हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, फाइटर पायलट को 55 लाख का मुआवजा देने का आदेश
खंडपीठ ने कहा कि किसी सशस्त्र बल को तय मानक से अधिक जोखिम में नहीं डाला जा सकता है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार व हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को भारतीय वायु सेना के एक फाइटर पायलट को 55 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। वर्ष 2005 में मिग-21 (लड़ाकू विमान) के दुर्घटनाग्रस्त होने से पायलट घायल हो गया था। रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से वह दोबारा विमान उड़ाने के लायक नहीं रहा। संभवत: हाई कोर्ट द्वारा किसी पायलट को इतना मुआवजा देने का यह पहला मामला है।
न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट व न्यायमूर्ति दीपा शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि पायलट को तय मानक से अधिक जोखिम में डालने के कारण विमान बनाने वाली कंपनी व केंद्र सरकार मुआवजे का भुगतान करें। वह इसके लिए जिम्मेदार हैं। खंडपीठ ने केंद्र को पांच लाख रुपये व एचएएल को 50 लाख रुपये देने का आदेश दिया है।
खंडपीठ ने कहा कि किसी सशस्त्र बल को तय मानक से अधिक जोखिम में नहीं डाला जा सकता है। यदि उसे तय मानक से अधिक जोखिम भरी परिस्थितियों में डाला जाता है तो यह जीने के अधिकार का उल्लंघन है। संविधान के मुताबिक किसी को भी सुरक्षित माहौल में काम करने का अधिकार है।
वर्तमान में विंग कमांडर संजीत सिंह कैला ने वर्ष 2013 में यह याचिका दायर की थी। कैला के मुताबिक, वर्ष 2005 में वह राजस्थान के एयर फोर्स स्टेशन में स्क्वाड्रन लीडर के तौर पर तैनात थे। चार जनवरी को उन्होंने मिग-21 से नियमित उड़ान भरी थी। कुछ देर बाद ही विमान के पिछले हिस्से में आग लग गई। उन्होंने विमान को तुरंत उतारने का फैसला किया। नीचे गांव था और वह विमान को गांव से दूर ले गए।
विमान के क्रैश होने से कुछ सेकेंड पहले उन्होंने अपने को बचाने की कोशिश की। उन्हें आरटीआइ (सूचना का अधिकार) से जानकारी मिली थी कि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में यह बात सामने आई है कि एचएएल के उत्पादन में खराबी व खराब देखरेख के कारण दुर्घटना हुई थी। अदालत सरकार और एचएएल को उनसे माफी मांगने का निर्देश दे। हादसे के लिए एचएएल को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
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