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कानून ही नहीं, लोगों की सेहत के लिए भी घातक हैं अवैध बूचड़खाने

उत्तर प्रदेश की नई सरकार ने अवैध बूचड़खानों के खिलाफ जो कार्रवाई की है, उसे लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रहीं हैं।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Mon, 27 Mar 2017 07:16 AM (IST)Updated: Mon, 27 Mar 2017 10:56 AM (IST)
कानून ही नहीं, लोगों की सेहत के लिए भी घातक हैं अवैध बूचड़खाने
कानून ही नहीं, लोगों की सेहत के लिए भी घातक हैं अवैध बूचड़खाने

 सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खानों पर चली कटार को लेकर काफी हल्ला हो रहा है। लेकिन सेहत के लिए घातक इन बूचड़खानों की हकीकत सदमे में डाल सकती है। बीमार पशुओं के साठ फीसद रोग उसका मांस खाने वालों में फैलने की आशंका रहती है और विशेषज्ञों का मानना है कि मनुष्यों में टीबी व रेबीज समेत कई गंभीर बीमारियों का स्रोत ऐसे मांस ही हैं। ऐसे में अवैध बूचड़खानों के बाद लाइसेंसशुदा बूचड़खाने भी संदेह के घेरे में हैं। उनके यहां पशुओं को काटने की पूरी प्रक्रिया की निगरानी करने वाली सरकारी प्रणाली भी ध्वस्त है।

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देश के मांस निर्यात में उत्तर प्रदेश की कुल हिस्सेदारी 50 फीसद के आसपास रहती है। बीते साल सूबे के मीट प्रोसेसिंग केंद्रों ने 17 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार किया है। भैंस का मांस बीफ के तौर पर निर्यात किया जाता है। लेकिन समुचित निगरानी के अभाव में प्रतिबंधित होने के बावजूद गायों की कटाई की सूचनाएं भी बाहर आती रही हैं। भाजपा इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव में पूरे जोर शोर से उठाती रही हैं। सत्ता में आते ही निगरानी प्रणाली को चुस्त बनाने पर जोर देना होगा।
भारतीय पशु चिकित्सा संस्थान के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि पशुओं को काटने से पहले स्थानीय निकायों में तैनात पशु चिकित्साधिकारी की जिम्मेदारी पशुओं की पूरी जांच करनी होती है। कटाई के बाद उसके मांस को खाने योग्य घोषित करना होता है। लेकिन ढांचागत खामियों के चलते व्यावहारिक रूप में ऐसा होता नहीं है। रोग ग्रसित पशुओं का मांस खाने वालों को टीबी, गर्भपात वाले बैक्टीरिया, फंगस वाले रोग, सॉलमोनेला व लैप्टोसपिरा जैसे बैक्टीरिया रोगी बना सकते हें। रेबीज से प्रभावित पशुओं का मांस खाने वालों में रेबीज पहुंचने की आशंका रहती है।
राज्य सरकार ने जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाले बगैर लाइसेंसी अवैध बूचड़खाने बंद कराने के सख्त निर्देश दे रखा है। शहरी क्षेत्रों में बूचड़खानों की निगरानी स्थानीय निकायों की होती है, जहां तैनात पशु चिकित्साधिकारी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों को यह दायित्व दिया गया है, जहां पशु चिकित्सालय तक में पशु डॉक्टर नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश में कुल 285 लाइसेंस वाले बूचड़खाने चल रहे हैं। पशुओं को काटने के मामले में उत्तर प्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। जबकि महाराष्ट्र पहले पायदान पर है, जहां 316 बूचड़खाने हैं। उत्तर प्रदेश के लगभग तीन दर्जन बूचड़खाने केंद्र से मान्यता प्राप्त हैं। इनमें अलीगढ़ में सात, गाजियाबाद में पांच, उन्नाव में चार, मेरठ में तीन और सहारनपुर में दो हैं। इसके अतिरिक्त बाराबंकी, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, झांसी और लखनऊ में एक-एक हैं। लाइसेंसशुदा इन बूचड़खानों में आमतौर पर भैंस काटी जाती हैं।
अवैध बूचड़खाने तो किसी भी जांच की परिधि में होते ही नहीं हैं। लिहाजा उनके मांस को खाना जोखिम को मोल लेने के बराबर है। राज्य की पिछली सरकारों में इन पर पाबंदी नहीं होने अथवा सख्ती के अभाव में ‘सब चलता है’ की तर्ज होता रहा है। इसी पर पाबंदी लगाने की अपनी चुनावी घोषणा को लागू करने उतरी राज्य की योगी सरकार को बहुत कुछ करने की जरूरत है।

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