शहीद परिवारों की मदद को आगे आए IAS अधिकारी, इस तरह करेंगे मदद
नक्सल और आतंक विरोधी अभियानों में शहीद होने वाले जवानों के परिजनों की मदद के लिए आईएएस अधिकारियों का एसोसिएशन आगे आया है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। नक्सली हमलों और आतंकी हमलों में शहीद हुए जवानों के परिजनों की मदद के लिए देश की शीर्ष प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी आगे आए हैं। एक स्वैच्छिक पहल की शुरूआत करते हुए आईएएस अधिकारियों की एसोसिएशन इन शहीद परिजनों की मदद करेगी तांकि इनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके और सरकार की मुआवजा नीति के तहत इनको समयबद्ध ढंग से वित्तीय सहायता प्राप्त हो सके।
देशभर की एक आईएस अधिकारियों की एसोसिएशन ने फैसला किया है कि हर एक आईएएस अधिकारी सशस्त्र बलों के सुरक्षा जवानों (रक्षा, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और राज्य पुलिस) के शहीद होने पर उसके परिवार की मदद के तहत करेगा और कम से कम 5-10 वर्षों तक वह पूरे परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी उठाएगा। यह अधिकारी उसी राज्य (कैडर) से संबंधित हो सकता है जहां शहीद का परिवार रहता है।
हालांकि इसके तहत उस अधिकारी को अपनी तरफ से सीधे तौर पर ऐसे परिवार को वित्तीय सहायता देने की आवश्यकता नहीं होगी बल्कि सरकार की मुआवजा नीति के तहत समयबद्ध ढंग से पैसे की उपलब्धता कराना, ऐसे परिवारों के लिए सरकारी प्रयासों के बारे में जानकारी और उनका सहयोग करने की जिम्मेदारी होगी। ऐसा इसलिए किया जा रहा है तांकि ऐसे परिवारों को अभिभावक की कमी महसूस ना हो।
टीओआई के मुताबिक इस नई पहल के तहत, एसोसिएशन ने 2012 से लेकर 2016 तक वाले आईएएस बैच के 600-700 युवा अधिकारियों को अपनी तैनाती वाले क्षेत्रों में से कम से कम एक शहीद परिवार की देखभाल करने को कहा है। ये अधिकारी शहीद परिवारों को प्राथमिकता के आधार पर पेंशन, ग्रेच्युटी, सेवाओं का वितरण जैसे- पेट्रोल पंप, स्कूलों में बच्चों का दाखिला, युवाओं को सरकार के स्किल इंडिया या डिजिटल इंडिया प्रोग्राम जैसे पहलों में मदद करेगी। यदि आश्रित परिवार कोई व्यवसाया या स्टार्ट-अप शुरू करना चाहता है तो इन्हें वित्तीय संस्थानों से मदद दिलाने में भी ये अधिकारी सहायता करेंगे।
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