मुश्किलें ला सकता है उत्तरी ध्रुव का ओजोन छेद
उत्तरी ध्रुव पर धरती से 15 से 35 किलोमीटर ऊपर ओजोन लेयर में छेद बन गया है। इन गर्मियों में इसके और बढ़ने की आशंका है।
नई दिल्ली, जागरण डेस्क । उत्तरी ध्रुव पर धरती से 15 से 35 किलोमीटर ऊपर ओजोन लेयर में छेद बन गया है। इन गर्मियों में इसके और बढ़ने की आशंका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका इस इलाके समेत दुनिया भर में पर्यावरण पर असर हो सकता है।
जर्मनी के अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के वायुमंडलीय रसायन विज्ञानी मार्कस रेक्स का कहना है कि इस बार उत्तरी ध्रुव के ओजोन लेयर वाली परत पर रिकॉर्ड ठंडक रही है। इससे ओजोन लेयर को समाप्त करने वाले रसायन बन गए हैं। इससे आशंका यह बनी है कि इस जगह पर लेयर को 25 प्रतिशत तक क्षति पहुंचेगी। बर्फ की मोटी चादर बिछी रहने के कारण उत्तरी ध्रुव पर वैसी भी अत्यधिक ठंड पड़ती है और यहां छह महीने सूरज नहीं निकलता।
क्या है महत्व
धरती पर ओजोन ज्वलनशील रसायन और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। लेकिन वायुमंडल में यह धरती को अल्ट्रावायलेट रोशनी से बचाता है। 1981 के दशक में ही वैज्ञानिकों ने पाया था कि क्लोरीन वाले रसायन ओजोन परत को क्षति पहुंचा रहे हैं। ऐसा खास तौर पर उत्तरी ध्रुव पर हो रहा है। हमारे घरों में भी इस तरह के रसायन का उपयोग होता है। रेफ्रिजरेटर में इसका ही उपयोग किया जाता है।
क्या हो रहा
इस साल ठंड वाले तापमान ने अधिकांशत: प्राकृतिक संसाधनों से निकले नाइट्रिक एसिड की परत को यहां गहरा कर दिया है। पिछले तीन-चार माह से इस वजह से यहां इंद्रधनुषी बादल बराबर देखे जा रहे हैं। रेक्स का कहना है कि ये खूबसूरत भले ही लगे रहे हों, बहुत ही खतरनाक हैं। ये बादल क्लोरीन को सक्रिय रसायनों में बदलने की प्रक्रिया को तेज कर रहे हैं और ये आने वाले दिनों में सूर्य की रोशनी में ओजोन की परत को क्षति पहुंचाएंगे।
क्या हो सकता है
मैक्सिको की वायुमंडल वैज्ञानिक ग्लोरिया मैनी कहती हैं कि आने वाले दिनों में सूर्य की रोशनी के प्रभाव पर गहरी नजर रखनी होगी। मैरीलैंड विश्वविद्यालय में वायुमंडल केमिस्ट रॉस सालाविच का कहना है कि यही स्थिति बनी रही तो आर्कटिक महासागर वाले इलाके में तूफान की घटनाएं बढ़ जाएंगी और इनकी रफ्तार भी तेज होगी।