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'जागो ग्राहक जागो' पर उसकी सुनेगा कौन?

देश की ज्यादातर उपभोक्ता अदालतों में सुनवाई करने वालों के पद रिक्त..

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Wed, 29 Mar 2017 08:43 PM (IST)Updated: Thu, 30 Mar 2017 03:35 AM (IST)
'जागो ग्राहक जागो' पर उसकी सुनेगा कौन?
'जागो ग्राहक जागो' पर उसकी सुनेगा कौन?

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। ग्राहकों को जागरुक करने के लिए सरकार का 'जागो ग्राहक जागो' अभियान आक्रामक तरीके से सालों से चलाया जा रहा है। लेकिन देश की ज्यादातर उपभोक्ता अदालतों में शिकायतों का निपटारा करने वालों के पद खाली पड़े हैं। जिला उपभोक्ता अदालतों के साथ राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग तक में पद खाली हैं। यही वजह है कि देश के विभिन्न उपभोक्ताओं अदालतों में तीन लाख से अधिक शिकायतें लंबित पड़ी हैं।

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इन लंबित शिकायतों में एक तिहाई हिस्सा अकेले उत्तर प्रदेश का है, जहां के राज्य स्तरीय आयोग में 26 हजार से अधिक और जिला अदालतों में 76 हजार से अधिक शिकायतों का निपटारा नहीं हो सका है। यहां की विभिन्न उपभोक्ता अदालतों में अध्यक्ष और सदस्यों के पद लंबे समय से खाली है, जिन्हें भरने की प्रक्रिया तक शुरु नहीं हो सकी है।

देश के राष्ट्रीय आयोग और 35 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के राज्य आयोगों में एक लाख से ज्यादा शिकायतों का निपटारा नहीं हो सका है। इनमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश की 26 हजार से अधिक और महाराष्ट्र की 15 हजार से अधिक है। जबकि राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में कुल साढ़े बारह हजार मामले लंबित हैं, जिनका निपटारा निर्धारित समय पर नहीं हो सका है। 90 दिनों के भीतर न्याय देने केउद्देश्य से गठित इन उपभोक्ता अदालतों की हालत सामान्य न्यायिक अदालतों से अलग नहीं रह गई है। यहां भी शिकायत दर्ज कराने के लिए एक सौ रुपये की फीस देना पड़ता है, जो किसी भी सिविल अदालत के के मुकाबले अधिक है।

उत्तर प्रदेश की विभिन्न जिला उपभोक्ता फोरम में 74537 शिकायतें लंबित हैं, जिनकी सुनवाई निर्धारित तीन महीने के भीतर पूरी नहीं हो पाई है। महाराष्ट्र में 37874 शिकायतें और राजस्थान में 34638 मामले लंबित हैं। दिल्ली में 17 हजार और गुजरात में 16 हजार से अधिक उपभोक्ता न्याय का इंतजार कर रहे हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत गठित इन अदालतों के प्रभावी न होने और इसकी खामियों को देखते हुए केंद्र सरकार ने एक दूसरा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसे अभी संसद की मंजूरी मिलनी बाकी है।

मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि उपभोक्ता संरक्षण कानून पर संसद की स्थायी समिति ने 80 से अधिक संशोधन की सिफारिश की थी। इसे देखते हुए विधि मंत्रालय ने नया कानून बनाने का अनुरोध किया, जिसके तहत विधेयक संसद में विचाराधीन है।

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