सस्ते खाद्य तेल की भरमार हो गई। दूसरी समस्या यह रही कि सूखे की वजह से भी तिलहन की खेती मुश्किल हो गई।

आमतौर पर तिलहन की खेती असिंचित क्षेत्रों में ज्यादा होती है। हालांकि मौजूदा सरकार ने तिलहन खेती को संरक्षित करने के मकसद से क्रूड के आयात शुल्क को बढ़ाकर 7.5 फीसद से 12.5 फीसद और रिफाइंड को 15 से बढ़ाकर 20 फीसद कर दिया है। खाद्य तेल की मांग को पूरा करने के लिए घरेलू खेती को प्रोत्साहन और आयात को हतोत्साहित करने की सख्त जरूरत है।

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