मराठा आरक्षण पर हाई कोर्ट ने मांगा लिखित जवाब
मराठों को नौकरियों एवं शिक्षा में आरक्षण देने की घोषणा पिछली कांग्रेस-राकांपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले की थी।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। बांबे हाई कोर्ट ने मराठा समुदाय को 16 फीसद आरक्षण दिए जाने के मामले में महाराष्ट्र सरकार और सभी याचिकाकर्ताओं से लिखित जवाब मांगा है। न्यायालय इसके बाद ही अंतिम सुनवाई की तारीख तय करेगा।
न्यायमूर्ति अनूप मोहता एवं जीएस कुलकर्णी की पीठ मराठा आरक्षण के विरोध में दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही है। पीठ ने सभी पक्षों से 13 अक्टूबर तक अपने लिखित जवाब देने को कहा है ताकि उसके बाद अंतिम सुनवाई की तारीख निर्धारित की जा सके। मराठों को नौकरियों एवं शिक्षा में आरक्षण देने की घोषणा पिछली कांग्रेस-राकांपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले की थी। सरकार के इस फैसले के विरुद्ध पत्रकार केतन तिरोडकर ने जनहित याचिका दायर कर दी थी। तिरोडकर का तर्क था कि मराठों को शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़ा करार देना मात्र एक फर्जीवाड़ा है।
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तिरोडकर की याचिका पर हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर स्थगन दे दिया था। अदालत का मानना था कि मराठों को आरक्षण दिए जाने से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लंघन होता है, जिसमें आरक्षण की सीमा 50 फीसद तक ही रखने की बात कही गई है। महाराष्ट्र में पिछड़ों, दलितों सहित कुछ और वर्गो को दिए गए आरक्षण की सीमा पहले ही 52 फीसद तक पहुंच चुकी है। मराठों को 16 फीसद एवं संप्रग सरकार द्वारा ही मुस्लिमों के लिए घोषित पांच फीसद आरक्षण को मिला देने से राज्य में आरक्षण 73 फीसद हो जाएगा।
हाई कोर्ट यह कह चुका है कि पिछड़ों के लिए बने राष्ट्रीय आयोग एवं मंडल आयोग ने मराठा समुदाय को आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़ा नहीं बल्कि अगड़ा करार दिया है। इसलिए इसे पिछड़ा नहीं माना जा सकता। बता दें कि इन सारे तर्को के बावजूद इन दिनों मराठों को आरक्षण देने का मुद्दा एक बार फिर गर्मा गया है। पिछले एक पखवाड़े से आरक्षण सहित कई और मुद्दों को लेकर मराठा समुदाय महाराष्ट्र के कई जिलों में बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन कर चुका है। मराठों का यह शक्ति प्रदर्शन देखकर ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस भी मराठों को आरक्षण दिलाने का आश्वासन दे चुके हैं।
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