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भट्टा परसौल मामले की सीबीआई जांच आदेश से इंकार

हाईकोर्ट ने भट्टा परसौल भूमि अधिग्रहण मामले की सीबीआई जाच की इजाजत देने से शुक्रवार को इंकार कर दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जांच के लिए सीबीसीआइडी पर विश्वास व्यक्त किया है।

By Edited By: Published: Fri, 30 Mar 2012 08:20 PM (IST)Updated: Fri, 30 Mar 2012 08:40 PM (IST)

इलाहाबाद। हाईकोर्ट ने भट्टा परसौल भूमि अधिग्रहण मामले की सीबीआई जांच की इजाजत देने से शुक्रवार को इंकार कर दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जांच के लिए सीबीसीआइडी पर विश्वास व्यक्त किया है। साथ ही, कहा है कि राज्य सरकार वरिष्ठ अधिकारी की कमेटी गठित करे, जो अंवेषण की मॉनीटरिंग करे। न्यायालय ने जांच रिपोर्ट की प्रति चार माह बाद पेश करने का भी निर्देश दिया है और कहा कि स्थानीय लोगों का सीबीसीआइडी के अंवेषण पर विश्वास होगा। यह आदेश न्यायमूर्ति इम्तियाज मुर्तजा तथा न्यायमूर्ति वीके दीक्षित की खंडपीठ ने भट्टा पारसौल व अच्छेपुर गांव के निवासियों सतीश कुमार, श्रीमती सुनीता, अतुल शर्मा व अन्य की जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।

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उल्लेखनीय है सात मई, 2011 को किसानों के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे आंदोलन के दौरान हुई झड़प में दो पुलिसकर्मियों व दो गांव वालों की गोली लगने से मौत हो गई थी, जबकि सैकड़ों घायल हुए थे। घटना में जिलाधिकारी भी घायल हुए थे। याचियों का कहना था कि पुलिस की बर्बर कार्रवाई में कई गांव वालों की मौत हुई है और स्थानीय पुलिस प्रशासन से निष्पक्ष न्याय की उम्मीद नहीं है। ऐसे में जांच सीबीआइ या एसआइटी को सौंपी जाए। आरोप लगा कि घटना के बाद कई लोग लापता हैं। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई है।

राज्य सरकार ने प्रभावित 110 लोगों के लिए 67 लाख 69 हजार रुपये मुआवजे के तौर पर मंजूर किए हैं। पारसौल के 1,716 प्रभावित लोगों में से 770 तथा भट्टा के 506 प्रभावित लोगों में से 345 लोगों ने मुआवजा प्राप्त कर लिया है। सरकार की तरफ से कहा गया कि मानवीर सिंह तेवतिया ने राजनीतिक दलों के उकसाने पर किसानों को उग्र होने को उकसाया, जिससे हिंसक घटना घटी। वह स्वयं कई आपराधिक मामलों में लिप्त हैं। उसके विरुद्ध कार्यवाही की गई है।

न्यायालय ने कहा है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में दुराचार की पुष्टि नहीं की है। घटना की जांच पुलिस से इतर एजेंसी कर रही है, जिस पर स्थानीय प्रशासन का प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार बदलने से भी प्रशासन में परिवर्तन आया है। ऐसे में एजेंसी की कार्यप्रणाली पर अविश्वास नहीं किया जाना चाहिए।

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