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अगर कोई ये तर्क दे कि फाइल पर उसके हस्ताक्षर नहीं है तो क्या होगा

उत्तर प्रदेश सरकार की यह दलील कि हर फाइल पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर हो या न हों लेकिन फैसला मुख्यमंत्री ही लेते हैं सुप्रीमकोर्ट को ज्यादा जम नहीं रही है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 14 Oct 2015 04:49 AM (IST)Updated: Wed, 14 Oct 2015 05:04 AM (IST)

माला दीक्षित, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार की यह दलील कि हर फाइल पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर हो या न हों लेकिन फैसला मुख्यमंत्री ही लेते हैं सुप्रीमकोर्ट को ज्यादा जम नहीं रही है। मंगलवार को कोर्ट ने प्रदेश सरकार से सवाल किया कि किसी घोटाले के समय अगर कोई ये तर्क दे कि फाइल पर उसके हस्ताक्षर नहीं है तो उस समय क्या होगा। कोर्ट ने हर फाइल पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर जरूरी होने के कानूनी पहलू पर विचार का मन बनाते हुए कहा कि नियमों के तहत यह स्पष्ट होना चाहिए कि फाइल मुख्यमंत्री ने देख कर मंजूर की है। इसके लिए चाहें उनके फाइल पर हस्ताक्षर हों या देख लिया लिखा हो।

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मंगलवार को ये टिप्पणीं न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति पीसी पंत की पीठ ने मामले पर विचार का मन बनाते हुए की। मालूम हो कि हर फाइल पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर की अनिवार्यता का मुद्दा इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजा है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने मामला बड़ी पीठ को भेजे जाने के आदेश को ही सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी दी है। प्रदेश सरकार का कहना है कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। लेकिन पिछली सुनवाई पर सुप्रीमकोर्ट ने राज्य सरकार से फाइलों पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर के संबंध में नियम कानून पेश करने को कहा था।

मंगलवार को मामले पर जब सुनवाई शुरू हुई तो प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन, एडीशनल एडवोकेट जनरल बुलबुल गोडयाल और राज्य सरकार के पैनल वकील रवि प्रकाश मेहरोत्रा पेश हुए। उनका कहना था कि यह मामला संविधान के अनुच्छेद 166 (3) की व्याख्या से जुड़ा है। जो कि सरकार चलाने के रूल आफ बिजनेस की बात करता है। धवन ने कहा कि मुख्यमंत्री के समक्ष रोजाना सौ से ज्यादा फाइलें आती हैं हर फाइल पर उनके हस्ताक्षर करना संभव नहीं होता लेकिन हर फाइल उनके समक्ष जाती है और वे ही उस पर फैसला लेते हैं कुछ पर वे स्वयं हस्ताक्षर करते हैं और कुछ पर उनके अनुमोदन से अधिकारी हस्ताक्षर करते हैं। ये परंपरा लंबे समय से चली आ रही है।

इस दलीलों पर पीठ ने कहा कि उन्हें जो प्रश्न परेशान कर रहा है वह ये है कि आये दिन घोटाले होते हैं अगर उस समय कोई ये तर्क दे कि फाइल पर उसके हस्ताक्षर नहीं है तो क्या होगा। पीठ ने कहा कि रूल आफ बिजनेस में यह स्पष्ट रूप से तय होना चाहिए कि फाइल मुख्य मंत्री ने मंजूर की है। इसके लिए या तो फाइल पर उनके हस्ताक्षर हों या फिर स्पष्ट तौर पर लिखा हो कि देख ली। पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर वे विचार करेंगे। मामले पर आगे 4 नवंबर को सुनवाई होगी।

पढ़ेंः क्या सरकार समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है: सुप्रीम कोर्ट


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