माल्या को स्वेदश लाने का निकलेगा रास्ता
भारत और ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण के प्रस्तावों को जल्द से जल्द निपटाने का रास्ता निकालने को लेकर सहमति बनी है। दोनों एक-दूसरे के देश में फंसे कानूनी मामलों का भी जल्द हल निकालने में सहयोग करेंगे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कारोबारी विजय माल्या ने भारत से भागकर ब्रिटेन में इसलिए शरण ली थी, क्योंकि वहां से कानूनन किसी को वापस लाना बहुत मुश्किल है। हालांकि निकट भविष्य में उनकी यह सोच गलत साबित हो सकती है।
भारत और ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण के प्रस्तावों को जल्द से जल्द निपटाने का रास्ता निकालने को लेकर सहमति बनी है। दोनों एक-दूसरे के देश में फंसे कानूनी मामलों का भी जल्द हल निकालने में सहयोग करेंगे। भारत और ब्रिटेन के बीच मंगलवार को प्रत्यर्पण व द्विपक्षीय कानूनी सहायता पर विचार विमर्श हुआ। इसमें विजय माल्या के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पासपोर्ट व वीजा) की अगुआई में हुई बैठक में भारतीय दल में गृह व कानून मंत्रालय, सीबीआइ, प्रवर्तन निदेशालय व कुछ राज्यों के प्रतिनिधि शामिल थे।
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ब्रिटिश दल में वहां के गृह मंत्रालय व क्राउन प्रॉसक्यूशन सेवा के प्रतिनिधियों के अलावा कुछ अन्य अधिकारी थे।नवंबर, 2016 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे की भारत यात्रा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में यह मामला उठा था। इसमें आमराय बनी थी कि दोनों देशों के बीच अपराधियों के प्रत्यर्पण को लेकर और सहयोग स्थापित होना चाहिए। मंगलवार की बैठक उसी क्रम में हुई। विदेश मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक, दोनों पक्ष प्रत्यर्पण के मामले में होने वाली देरी और इस बारे में विश्वस्तरीय मापदंडों का अध्ययन करेंगे और उसे लागू करेंगे, ताकि अपराधियों पर जल्द कानूनी शिकंजा कसा जा सके।
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तय किया गया कि इस बारे में जो भी प्रगति होगी, उसे हर छह महीने में एक-दूसरे से साझा किया जाएगा। सनद रहे कि भारतीय बैंकों से तकरीबन 9,000 करोड़ रुपये लेकर फरार विजय माल्या अभी ब्रिटेन में हैं। उनका मामला भारत में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। केंद्र सरकार व प्रमुख विपक्षी दल उनके देश से भागने को लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं। देश के कई न्यायालयों में माल्या के खिलाफ मामला चल रहा है।
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उनके प्रत्यर्पण का आग्रह संबंधी आवेदन 09 फरवरी, 2017 को विदेश मंत्रालय ने ब्रिटिश सरकार को भेजा है। वैसे ब्रिटेन का प्रत्यर्पण कानून काफी पेचीदा है। अब जबकि दोनों देशों के बीच सहमति बनी है तो देखना होगा कि माल्या की तरकीब उन्हें कब तक बचा पाती है?