पूर्व रॉ प्रमुख का दावा, कंधार कांड से निपटने में कई थ्ाीं खामियां
पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुलत ने खुलासा किया है कि दिसंबर 1999 में कंधार कांड के वक्त जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला आतंकियों की रिहाई के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने यह भी दावा किया है कि उस वक्त क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप और सरकार के बीच सही तालमेल
नई दिल्ली। पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुलत ने खुलासा किया है कि दिसंबर 1999 में कंधार कांड के वक्त जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला आतंकियों की रिहाई के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने यह भी दावा किया है कि उस वक्त क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप और सरकार के बीच सही तालमेल न होने और त्वरित फैसला न ले पाने की बदौलत सही मौका भारत के हाथ से निकल गया और आतंकियों को रिहा करना पड़ा।
एक इंटरव्यू में उन्होंने 1989 की उस घटना का भी जिक्र किया है, जब मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया को आतंकियों ने अगवा कर लिया था और बदले में पांच आतंकियों को छोड़ना पड़ा था। इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि दोनों ही मामलों में फारूक अब्दुल्ला आतंकियों की रिहाई की बात सुनकर इतना भड़क उठे थे कि दिल्ली में बैठे मंत्रियों को उनकी नाराजगी झेलनी पड़ी थी। इंटरव्यू के दौरान उन्होंने गुजरात दंगों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के रुख का भी जिक्र किया है। इस इंटरव्यू में उन्होंने अपनी किताब 'कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स' के कई पहलुओं की भी जानकारी दी।
आतंकियों की रिहाई के बदले सीएम पद छोड़ने को तैयार थे फारूक
1999 में जब इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 को आतंकियों ने अगवा कर अपने पांच साथियों की रिहाई की मांग की थी तो जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला इस पर गुस्सा हाे गए थे। वो किसी भी सूरत में आतंकियों को रिहाई के लिए तैयार नहीं थे। इसके लिए वह सीएम पद छोड़ने को भी तैयार थे।
आतंकियों से निपटने के अभियान में थी गड़बडि़यां
एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने माना कि क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप (सीएमजी) के आतंकियों से निपटने के अभियान में गड़बड़ियां थीं। उन्होंने कहा कि 24 दिसंबर, 1999 को जब जहाज अमृतसर में उतरा तो ना ही केंद्र सरकार और ना ही पंजाब सरकार कुछ फैसला कर पाई। नतीजा यह हुआ कि पांच घंटों तक सीएमजी की मीटिंग होती रही और प्लेन अमृतसर से उड़ गया और इस तरह आतंकियों पर काबू पाने का मौका देश ने गंवा दिया। बाद में सभी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे।
अभियान में थी तालमेल की कमी
इस इंटरव्यू में दुलत ने कहा कि अमृतसर में जहाज की मौजूदगी के दौरान ऑपरेशन को हेड कर रहे पंजाब पुलिस प्रमुख सरबजीत सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार ने उन्हें कभी भी नहीं कहा कि आईसी-814 को उड़ान नहीं भरने देना है। दुलत ने अपनी किताब में कंधार कांड के साथ-साथ साल 1989 की उस घटना का भी जिक्र किया है, जब मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया को आतंकियों ने अगवा कर लिया था और बदले में पांच आतंकियों को छोड़ना पड़ा था।
कंधार मामले में जसवंत को किया था फोन
बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, केंद्र सरकार कितनी कमजोर है, यह कितनी बड़ी गलती है, बिल्कुल मूर्खों की मंडली है वहां। वह गुस्से में यूं ही बोलते गए फिर उन्होंने विदेश मंत्री जसवंत सिंह को कॉल किया और उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाई। फारूक ने जसवंत सिंह को कहा, आप जो भी कर रहे हैं, गलत कर रहे हैं। गुस्से में उन्होंने दिल्ली के कई अलग-अलग लोगों को फोन लगाया और एक-एक कर सब पर अपना गुस्सा उतारा।' अपनी किताब में दुलत ने लिखा है कि फारूक ने दिल्ली में किसी के पास फोन कर कहा कि वह किसी भी सूरत में आतंकी मुस्ताक अहमद जर्गर को जाने नहीं दूंगा। मामले में रिहाई की बात सुनकर वह इस कदर गुस्सा हुए कि अपना इस्तीफा देने तक की बात कह गए। उन्होंने ऐसा ही किया भी।
दुलत को दो बार झेलनी पड़ी थी फारूक की नाराजगी
उन्होंने लिखा है कि तब वह आईबी चीफ थे। रुबैया की रिहाई के लिए आतंकियों को छोड़ने से संबंधित बातचीत के लिए वह जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला से मिले तो सीएम ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। फिर जब कंधार कांड के वक्त वह फारूक से दुबारा पहले की तरह की ही अर्जी लेकर पहुंचे, तो वह बुरी तरह भड़क उठे।
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गुस्से में बोले थे फारूक, आप फिर आ गए
बकौल पूर्व रॉ चीफ, 'फारूक ने मुझसे कहा- आप फिर से आ गए... आप तब भी थे जब रुबैया का अपहरण हुआ था। आप दुबारा वापस कैसे आ सकते हैं? मैंने तब भी कहा था कि आप जो कर रहे हैं वह गलत है और मै फिर से यही बोल रहा हूं। मैं आपसे सहमत नहीं हूं।' दुलत ने लिखा है, 'बातचीत के दौरान फारूक अब्दुल्ला बीच-बीच में भड़क उठते, फिर शांत होकर अपनी बात रखते।
गवर्नर ने फारूक को शांत किया उसके बाद उन्होंने कहा कि वह अपना इस्तीफा सौंपने गवर्नर के पास जा रहे हैं। तब रात के दस बज रहे थे। उन्होंने गवर्नर से कहा कि ये लोग हमें आतंकियों को रिहा करने को कह रहे हैं और मैंने रॉ चीफ से कह दिया कि मैं इस मामले में पक्ष नहीं बनूंगा। बल्कि, मैं इस्तीफा देना चाहूंगा, इसलिए मैं आपके पास आया हूं। ये लोग जानते नहीं हैं कि ये क्या कर रहे हैं।' उस वक्त गवर्नर गैरी सक्सेना ने बड़ी चतुराई से हालात को संभाला। उन्होंने कहा कि 'डॉक्टर साहब, इस समय दूसरा कोई चारा नहीं है। इसके बाद ही फारूक अब्दुल्ला को मनाया जा सका।
क्या था कंधार कांड
गौरतलब है कि 24 दिसंबर, 1999 को नेपाल की राजधानी काठमांडू से दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाला इंडियन एयरलाइंस का विमान आईसी-814 का शाम करीब 17.30 बजे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन हरकत उल मुजाहिदीन के आतंकवादियों द्वारा हाईजैक कर लिया गया था। अमृतसर, लाहौर और दुबई में लैंडिंग करते हुए अपहरण कर्ताओं ने विमान को अफगानिस्तान के कंधार उतरने के लिए मजबूर किया। अपहर्ताओं ने 176 यात्रियों में से 27 को दुबई में छोड़ दिया लेकिन रूपिन कात्याल नाम के एक यात्री को चाकू से बुरी तरह गोदकर मार डाला था जबकि कई अन्य को घायल कर दिया था। तब यात्रियों की रिहाई के बदले भारत को तीन आतंकियों मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुस्ताक अहमद जर्गर को अपहरणकर्ताओं को सौंपना पड़ा था।
गुजरात दंगों को वाजपेयी ने बताया था गलती
दुलत ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी और इसे एक ‘गलती’ करार दिया था। दुलत ने कहा कि यह बात वाजपेयी के साथ एक बैठक के समय की है। उन्होंने वाजपेयी के साथ अपनी आखिरी बैठक का जिक्र किया। उनके मुताबिक उस बैठक में वाजपेयी ने गुजरात दंगों के संदर्भ में कहा कि वो हमारे से गलती हुई है। दुलत साल 2000 तक रॉ के प्रमुख रहे और बाद में वाजपेयी के समय प्रधानमंत्री कार्यालय में कश्मीर मुद्दे पर विशेष सलाहकार थे।