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डेंगू पर हाईकोर्ट सख्त कहा, क्यों न उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाये

कोर्ट ने कहा कि डेंगू से मौते राज्य सरकार की संवैधानिक विफलता है। क्यों न संविधान के अनुच्छेद 356 के तरह राज्य सरकार को बर्खास्त कर यहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 25 Oct 2016 04:43 PM (IST)Updated: Wed, 26 Oct 2016 11:56 AM (IST)

लखनऊ (जेएनएन)। पारिवारिक कलह से जूझ रही सपा सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ से भी मंगलवार को तगड़ा झटका लगा। अदालत ने डेंगू से हो रही मौतों के मद्देनजर सरकारी प्रयासों को नाकाफी मानते हुए सरकार से पूछा कि क्यों न प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी जाए। मुख्य सचिव राहुल भटनागर को गुरुवार को तलब करते हुए अदालत ने कहा कि नौकरशाही सरकार के काबू में नहीं है।डेंगू नियंत्रण में प्रशासनिक विफलता की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एपी शाही और न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि राच्य सरकार का सांविधानिक तंत्र स्थिति को संभालने में पूरी तरह विफल रहा है।

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न्यायालय ने कहा कि सरकार नागरिकों को स्वास्थ्य व सफाई उपलब्ध कराने के अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल रही है। न्यायालय ने कहा, मुख्य सचिव स्पष्ट करें कि इस स्थिति को तत्काल कैसे ठीक कर सकते हैं अन्यथा कानून व शासन के समुचित प्रशासन के लिए न्यायालय संविधान के संबंधित प्रावधानों को लागू कर सकता है। बहस के दौरान न्यायालय ने आम लोगों की मौतों और सरकारी तंत्र की लापरवाही पर कहा कि क्यों न संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा कर दी जाए।

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राज्य में आपातस्थिति

नाराज हाईकोर्ट ने कहा कि यह दशा स्पष्ट इशारा करती है कि राज्य में आपात स्थिति है और राज्य सरकार की मशीनरी पूरी तरह विफल हुई है। न्यायालय ने कहा कि हमारी असंतुष्टि का कारण धारणा नहीं है बल्कि इसका आधार खुद राज्य सरकार की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे और रिपोर्ट हैं। हमें अब तक एक भी सकारात्मक कार्य नहीं दिखा है।

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मर रहा आम आदमी
न्यायालय ने कहा पिछले कई सालों से राज्य के स्वास्थ्य प्रशासन की विफलता का मुद्दा जनहित याचिकाओं में उठाया जा रहा है। इतनी बार आदेश दिए गए व अधिकारियों को तलब किया गया कि वस्तुत: यह न्यायालय लोक प्रशासन अदालत बन गया। अधिकारी मात्र कागजी खानापूरी और चि_ी पेश कर कर्तव्यों की इतिश्री करने में मशगूल हैं। न्यायालय ने तल्ख लहजे में कहा कि आम आदमी मर रहा है लेकिन अधिकारियों के कान पर जूं नही रेंग रही है। न्यायालय ने कहा कि यह सब कहने को हम अब बाध्य हैं।

जुबानी जमा खर्च
न्यायालय ने सरकार की ओर से पेश हलफनामों को पढ़कर कहा कि हलफनामों से ही स्पष्ट है कि मेडिकल सुविधाओं में कितनी कमियां हैं। आखिर बार-बार आदेश जारी करने के बावजूद नौकरशाह कोई ठोस कार्रवाई क्यों नही कर रहे हैं। सरकार जुबानी जमा खर्च में मस्त है। बार-बार सफाई दी जा रही है लेकिन अब तक किसी भी सुनवाई पर सरकार की ओर से कोई ठोस कार्ययोजना पेश नहीं की गई।

यह आपराधिक लापरवाही
सरकारी नाकामी से हुई मौतों पर न्यायालय ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि यह तो आपराधिक लापरवाही (क्रिमिनल नेग्लिजेंस) है। अदालत ने नाकाम अफसरों पर कोई कारवाई न करने पर भी सरकार को लताड़ लगाई। न्यायालय ने पूछा कि आखिर सरकार नाकाम अफसरों पर कार्रवाई से हिचक क्यों रही है।

तो हटा दो पीएससी अध्यक्ष
लगभग दो घंटे चली सुनवाई के दौरान न्यायालय की उस समय त्यौरियां चढ़ गयीं जब अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोडियाल ने डॉक्टरों व संसाधनों की कमी की दुहाई दी। न्यायालय ने कहा कि इस तर्क से सरकार लोगों की जान की हिफाजत करने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। यदि डॉक्टर पर्याप्त मात्रा में नियुक्त नहीं किए जा रहे तो पब्लिक सर्विस कमीशन (पीएससी) के चेयरमैन को क्यों नहीं हटा देते?

श्रीधरन जैसे लोग चाहिए
न्यायालय ने कहा कि डॉक्टरों को आधारभूत सुविधाएं नहीं मुहैया कराई जातीं जिसकी वजह से डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में जाने से कतराते हैं। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने एक बार मेट्रोमैन श्रीधरन का नाम लेकर कहा कि अब तो लोगों के स्वास्थ्य को बचाने के लिए वैसे ही समर्पित व्यक्ति की जरूरत है।


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